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    43 साल बाद दिहुली कांड का एक आरोपी बरी, दो की फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदली

    फिरोजाबाद से 43 साल बाद दिहुली कांड फिर सुर्खियों में है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मैनपुरी कोर्ट के फांसी के फैसले को पलटते हुए एक आरोपी को बरी कर दिया जबकि दो की सजा आजीवन कारावास में बदल दी। 1981 में हुए इस नरसंहार में 24 लोगों की हत्या कर दी गई थी। पुलिस की लापरवाही के कारण रामपाल को बरी किया गया अभियोजन पक्ष कमजोर रहा।

    By Rajeev Sharma Edited By: Sakshi Gupta Updated: Tue, 26 Aug 2025 07:57 PM (IST)
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    दिहुली कांड का एक आरोपित बरी, दो की फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदली।

    जागरण संवाददाता, फिरोजाबाद। देश का दहला देने वाला दिहुली कांड फिर से सुर्खियों में आ गया है। 43 वर्ष बाद मैनपुरी कोर्ट ने जिन तीन आरोपितों को फांसी की सजा सुनाई थी।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को उनमें से एक को बरी करने के साथ ही बाकी दो की सजा आजीवन कारावास में बदल दी है। इस नरसंहार में एससी के 24 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

    18 नवंबर 1981 की शाम जसराना के गांव दिहुली में हुए जातीय नरसंहार में खाकी वर्दी में आए राधे-संतोषा गिरोह के 17 हथियारबंद बदमाशों ने लोगों को चुन-चुन कर मारा था। महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ा। तीन घंटे मौत का तांडव खेला।

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    23 लोगों की मौके पर और एक की उपचार के दौरान मौत हो गई थी। इसके बाद बदमाशाें ने ठाकुर बस्ती में जाकर दावत की थी। ये क्षेत्र उस समय मैनपुरी जिले में आता था। इस मामले में जसराना थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी, लेकिन कोर्ट का निर्णय आने में 43 वर्ष से अधिक का समय लग गया।

    इस दौरान 13 आरोपितों की मृत्यु हो गई। 11 मार्च को कोर्ट ने तीन आरोपितों रामपाल, रामसेवक और कप्तान सिंह को दोषी करार दिया और 18 मार्च को इन्हें फांसी की सजा सुनाई। वहीं एक आरोपित ज्ञानचंद्र को भगोड़ा घोषित किया था।

    तीनों तभी से आगरा की सेंट्रल जेल में हैं। इस निर्णय के विरुद्ध आरोपिताें की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की गई थी। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ब्रज प्रदेश के अध्यक्ष एड. दलवीर सिंह तोमर के अनुसार हाईकोर्ट ने सोमवार को दिए निर्णय में रामपाल को बरी कर दिया है।

    वहीं रामसेवक और कप्तान सिंह की फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल दी है। हाईकोर्ट में आरोपित पक्ष की ओर से पैरवी एड. शिवानी कुलश्रेष्ठ ने की।

    पुलिस की ये कमी बनी निर्णय बदलने की वजह

    एडवोकेट दलवीर सिंह तोमर ने बताया कि रामपाल के विरुद्ध केवल आइपीसी की धारा 214 ए (लुटेरों या डकैतों को शरण देना) एवं 120 बी (षड़यंत्र में शामिल होना) का आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया गया था। जिसे उच्च न्यायालय ने बड़ी चूक मानते हुए सत्र न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दोष मुक्त कर दिया।

    इस पूरे मामले में अभियाेजन पक्ष की लापरवाही को भी उच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया। अभियोजन द्वारा दो विवेचकों और कुछ घायलों की गवाही नहीं कराई गई। मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और घायलों की मेडिकल रिपोर्ट को न्यायालय में साबित नहीं कराया गया।