अंबुबाची महोत्सव: तीन दिन बाद खुले मां कामाख्या धाम के पट, यूपी के इस जिले में है मंदिर
तीन दिन तक मां के गर्भगृह के कपाट बंद होते हैं, जो बुधवार को खोले गए। मां के अद्भुत दर्शन के लिए कई राज्यों से हजारों श्रद्धालु आते हैं।

जसराना का प्रसिद्ध मां कामाख्या का मंदिर
जागरण संवाददाता, फिरोजाबाद। यूपी के फिरोजाबाद जिले के जसराना क्षेत्र स्थित मां कामाख्या धाम के पट बुधवार सुबह चार बजे खोल दिए गए। मां के श्रृंगार के बाद मंगला आरती हुई। रात से ही मां के दर्शन को लाइन लगनी शुरू हो गई थी। सुबह पट खुलने के बाद मंदिर परिसर और आसपास का वातावरण मां कामाख्या की जय-जयकारों से गूंज उठा।
22 जून को बंद हुए थे पट
22 जून को नौ सौभाग्यशाली महिलाओं के द्वारा धाम के पट बंद किए गए थे। इसके बाद भजन-संकीर्तन का दौर शुरू हो गया था। सुबह इन्हीं महिलाओं ने पट खोले तो जय-जयकार होने लगी। दिन बढ़ने के साथ ही श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी थी। एक-एक किमी लंबी लाइन लग गई थी। पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के बेहतर इंतजाम किए थे। वाहन रूट डायवर्जन कर बाईपास से गुजारे गए।
इन महिलाओं ने की थी पूजा
पट बंद होने से पहले ब्लॉक प्रमुख संध्या लोधी, अंबाला की पूनम चौहान, अलीगढ़ की सरिता गुप्ता, फर्रुखाबाद की विमला परिहार, छर्रा की दिव्या गुप्ता, जसराना की कुसुम यादव, हरदोई की विट्टो देवी, फिरोजाबाद की शिवकुमारी, शिकोहाबाद की साधना यादव ने मां की मंगला आरती की।
असोम के कामाख्या धाम की तरह होता है महोत्सव
जसराना कस्बा स्थित मां कामाख्या का अति प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। यहां पर असम के कामाख्या धाम की तरह ही वर्ष में एक बार अंबुबाची महोत्सव का आयोजन किया जाता है। मंदिर बंद होने से पूर्व माता की सेवा में सिर्फ महिलाएं रहती हैं। पीठाधीश महेश स्वरूप ब्रह्मचारी बताते हैं कि मां कामाख्या के रजस्वला होने पर अंबुबाची महोत्सव मनाया जाता है। 22 से 26 जून तक धार्मिक कार्यक्रमों का आयाेजन होता है। इस दौरान दो दिन तक मंदिर के पट बंद रहते हैं और बाहर भजन कीर्तन होते हैं। 25 और 26 जून को मां के विशेष दर्शन होते हैं।
खंडहर भूमि पर वर्ष 1976 में पड़ी थी नींव
मां कामाख्या देवी के मंदिर की नींव वर्ष 1976 में पड़ी थी। यह स्थल खंडहर के रूप में था। जैथरा, एटा से स्वामी माधवानंद यहां पर आए तो क्षेत्रीय लोगों ने उनसे यहां मंदिर बनाने के लिए कहा। वह मां कामाख्या के भक्त थे। उन्होंने सफाई कराकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। 31 अक्टूबर 1984 को कामाख्या मंदिर की स्थापना हुई।
ऐसे पहुंचे मंदिर
- एटा से फिरोजाबाद आने वाले भक्त शिकोहाबाद रोड पर जसराना स्थित मंदिर में पहुंच सकते हैं। एटा से मंदिर की दूरी 26 किमी है।
- मैनपुरी की तरफ से आने वाले भक्त मैनपुरी एटा रोड से होते हुए जसराना पहुंच सकते हैं, मैनपुरी से दूरी 38 किमी है।
- आगरा एवं अन्य जगह से आने वाले भक्त शिकोहाबाद होकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। शिकोहाबाद में एटा चौराहा से जसराना की दूरी 16 किमी है।
जयपुर से अपहृत बच्चा मिलने पर आई थी प्रतिमा
क्षेत्रीय लोग बताते हैं कि जयपुर से एक बच्चे का अपहरण हुआ था। स्वजन उसे खोजते हुए जसराना पहुंचे तो कुछ लोगों के कहने पर वह मंदिर में पहुंचे। उस समय यहां प्रतिमा नहीं थी, बस स्वामी जी पूजा करते थे। स्वामी जी ने स्वजन से कहा, बच्चा कल तक मिल जाएगा। दूसरे दिन बच्चा थाने पहुंचा। उसने बताया कि उसे कस्बा के निकट एक खेत में हाथ-पैर बांध कर रखा गया था, लेकिन रात में एक बालिका आई और उसके आते ही हाथ खुल गए। उसने ही निकलने की राह दिखाई। इसके बाद से यहां की मान्यता बढ़ गई। स्वजन द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे में भक्तजनों ने सहयोग राशि मिलाकर प्रतिमा की स्थापना कराई।
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