खून के काले धंधे की जिले पर पड़ीं छींटें
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खून के काले धंधे की जिले पर पड़ीं छींटें
जागरण संवाददाता, फतेहपुर : खून का काला धंधा करने वालों तस्करों के हाथ गैर जनपदों और राज्यों में फैले हुए हैं। कई महीनों से इस धंधे में जुटे तस्करों के पीछे पड़ी एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) ने राजफाश किया है। सात आरोपितों को गिरफ्तार करके खून की आपूर्ति जिले के आभा ब्लड बैंक में किए जाने की पुष्टि की है। तस्करों के पास से 302 यूनिट खून बरामद किया गया है। सातों आरोपितों को लखनऊ से गिरफ्तार किया है।
स्वास्थ्य से जुड़े इस कारोबार में जांच और नियमों के पालन का सारा दारोमदार औषधि विभाग के कंधों पर है। स्वास्थ्य विभाग से कोई लेना देना नहीं होता है। ब्लड बैंक कमाने का साधन बने हुए हैं। शासन की ओर से 350 मिली खून के एक पालीबैग की कीमत 1,450 रुपये तय की गई है। खून चढ़वाने वाले तीमारदारों की मानें तो खून के इंतजाम में तीन हजार रुपये अथवा अधिक लिए जाते हैं। मरीज की जान बचाने के लिए मजबूरी में तीमारदार अधिक रुपये अदा करते हैं। मामले में आरोपितों की ओर से मिले साक्ष्यों के आधार पर शहर के शांतिनगर मोहल्ले के जीटी रोड में संचालित आभा ब्लड बैंक का नाम भी आया है। आरोपितों ने स्वीकार किया है कि जिले के इस ब्लड बैंक में खून की सप्लाई करते थे। जांच के बाद ही तय हो पाएगा कि जिले के जिस ब्लड बैंक का नाम आया है उसका दोष क्या है और क्या सजा मिलेगी।
इसी प्रकरण में सेंट्रल ड्रग इंस्पेक्टर कर चुके हैं जांच
मई माह में सेंट्रल ड्रग इंस्पेक्टर देशराज जिले में आए थे। उन्होंने स्थानीय विभाग के अफसरों के साथ ब्लड बैंक का रिकार्ड जांचा था। रिकार्ड में एक साल में 2,500 यूनिट ब्लड खर्च होने के साक्ष्य मिले थे। सेंट्रल ड्रग इंस्पेक्टर ने चप्पा चप्पा छाना था। रिकार्ड ले जाने के बाद जांच रिपोर्ट तैयार की थी और केंद्र तथा प्रदेश सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी।
35 दिनों में नियमत: उपयोग में आ जाना चाहिए खून
जिला औषधि विभाग के जिम्मेदार बताते हैं कि मानव शरीर से निकाला गया खून 35 दिनों में उपयोग में आ जाना चाहिए। इसके बाद रक्तहीन मरीज को ब्लड चढ़ाना खतरनाक हो सकता है। ब्लड बैंक में खून को ठंडा करने के लिए कोल्ड चेन अनिवार्य है तो साफ सफाई और रखरखाव बेहतर होना चाहिए।
आनलाइन आवेदन और त्रिस्तरीय जांच के बाद मिलता लाइसेंस
औषधि निरीक्षक के मुताबिक ब्लड बैंक के लिए लखनऊ मुख्यालय के दफ्तर में आनलाइन आवेदन करना होता है। इसके बाद सेंट्रल, मंडलीय और जिले की टीम संयुक्त रूप से जांच करती है। केंद्र सरकार को जांच रिपोर्ट जाती हैं। रिपोर्ट से संतुष्ट होने पर पांच साल के लिए लाइसेंस दिया जाता है। इसके बाद नवीनीकरण कराया जाता है। जिले में दो निजी ब्लड बैंक आभा व श्याम नर्सिंग होम संचालित है।
तीन ब्लड बैंक संचालित, 2018 में मिला था आभा ब्लड बैंक को लाइसेंस
जिला औषधि विभाग के दस्तावेजों में जिले में तीन ब्लड बैंक संचालित हो रहे हैं। इसमें एक जिला अस्पताल में तो दूसरा आभा ब्लड बैंक और तीसरा श्याम ब्लड बैंक है। वर्ष 2018 में आभा ब्लड बैंक को सेंट्रल से लाइसेंस मिला था। नियमों के मुताबिक 2023 में इस ब्लड बैंक का नवीनीकरण किया जाता है।
तत्कालीन जांच में नहीं मिली थी खामी, निर्देश पर फिर होगी जांच : डीआइ
औषधि निरीक्षक (डीआइ) विनय कृष्णा ने कहा, एसटीएफ की ओर से चार महीने पहले एक प्रकरण को पकड़ा था। इस पर जांच बैठी थीं, जिसमें उन्नाव और जिले के आभा ब्लड बैंक की संयुक्त रूप से जांच सेंट्रल से आए डीआइ ने की थी। इसमें उन्नाव के ब्लड बैंक का लाइसेंस निरस्त हो गया था और आभा में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई थी। उच्चाधिकारियों का निर्णय होता है तो जिले जांच मिलेगी वह जांच करेगा।

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