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    बेहद रोचक है इस लोकसभा सीट का इतिहास, पूर्व PM लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र और वीपी सिंह के पुत्र को भी मिली थी हार

    गंगा-यमुनी संस्कृति को संभाले संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज कुछ अलग है। मतदाताओं ने बाहरी नेताओं को तो गले लगाया लेकिन उनकी विरासत लेने के प्रयास को ठुकरा दिया। वर्ष 1989 में मंडल के रथ पर सवार होकर आए विश्वनाथ प्रताप सिंह ने संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित होकर देश के प्रधानमंत्री बने इसके बाद वर्ष 1991 में भी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एकतरफा जीत दर्ज की।

    By Govind Dubey Edited By: Abhishek Pandey Updated: Wed, 27 Mar 2024 09:52 AM (IST)
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    पूर्व PM लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र और वीपी सिंह के पुत्र को भी मिली थी हार

    जागरण संवाददाता, फतेहपुर। (Fatehpur Lok Sabha Seat 2024) गंगा-यमुनी संस्कृति को संभाले संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज कुछ अलग है। मतदाताओं ने बाहरी नेताओं को तो गले लगाया लेकिन उनकी विरासत लेने के प्रयास को ठुकरा दिया।

    जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र विभाकर शास्त्री अपने पिता हरिकृष्ण शास्त्री व अजेय सिंह अपने पिता पूर्व पीएम वीपी सिंह की विरासत को संभालने के लिए चुनाव मैदान में कूदे लेकिन मतदाताओं की कोई तवज्जों ने मिलने से निराश हो गए।

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    1980 में हरीकृष्ण शास्त्री ने दर्ज की थी जीत

    संसदीय क्षेत्र से पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र हरिकृष्ण शास्त्री वर्ष 1980 कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़े। उस समय मुकाबले में लोकदल से सैयद लियाकत हुसैन स्थानीय प्रत्याशी थे। जिलेवाद के नारे को बेअसर करते हुए हरिकृष्ण शास्त्री ने जीत दर्ज किया। वर्ष 1984 के चुनाव में मतदाताओं ने भरपूर समर्थन देते हुए फिर संसद पहुंचाया।

    वर्ष 1989 के चुनाव में बोफोर्स की आंधी में कांग्रेस के ऐसे पैर उखड़े कि हरिकृष्ण शास्त्री दो बार चुनाव हारे। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे विभाकर शास्त्री विरासत को संभालने में आगे आए। विभाकर ने वर्ष 1998, 1999, 2009 में चुनाव मैदान में उतरे और स्वर्गीय पिता द्वारा कराए गए विकास कार्यों को लेकर मतदाताओं तक गए। उनके पिता को भइया व भाभी का दर्जा मिला हुआ था। विभाकर भतीजा बनकर वोट मांगे लेकिन सफलता नहीं मिल पाई।

    वर्ष 1989 में मंडल के रथ पर सवार होकर आए विश्वनाथ प्रताप सिंह ने संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित होकर देश के प्रधानमंत्री बने, इसके बाद वर्ष 1991 में भी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एकतरफा जीत दर्ज की। इनके पुत्र विरासत संभालने के लिए वर्ष 2009 में जनमोर्चा के टिकट पर संसदीय क्षेत्र में किस्मत आजमाई लेकिन जिले की जनता से सिरे से खारिज कर दिया, इन्हें महज 7422 वोट ही मिले।

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