Updated: Fri, 15 Aug 2025 04:02 PM (IST)
फतेहपुर के आबूनगर रेडइया स्थित मकबरे के दस्तावेजों में भूमि के आकार में बड़ा अंतर पाया गया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड और राजस्व खतौनी के रिकॉर्ड में 10.05 बीघे का फर्क है। 1985 में 15 बिस्वा जमीन दर्ज थी जो 2012 में बढ़कर 11 बीघे हो गई। दस्तावेजों में यह भी दर्ज है कि पहले किसान सुरेश के खेत थे जो अब गायब हैं।
जागरण संवाददाता, फतेहपुर। आबूनगर रेडइया स्थिति मकबरे के वे दस्तावेज भी गुरुवार को बाहर आ गए हैं, जो सुन्नी वक्फ बोर्ड में दर्ज हैं। बड़ी बात यह है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड और सदर तहसील की राजस्व खतौनी में दर्ज भूमि में 10.05 बीघे भूमि का अंतर है।
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1985 के गजट में इस मकबरे की 15 बिस्वा जमीन समेत इमारत थी, लेकिन 2012 में जब इस मकबरे का नाम पहली बार राजस्व खतौनी में दर्ज हुआ तो जमीन पहले से 10.05 बीघे बढ़ गयी। आबनगर रेडइया में औरंगजेब के मकबरे का नोटिफिकेशन वर्ष 1985 में एडब्ल्यूसी (एडिशनल वक्फ कमिश्नर) की रिपोर्ट पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने किया था।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के गजट नंबर 1526 में ‘मकबरा औरंगजेब वाला’ के नाम गाटा संख्या 753 से मात्र 15 बिस्वा जमीन मकबरा सहित दर्ज है। यह जमीन मकबरे के लिए किसने दी, इसका विवरण सुन्नी वक्फ बोर्ड की सूची में नहीं है। 2012 में जब मकबरा मंगी राष्ट्रीय संपत्ति द्वारा, मो. अनीश मुतवल्ली दर्ज किया गया तो जमीन का आकार 11 बीघे हो गया। अब सवाल यह है कि आखिर यह जमीन कैसे बढ़ गई।
हालांकि इस संबंध में अब तक कोई भी राजस्व अफसर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी प्रशांत साहू ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के दस्तावेजों के बावत पुष्टि करते हुए बताया कि वक्फ नंबर 1635 में मकबरा औरंगजेब वाला दर्ज है।
1985 में मकबरे पास थे सुरेश के खेत जिस समय मकबरे का नाम लखनऊ स्थिति सुन्नी वक्फ बोर्ड में दर्ज किया गया था, उस समय गाटा नंबर 753 से 15 बिस्वा जमीन देने के बाद चौहद्दी का भी नाम लिखा गया था। उस समय की चौहद्दी में उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम में किसान सुरेश कुमार के खेत दर्ज होना दर्शाया गया है। लेकिन वर्तमान खतौनी में समूचा गाटा नंबर मकबरा मंगी द्वारा मो. अनीश मुतवल्ली के नाम दर्ज है।
सुरेश किसान कहां गए और अब उनकी जमीन कहां है, यह नाम ही गायब है। रामनरेश सिंह ने गाटा 753 से की थी बिक्री शकुंतलामान सिंह को यह गाटा नंबर 1970 में वरासतन मिला था, जिसके बाद इसी वर्ष में उन्होंने यह गाटा नंबर की संपूर्ण भूमि असोथर के राम नरेश सिंह को बेची थी।
रामनरेश सिंह के बेटे विजय प्रताप सिंह की देखरेख में 2001 से 2015 के बीच इसी गाटे से प्लाट बेंचे गए जिसमें 34 मकान बने हुए हैं। हालांकि इन मकानों की वैधता को लेकर अब तक कार्रवाई लंबित है।
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