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इमली के बूढ़े दरख्त की सुन लो आवाज

By Edited By: Published: Sun, 27 Apr 2014 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 27 Apr 2014 01:00 AM (IST)

बिंदकी, संवाद सहयोगी : 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बांकी निशा होगा'। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंकने वाले अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह अटैया व उनके 51 अज्ञात साथियों को 28 अप्रैल 1858 को फांसी दे दी गई। जिस इमली के पेड़ में इन क्रांतिकारियों को फांसी दी गई, आज वह एक वृक्ष तीर्थ बन चुका है। यहां पहुंचने वाले लोग खुद-ब-खुद उक्त पंक्तियां शहीदों की याद में खुद ही गुनगुनाने लगते हैं।

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इमली का पुराना दरख्त अब भी पीढि़यों को आजादी के लिए दी गई कुर्बानियों की कहानी सुना रहा है। बिंदकी से खजुहा जाने पर मुगल रोड में पारादान गांव की जमीन पर स्थित यह इमली का पेड़ आजादी की लड़ाई लड़ने वालों की शहादत का गवाह बना हुए है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी जब देश में फूटी तो इससे फतेहपुर भी अछूता नहीं रहा। यहां की माटी में जन्मे लालों ने गोरों से गुरिल्ला युद्ध कर उनके पैर उखाड़ने शुरू कर दिए। ऐसे ही वीर सपूत थे बिंदकी के अटैया रसूलपुर (अब पधारा) गांव के ठाकुर जोधा सिंह अटैया। छापामार युद्ध में पारंगत जोधा सिंह अटैया ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया। अवध व बुंदेलखंड के क्रांतिकारियों के संपर्क आए जोधा सिंह ने महमूदपुर गांव में रुक एक अंग्रेज दारोगा व सिपाही को जलाकर मार डाला था। 7 दिसंबर 1857 को रानीपुर गांव में बनी पुलिस चौकी में हमला कर घोड़े हांक ले गए। इस बीच अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले इस वीर सपूत को खबर मिली कि वीर योद्धा ठाकुर दरियाव सिंह को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। इस पर अपने साथियों के साथ खजुहा की ओर आ रहे थे, तभी उनको व उनके 51 क्रांतिकारी साथियों को 28 अप्रैल 1858 को कर्नल क्रस्टाइल की घुड़सवार सेना ने बंदी बना लिया। इसके बाद पारादान के पास स्थित इसी इमली के पेड़ पर सभी को फांसी दे दी गई। तब से इस इमली के पेड़ को बावनी इमली के नाम से पुकारा जाता है। उस वक्त अंग्रेजों का इतना खौफ था कि किसी ने इन शहीदों के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार नहीं किया। सभी शव पेड़ पर ही झूलते रहे। तब 3/4 मई 1858 को रात में रामपुर पहुर निवासी ठाकुर महराज सिंह ने सभी के अस्थि पंजर उतरवाए और शिवराजपुर गंगा घाट में अंतिम संस्कार किया। आज भी यहां भारत मां के इन अमर सपूतों को याद किया जाता है। तब से बावनी इमली का यह वृक्ष तीर्थ बन गया है। यहां शहीद दिवस के अलावा राष्ट्रीय पर्वो पर भी यहां पुष्पांजलि अर्पित करने लोग पहुंचते हैं।

कवि ने माना बावन इमली वृक्ष तीर्थ

::::साहित्यकार वेद प्रकाश मिश्र ने शहीद स्माकर बावनी इमली पर अमर शहीदों की गाथा को काव्य रूप प्रदान करने करते हुए कृतियां सृजित की हैं। इन कृतियों में बावनी इमली और दूसरी फतेहपुर क्रांति के पुरोधा, दरियाव गाथा व हिकमत-जोधा शामिल हैं।


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