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    मानस की जात सभै एकै पहचानबो

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    Updated: Tue, 07 Jan 2014 07:17 PM (IST)

    फतेहपुर, कार्यालय संवाददाता : खालसा पंथ की स्थापना कर सिक्ख धर्म को एक सूत्र में बांधने वाले गुरु गोविंद सिंह का प्रकाशोत्सव (जयंती) धूमधाम से मनाई गई। गुरु जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर चर्चा कर उनके द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने का संकल्प दोहराया गया। गुरुद्वारे में धार्मिक अनुष्ठान के बाद अटूट लंगर का आयोजन किया गया।

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    शहर के रेल बाजार मुहल्ला स्थित गुरुद्वारा श्री गुरुसिंह सभा में गुरु गोविंद सिंह का 348 वां प्रकाशोत्सव धूमधाम से मनाया गया। 40 घंटे पूर्व से रखे गए गुरुवाणी के साथ में भक्तों ने भाग लिया। शबद-कीर्तन के कार्यक्रम में श्रद्धालुओं ने भाग लेकर आशीर्वाद के लिए शीश नवाया। दोपहर 1 बजे से लंगर का आयोजन किया गया। जिसमें हजारों की संख्या में भाग लिया। पुजारी ज्ञानी गुरुवचन सिंह ने बताया कि गुरुजी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना बिहार में हुआ था। 11 नवंबर 1675 को वह गुरु की पदवी पर आसीन हुए। वह एक महान योद्धा, कवि एवं अध्यात्मिक नेता थे। उन्होंने जीवन भर धर्म की रक्षा की। सब न्योछावर करते हुए अपने मिशन को अंतिम पायदान तक पहुंचाया। हिंदुओं का खोया हुआ सम्मान वापस दिलाया। धर्म प्रतीक चिन्हों से लोगों को अपमान से मुक्ति दिलाई। 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। यह तारीख सिक्खों के इतिहास में महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इसके अलावा गुरुजी ने गुरुग्रंथ साहिब को पूरा कराया। इसे ही शास्वत गुरु घोषित किया। उन्होंने आनंद साहिब का किला छोड़ते समय जंग के मैदान में 250 शहीद करवा लेकिन धर्म की रक्षा में विजय की पताका फहराई। इस मौके पर संतोष सिंह बग्गा, दर्शन सिंह बग्गा, चानन सिंह, पपिंदर ंिसह, रजिंदर सिंह, लाभ सिंह, दर्शन सिंह, गोविंद सिंह, सुरिंदर सिंह छोटू, विद्या भूषण तिवारी, गुरुचरन कौर, मंजीत कौर खुशी, जगजीत, लाडी कौर, मंजीत, हरजीत, कमलजीत, जसप्रीत, जागृति आदि मौजूद रहे।

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