फिरंगियों को खदेड़ 32 दिन तक चलाई स्वतंत्र सरकार
गोविंद दुबे, फतेहपुर
1857 की विद्रोह की चिंगारी ने जिले की अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया। बिठूर के नाना साहब के निर्देशन पर क्रांतिकारियों ने पहले खागा राजकोष पर अधिकार कर अंग्रेजों से सत्ता छीनी, फिर फतेहपुर में दबाव बनाया तो कलक्टर मि. टक्कर ने आत्महत्या कर ली। सरकारी बंगले को फूंकने के बाद क्रांतिकारियों ने जेल से कैदियों को मुक्त कराया और 9 जून को समूचे जनपद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। नाना जी की सलाह पर डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला को यहां का चकलेदार (प्रशासक) बनाया गया।
खागा के ठाकुर दरियाव सिंह, बिठूर के नाना साहब, अवध के केशरी राणा बेनीमाधव सिंह ने गुप्त बैठकें कर जनपदों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। 4 जून को कानपुर और 7 जून को इलाहाबाद स्वतंत्र घोषित हो गए। इसके बाद 200 विद्रोहियों ने फतेहपुर में डेरा डाल दिया। 8 जून को ठाकुर दरियाव सिंह के सेनानायक व उनके पुत्र सुजान सिंह ने खागा के राजकोष में कब्जा कर लिया और स्वतंत्रता का ध्वज लहरा दिया। 9 जून को फतेहपुर कचहरी और राजकोष में कब्जा जमाने के लिए सारे सैनिकों ने धावा बोला, जिसमें रसूलपुर के जोधा सिंह अटैया, जमरावा के ठाकुर शिवदयाल सिंह कोराई के बाबा गयादीन दुबे भी फौज फाटे के साथ शामिल हुए। क्रांतिकारियों का दबाव बढ़ा तो अंग्रेज कलक्टर मि. टक्कर ने बंगले में ही आत्महत्या कर ली और दीवार में लिख दिया कि कोराई के गयादीन दुबे की वादा खिलाफी पर जान दी है। 10 जून को विद्रोही जेल पहुंचे और बंदियों को मुक्त कराया।
बिठूर में नाना साहब को फतेहपुर के स्वतंत्र होने की जैसे ही खबर लगी, उन्होंने स्वतंत्र सरकार के चकलेदार (प्रशासक)के रूप में डिप्टी कलक्टर हिकमत उल्ला खां को नियुक्त कर दिया। फतेहपुर व कानपुर में पूर्ण अधिकार मिलने की खुशी में बिठूर में तोपें दागी गई और क्रांतिकारियों ने सभी जिले के कोतवालों को यह हुक्म दिया कि नगर व गांवों में डुग्गी पिटवाकर यह बता दिया जाए कि अब अपनी सरकार है।
एक माह तक जिले में स्वतंत्र सरकार चली। उधर अंग्रेजी हुकूमत विद्रोहियों को कुचलने की पूरी रणनीति तैयार कर रही थी। 11 जून को मेजर रिनार्ड को फतेहपुर में अधिकार जमाने के लिए इलाहाबाद से रवाना किया गया। सेना की एक टुकड़ी के साथ उसने जीटी रोड के कटोघन गांव में पड़ाव डाल दिया। इसकी सूचना जैसे ही ठाकुर दरियाव सिंह को मिली, नाना साहब को जानकारी दी फिर दोनों तरफ से मोर्चेबंदी शुरू हो गई। 11 जुलाई को मेजर रिनार्ड ने खागा में आक्रमण कर दिया। दरियाव सिंह के महल को तोपों से ध्वस्त कर दिया लेकिन कोई गिरफ्तार नहीं हो पाया। अग्रेंजी सेनाओं का दबाव बढ़ा तो जिले के क्रांतिकारियों ने यमुना पार कर बांदा को सुरक्षित ठिकाना बना लिया।
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