अवसर मिले तो सारथी बनो, स्वार्थी नहीं
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भले ही कुछ समय तक स्वार्थ का वाना पहनकर किए गए कार्य स्वयं को खुशियां प्रदान करें, लेकिन लंबे समय तक यह संभव नहीं। भगवान कृष्ण ने गीता में संदेश दिया है कि अवसर मिले तो सारथी बनना, स्वार्थी नहीं। आत्म अवलोकन करने पर स्वार्थी व्यक्ति को कुंठा के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नहीं होता। जबकि अपनत्व, प्रेम व स्नेहवश किया गया नि:स्वार्थ कार्य, व्यवहार स्थाई सम्मान, प्रसन्नता प्रदान करने वाला होता है। नि:स्वार्थ भावना प्रेम से जन्मती है और प्रेम ईश्वर द्वारा मानव को दिया हुआ सर्वोत्तम उपहार है। हम सब अपने को ईश्वर की संतान तो कहते हैं, लेकिन उनके दिए गुणों को आत्मसात कर उन्हें अहंकार व स्वार्थपरता से ढक देते हैं। इसी कारण हमारा समाज दूषित हो रहा है। सर्वविदित है कि संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते हैं। इसलिए अभिभावकों का यह दायित्व बनता है कि वह स्वयं वही आचरण करें, जो अपने बच्चों में देखना चाहते हैं। दैनिक जागरण की संस्कारशाला वास्तव में संस्कृति व संस्कार जागृत रखने के लिए सफल प्रयास कर रही है, वह सराहनीय है। संस्कारशाला में बुधवार को प्रकाशित कहानी 'सच्चे दोस्त की हुई पहचान'''' बच्चों को निस्वार्थ भाव से कार्य करने की प्रेरणा देती है।
- डॉ. किरन कटियार, प्रधानाचार्य कन्या विद्यापीठ कालेज, कायमगंज।
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