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Farrukhabad: गंगा तट पर बसेगी तंबुओं की नगरी; 'मेला रामनगरिया' छह जनवरी से होगा शुरू

Farrukhabad में पांचाल घाट पर गंगा किनारे रामनगरिया मेले का शुभारंभ छह जनवरी 2023 को होगा। मेला समिति ने भूमि के समतलीकरण का काम तेज करा दिया है। 15 दिसंबर के बाद संतों का आगमन शुरू हो जाएगा।

By Mohammad Aqib KhanEdited By: Published: Fri, 09 Dec 2022 03:30 PM (IST)Updated: Fri, 09 Dec 2022 03:30 PM (IST)
Farrukhabad: गंगा तट पर बसेगी तंबुओं की नगरी : फोटो फाइल - मो. आकिब खांन

फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता: पांचालघाट पर गंगा किनारे रामनगरिया मेले का शुभारंभ छह जनवरी 2023 को होगा। मेला समिति ने भूमि के समतलीकरण का काम तेज करा दिया है। संत भी अपने क्षेत्र लगाने के लिए भूमि का चिह्नांकन करने पहुंचने लगे हैं। 15 दिसंबर के बाद उनका आगमन शुरू हो जाएगा। 10 दिसंबर को कलेक्ट्रेट सभागार में रामनगरिया मेला समिति की बैठक भी तय हो गई है।

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पांचालघाट पर हर साल माघ माह में तंबुओं की नगरी बसती है, जिसमें साधु-संतों के अलावा बड़ी तादाद में कल्पवासी एक माह गंगा किनारे रहकर ध्यान, पूजन, भंडारे का आयोजन आदि करते हैं। इस बार मेले का उद्घाटन छह जनवरी को होगा।

मेला सचिव सिटी मजिस्ट्रेट दीपाली भार्गव के निर्देश पर मेला व्यवस्थापक ने ट्रैक्टर लगाकर भूमि समतलीकरण का काम तेज करा दिया है। मेला सचिव नगर मजिस्ट्रेट दीपाली भार्गव ने बताया कि समिति की बैठक 10 दिसंबर को कलेक्ट्रेट सभागार में शाम चार बजे होगी।

मेला व्यवस्थापक संदीप दीक्षित ने बताया कि पांटून पुल का निर्माण का काम भी चल रहा है। उन्होंने बताया कि 16 दिसंबर से साधु-संतों का आना शुरू हो जाएगा। संभावना है कि 20 दिसंबर से कल्पवासी भी आने लगेंगे।

कुम्भ की की तरह होता है मेला रामनगरिया

प्रयागराज (इलाहाबाद) की तरह फर्रुखाबाद में भी गंगा तट पर पांचाल घाट पर माघ मेला (मेला रामनगरिया) लगता है जिसको मिनी कुम्भ भी कहा जाता है। पांचाल घाट (प्राचीन नाम घाटियाघाट) पर हर वर्ष लगने वाला मेला रामनगरिया प्रदेश के प्रसिद्ध मेलों में से एक महत्त्वपूर्ण मेला माना जाता है। देश के विभिन्न शहरों से आये लोग यहां एक माह के प्रवास के लिए आते हैं व गंगा किनारे तम्बू लगा कल्पवास करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि कल्पवास करने से वस्तुतः साधक का कायाकल्प हो जाता है। मनसा, वाचा, कर्मणा व पवित्रता के बिना कल्पवास निष्फल हो जाता है। इसलिए कल्पवास के लिए 21 कठोर नियम बताए गये है, जिनमें झूठ न बोलना, क्रोध न करना, दान करना, नशा न करना, सूर्योदय से पूर्व उठना, नित्य प्रात: संगम स्नान, एक समय भोजन व भूमि पर शयन मुख्य है। प्रत्येक वर्ष लगभग बीस हजार लोग कल्पवास के लिये यहां आते है। बच्चों के मनोरंजन के लिये सर्कस, नौटंकी, मौत का कुआँ आदि अनेकों खेल आकर्षण का केंद्र होते है।

ग्रामीण बाजार लगाया जाता है, जिसमें हर आवश्यक वस्तु मिलती है। रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिये स्टेज बनाई जाती है, जिसमें विभिन्न सरकारी व गैर-सरकारी संस्थागत कार्यक्रम संचालित होते है। कवि सम्मेलन व मुशायरे का भी आयोजन होता है। कुम्भ की तरह यहाँ भी साधु-संत अपने अखाड़ों के साथ आते है।

पंडाल लगते है, जिनमें धार्मिक प्रवचन सुन श्रोता भाव-विभोर हो जाते हैं। इलाज की फ्री व्यवस्था के साथ सरकारी राशन की दुकानों पर अनाज आदि बांटने की समुचित व्यवस्था होती है। मेला रामनगरिया जिले की सांस्कृतिक विरासत है।


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