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    न्यायालय पर सबको भरोसा करना चाहिए: गुप्तेश्वर

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 25 May 2022 12:39 AM (IST)

    ज्ञानवापी मुद्दे पर बोले बिहार के पूर्व डीजीपी प्रियाप्रीतमरासकुंज की महंती समारोह में हुए शामिल

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    न्यायालय पर सबको भरोसा करना चाहिए: गुप्तेश्वर

    अयोध्या : बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय मंगलवार को अयोध्या पहुंचे। उन्होंने रामलला व बजरंगबली के दरबार में हाजिरी लगाई। इस दौरान पत्रकारों से वार्ता करते हुए पूर्व डीजीपी ने ज्ञानवापी मुद्दे पर कहा कि ज्ञानवापी का जो साक्ष्य आ रहे हैं, उनकी समीक्षा कोर्ट कर रहा है। हिदुओं और मुस्लिमों की भी इस मामले पर नजर है। न्यायालय पर सबको भरोसा करना चाहिए, जो आदेश आए उसका पालन करना चाहिए। इस मामले में एआइएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के रुख से असहमत पांडेय ने कहा, ओवैसी के बयान से मुस्लिमों का कल्याण नहीं होता है। सोच समझ कर साक्ष्य के आधार पर ओवैसी को बयान देना चाहिए। पूर्व डीजीपी ने अयोध्या प्रवास के दौरान राजघाट स्थित प्रियाप्रीतमकुंज की महंती समारोह में भी भाग लिया। इस मंदिर की महंती श्रीकांतप्रत्यूषदास को प्रदान की गई। महंती देने वालों में जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य, रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास, जानकीघाट बड़ास्थान के महंत जन्मेजयशरण, बड़ा भक्तमाल के महंत अवधेशदास, राघवराम मंदिर के महंत जगन्नाथदास आदि सहित बड़ी संख्या में संत-महंत रहे।

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    विश्व को जो राम प्रेम से भर दे वह भरत

    जो विश्व को जो राम प्रेम से भर दे, उसे भरत कहते हैं। विश्व का भरणपोषण प्रेम से ही होता है। भरत के नाम की मीमांसा करते हुए रामचरितमानस में कहा गया है, विश्व भरण पोषण कर जोई ताकर नाम भरत अस होई। ..और भरत में यह गुण अपने नाम के अनुरूप कूट-कूट कर भरा है। यह उद्गार हैं, जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य के। वह भरत की तपस्थली नंदीग्राम में वाल्मीकि रामायण पर केंद्रित नौ दिवसीय रामकथा माला का तीसरा पुष्प विसर्जित कर रहे थे। उन्होंने कहा, परमात्म-मिलन ही मानव-जीवन का ध्येय है और इस ध्येय की पूर्ति प्रेम द्वारा ही हो सकती है। जिन मनुष्यों के बीच परस्पर प्रेम सौहार्द और सहयोग की भावना रहती है, जो दूसरों से प्रेम और प्राणि मात्र पर दया का भाव रखते हैं और जो सबके प्रति स्नेह एवं शिष्टता का व्यवहार करते हैं, वे सब परमात्मा से मिलने के अपने ध्येय की ओर ही अग्रसर होते रहते हैं। अध्यात्म का मूल मंत्र प्राणि मात्र के प्रति प्रेम है। भक्ति साधना से मुक्ति का मिलना निश्चित है। जिस भक्त को परमात्मा से सच्चा प्यार होता है, वह भक्त भी परमात्मा को प्यारा होता है।