राम विवाहोत्सव में लीन रामनगरी मिथिला के रंग में रंगी
जानकी महल में फुलवारी प्रसंग की प्रस्तुति के लिए जनकपुर की पुष्प वाटिका का ²श्यांकन. दशरथमहल रंगमहल लक्ष्मणकिला में भी निरूपित हुई जनक-जानकी की नगरी.

अयोध्या : सीताराम विवाहोत्सव में लीन रामनगरी मिथिला के रंग में रंगी नजर आई। जानकीमहल में गत सप्ताह से ही प्रवाहित उत्सव की श्रृंखला सोमवार को फुलवारी प्रसंग से होकर गुजरी। त्रेता के विवरण के अनुसार सीता से परिणय सूत्र में बंधने से पूर्व श्रीराम जनकपुर पहुंचते हैं और राजा जनक की पुष्प वाटिका में उनका सीता से प्रथम मिलन होता है। सोमवार को जानकी महल में यही पुष्प वाटिका फुलवारी प्रसंग के रूप में पूरी संजीदगी से संयोजित थी। मंदिर की मनोहारी वाटिका में सीता-राम के स्वरूपों का मिलन वास्तविकता का आभास दिला रहा था। लीला का आस्वाद लेने वालों में मणिरामदास जी की छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास, लक्ष्मण किलाधीश महंत मैथिलीरमणशरण, तिवारी मंदिर के महंत गिरीशपति त्रिपाठी, निष्काम सेवा ट्रस्ट के व्यवस्थापक महंत रामचंद्रदास, रामकथा मर्मज्ञ डा. सुनीता शास्त्री, सद्गुरु कुंटी के महंत अनिलशरण सहित रामनगरी के कई चुनिदा संत रहे। जानकीमहल के व्यस्थापक आदित्य सुल्तानिया ने मैनेजर नरेश पोद्दार, रामकुमार शर्मा, अशोक वर्मा आदि सहयोगियों के साथ संतों का स्वागत किया। आचार्य पीठ दशरथमहल बड़ास्थान में भी जनक एवं जानकी की नगरी का ²श्यांकन सृजित हो रहा था। लीला की प्रस्तुति के क्रम में ऋषि विश्वामित्र के साथ श्रीराम एवं लक्ष्मण के स्वरूप जनकपुर में रमण कर रहे होते हैं, तो रामकथा की रसधार प्रवाहित करते हुए जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य भी जनकपुर का प्रसंग निरूपित कर रहे होते हैं। इससे पूर्व दशरथमहल पीठाधीश्वर बिदुगाद्याचार्य महंत देवेंद्रप्रसादाचार्य ने कहा, सृष्टि की शुभता-समृद्धि का शीर्ष सीता-राम विवाहोत्सव में निहित है। उनके कृपापात्र रामभूषणदास कृपालु ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा, अयोध्या में यह उल्लास सतत प्रवाहमान होना चाहिए। रंगमहल में महंत रामशरणदास के संयोजन में पुष्पवाटिका लीला का मंचन किया गया, तो मंगलवार को धनुष यज्ञ की लीला की तैयारी शुरू हुई। लक्ष्मणकिला रघुवर दरसन पउले सिया जी के फुलवरिया में- परिके प्रेम भंवरिया में.. जैसे गीतों से गुलजार रहा। किलाधीश महंत मैथिलीरमणशरण के संयोजन में किला का प्रांगण मिथिला की संस्कृति का संवाहक बना हुआ है। मधुर उपासना परंपरा से जुड़ी शीर्ष पीठ रामवल्लभाकुंज में भी राम विवाहोत्सव का उल्लास छलक रहा होता है।
चराचर मां सीता-राम के मिलन की ही अभिव्यक्ति
- आचार्य पीठ दशरथमहल में सात दिवसीय रामकथा का क्रम आगे बढ़ाते हुए जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने राम एवं सीता के मिलन की तात्विक मीमांसा की। उन्होंने कहा, चराचर मां सीता-राम के मिलन की ही अभिव्यक्ति है। उन्होंने श्रीराम समेत चारो भाइयों के नामकरण की कथा सुनाते हुए कहा, जीवन नाम का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए हमारे आचार्य बच्चे के नाम को भगवान के नाम के साथ जोड़ कर रखते थे। प्रभावहीन नाम का जीवन पर नकारात्मक प्रभाव रहता है। गुरु आश्रम में श्रीराम के विद्याध्यन की कथा सुनाते हुए बताया कि जो विद्या हम वर्षों के श्रम से नहीं प्राप्त कर पाते, वह हम एक योग्य गुरु की शरण में जाकर अल्प समय मे ही प्राप्त कर लेते हैं। कथाव्यास ने धनुर्भंग की भी तात्विकता परिभाषित की। कहा, जब विश्वामित्र जैसे महापुरुष का मार्गदर्शन मिलता है, तब संशय और अज्ञान रूपी धनुष टूटता है।
विवाहोत्सव के साथ आचार्य स्मृति की विह्वलता
- रसमोदकुंज में राम विवाहोत्सव के माधुर्य के साथ आचार्य स्मृति की विह्वलता भी परिभाषित हुई। रसमोदकुंज के महंत रामप्रियाशरण के संयोजन में पदों के गायन और सांस्कृतिक परंपरा के पर्याय रस्मों के संपादन से विवाहोत्सव की छटा बिखरी होती है, वहीं मंदिर के संस्थापक आचार्य शत्रुघ्नशरण एवं दूसरे आचार्य सिया छबीली शरण की स्मृति उनकी साधना एवं संतत्व पर छिड़े विमर्श से बयां हो रही होती है। शत्रुघ्नशरण की गणना पहुंचे संतों में होती है। उन्होंने रसिकोपासना की भावना के अनुरूप रसकांतिलता के नाम से अनेक ग्रंथों की रचना की। वे कोठा वाले सरकार के नाम से मशहूर दिग्गज रसिकोपासक रसमोदलता के शिष्य थे और गुरु के नाम से ही उन्होंने पांच दशक पूर्व सरयू तट पर रसमोदकुंज की स्थापना की। उनके शिष्य सियाछबीलीशरण 'भैयाजी' ने गुरु की विरासत की पूरी निष्ठा से सहेज-संभाल की।
यहां चारों भाई बंधेगे परिणय सूत्र में
- मधुर उपासना परंपरा की प्रतिनिधि पीठ रंगमहल का दो सौ वर्ष पुराना विवाह मंडप रंग-रोगन के साथ भव्यता का एहसास करा रहा है। यह मंडप महान रसिक संत सरयूशरण की याद दिलाता है। उनके बारे में मान्यता है कि उन्हें श्रीराम का साक्षात्कार हुआ था। इसी विरासत के अनुरूप रंगमहल के विग्रह आज भी चिन्मय-चैतन्य माने जाते हैं। वर्तमान महंत रामशरणदास के संयोजन में यह मान्यता तब शिखर पर होगी, जब रंगमहल के गर्भगृह में स्थापित भगवान राम सहित भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न के विग्रह क्रमश: सीता, मांडवी, उर्मिला एवं श्रुतिकीर्ति के विग्रह से वैदिक कर्मकांड के बीच परिणय सूत्र में बंधेंगे।
कल निकलेगी दर्जन भर मंदिरों से रामबरात
- कनकभवन, मणिरामदास जी की छावनी, रामवल्लभाकुंज, रामहर्षणकुंज, विअहुतिभवन आदि प्रमुख मंदिर भी सीताराम विवाहोत्सव से रोशन हैं। बुधवार को करीब दर्जन भर मंदिरों से रामबरात निकलेगी और दो दर्जनों से अधिक मंदिरों में विवाह की रस्म संपादित होगी।
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