उद्घाटित हुआ त्रेतायुगीन धरोहर का महात्म्य
इंटैक के संयोजन में निकली धरोहर यात्रा में शामिल लोग भरतकुंड और उसके आसपास के पौराणिक स्थलों से हुए परिचित

अयोध्या : इंटैक अयोध्या चैप्टर की ओर से भरतकुंड धरोहर यात्रा निकाली गई। यात्रा में शामिल 40 से अधिक प्रकृति-संस्कृति एवं कला-अध्यात्म के अनुरागियों ने अयोध्या की परंपरा का मर्म स्पर्शित करते श्रीराम के अनुज भरत की तपस्थली नंदीग्राम, भरतकुंड और उसके आस-पास के प्राचीन-पौैराणिक स्थलों की यात्रा कर उनकी महत्ता शिरोधार्य की। यात्रा की अगुवाई इंटैक अयोध्या चैप्टर की संयोजक मंजुला झुनझुनवाला एवं धरोहर यात्रा संयोजक डा. दिव्या शुक्ल की अगुवाई में आयोजित यात्रा तमसा नदी से शुरू होकर भरतकुंड के इर्द-गिर्द मंदिरों की श्रृंखला तक चली। इस बीच यात्रा में शामिल लोगों ने हनुमानगढ़ी, गयाकुंड, पिशाचमोचनकुंड, भरत गुफा, भरत-हनुमान मिलन मंदिर, भरत-राम मिलाप मंदिर, मांडव्य आश्रम एवं कालिकादेवी मंदिर इत्यादि स्थलों का पूरी संवेदना और दायित्वबोध के साथ अवलोकन किया। यात्रा के दौरान लोगों ने भरत कूप के शर्करा जैसे मधुर जल का रसास्वादन भी किया। मान्यता है कि इसमें 27 पवित्र तीर्थों का जल लाकर मिश्रित किया गया था। धरोहर यात्रा की संयोजक डा. दिव्या शुक्ला ने आयोजन को सफल बनाने के लिए प्रतिभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। यात्रा की सह संयोजक अनुजा श्रीवास्तव सहित इंटैक के अनेक सदस्य तथा हेरिटेज क्लब के सदस्य यात्रा में सहयोगी रहे। धरोहर सहेजने के लिए उत्सुक हैं लोग
- इंटैक की चैप्टर संयोजक मंजुला झुनझुनवाला ने यात्रा में शामिल लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि इंटैक ऐसी धरोहर यात्राओं के माध्यम से लोगों को अयोध्या की गौरवशाली धरोहरों के बारे में जागरूक करने का निरंतर प्रयास कर रहा है। इस क्षेत्र में लोगों की रुचि और सक्रिय प्रतिभागिता से यह सिद्ध हो जाता है कि लोग अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक व पौराणिक धरोहरों को संजोने-सहेजने के लिए अत्यधिक उत्सुक हैं।
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प्रामाणिक ग्रंथों में मिलता है वर्णन
- यात्रा में वक्ता की भूमिका निभा रहे राघवेंद्र अवस्थी ने बताया कि रामायण के अयोध्या कांड, शहरनामा फैजाबाद एवं अयोध्या माहात्म्य जैसी पुस्तकों के विवरण के अनुसार तमसा नदी के तट पर ही वनगमन के समय प्रभु श्रीराम ने प्रथम रात्रि विश्राम किया था। इसका उद्गम स्थल जिले के पश्चिमी छोर पर स्थित मवई ब्लाक के लखनीपुर गांव के समीप माना जाता है। आगे चल कर यह नदी टोंस के नाम से जानी जाती है। चित्रकूट से लौट कर जिस स्थल पर रुक कर भरत जी ने तपस्या की थी, उसे भरत गु़फा के नाम से जाना जाता है। गयाकुंड भरतकुंड के दक्षिण में स्थित है। मान्यता है कि श्रीराम ने दशरथ जी का श्राद्ध यहीं किया था। पिशाचमोचन कुंड के बारे में कहा जाता है कि यहां पिशाच योनि से मुक्ति मिलती है।
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