भरतकुंड : जहां भगवान राम ने किया था पिता का तर्पण
सदियों से आस्था का केंद्र है भरतकुंड
अयोध्या : सप्तपुरियों में अग्रणी अयोध्या से करीब 16 किलोमीटर दूर स्थित भरतकुंड यूं तो भगवान राम के वनवास के दौरान भरत की तपोस्थली के तौर पर विद्यमान है, लेकिन यह वह स्थान भी माना जाता है, जहां वनवास से लौटने पर भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिडदान किया था। भगवान विष्णु के बाएं पांव का गया जी में तो दाहिने पांव का चिह यही गयावेदी पर है। पितृपक्ष में हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपने पूर्वजों का पिडदान करने के लिए यहां जुटते रहे हैं, हालांकि इस बार कोरोना की वजह से पिडदान करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बेहद कम है।
भरतकुंड में किया पिडदान, गया तीर्थ के समान ही फलदायी माना गया है। इसीलिए भरतकुंड को 'मिनी गया' भी कहा जाता है। यही वजह है कि पितृपक्ष में भरतकुंड आस्था का केंद्र होता है। देशभर से जुटने वाले हजारों श्रद्धालु अपने पुरखों का पिडदान कर उनके मोक्ष की कामना करते हैं। बड़ा स्थान दशरथमहल के संत व भरत तपस्थली के व्यवस्थापक कृपालु रामभूषण दास बताते हैं कि यह स्थान सदियों से आस्था के केंद्र में रहा है। उन्होंने बताया कि भगवान राम के अपने पिता का पिडदान करने के बाद से ही यहां पूर्वजों का पिडदान करने की परंपरा चली आ रही है। ............. कूप में 27 तीर्थो के जल की मान्यता
सदियां बीत गईं, लेकिन भरत के तप का प्रवाह इस भूमि पर अब भी महसूस किया जा सकता है। भगवान राम के वनवास के दौरान भरतजी ने उनकी खड़ाऊं रखकर यहीं 14 वर्ष तक तप किया था। मान्यता है कि भगवान के राज्याभिषेक के लिए भरत 27 तीर्थों का जल लेकर आए थे, जिसे आधा चित्रकूट के एक कुंआ में डाला था, बाकी भरतकुंड स्थित कुंआ में। यह कुआं आज भी मौजूद है। कुंआ के पास ही सदियों पुराना वट वृक्ष भी है। भरतकुंड आने वाले श्रद्धालु कुंआ का जल अवश्य ग्रहण करते हैं।