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सरयू ही नहीं इन सात नदियों से युक्त है अयोध्या Ayodhya News

84 कोस की परिधि में सरयू सहित कुटिला मनोरमा तमसा तिलोदकी वेदश्रुति ओर गोमती से सज्जित है अयोध्या।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 27 Dec 2019 04:02 PM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 04:02 PM (IST)
सरयू ही नहीं इन सात नदियों से युक्त है अयोध्या Ayodhya News
सरयू ही नहीं इन सात नदियों से युक्त है अयोध्या Ayodhya News

अयोध्या [रघुवरशरण]। रामनगरी के वैभव की कल्पना यहां बहने वाली सात नदियों से की जा सकती है। पुण्य सलिला सरयू रामनगरी की पहचान के तौर पर प्रवाहमान हैं पर रामनगरी अकेले सरयू ही नहीं कई अन्य नदियों से युक्त है। राजा दशरथ ने त्रेता में पुत्र की कामना से जिस मख स्थान पर यज्ञ किया था, वहां से रामनगरी की 84कोसी परिक्रमा का आगाज होता है। इस स्थल तक पहुंचने के लिए सरयू सहित कुटिला नाम की नदी पार करनी पड़ती है। श्रद्धालु इन नदियों को नमन करते हुए 84कोसी परिक्रमा का आगाज करने के लिए आगे बढ़ते हैं। 

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जिस मख स्थान पर राजा दशरथ ने यज्ञ किया था, उसी से स्पर्शित मनोरमा नाम की नदी बहती है। इस नदी का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। 84कोसी परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु मनोरमा का जल शिरोधार्य कर परिक्रमा की शुरुआत करते हैं। 84कोस की परिधि में तमसा नदी भी किसी परिचय की मोहताज नहीं है। यह नदी अपने वजूद के लिए लंबे समय से संघर्षरत है। इसी वर्ष के आरंभ में तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ. अनिल कुमार ने तमसा की नए सिरे से खुदाई शुरू कराकर नवजीवन देने का प्रयास किया। यह वही तमसा है, जिसके बारे में रामकथा से संबंधित ग्रंथ बताते हैं कि वनगमन के दौरान भगवान राम ने प्रथम रात्रि इसी नदी के तट पर गुजारी। 

अयोध्या जिला के मवई कस्बा के निकट जिस लखनीपुर गांव से तमसा का प्रादुर्भाव हुआ, वह अयोध्या जिला में होने के साथ 84कोसी परिक्रमा का प्रमुख पड़ाव भी है। इसी परिधि में एक अन्य पौराणिक नदी वेदश्रुति का भी वजूद मिलता है। हालांकि लोकजीवन में अब यह नदी वेदश्रुति की बजाय बिसुही नाम से जानी जाती है। इस नदी की पहचान संकटग्रस्त है। रामनगरी की 84कोसी परिक्रमा की परिधि गोमती नदी से स्पर्शित है। रामनगरी में एक अन्य त्रेतायुगीन नदी तिलोदकी भी प्रवाहमान रही है। रामनगरी में ही सीताकुंड के करीब तिलोदकी और सरयू का संगम पवित्र स्थल के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। प्रत्येक वर्ष भाद्र माह की अमावस्या को यहां स्नान के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते रहे। अतिक्रमण के चलते गत चार-पांच दशक के दौरान तिलोदकी लुप्त हो गईं। राजस्व अभिलेखों में तिलोदकी का बेसिन अभी भी दर्ज है। 

नदियों को पुनर्जीवन देने की दरकार

परिस्थितिकी में हो रहे निरंतर बदलाव की वजह से देश की अन्य नदियों की तरह रामनगरी की नदियां संकट का सामना कर रही हैं। सरयू और कुटिला अभी सदानीरा बनी हुई हैं पर अन्य नदियों का वजूद बचाना कठिन हो रहा है और उन्हें पुनर्जीवित करने की जरूरत है। तिलोदकी को पुनर्जीवित करने की मुहिम चलाने वाले मित्रमंच के प्रमुख शरद पाठक कहते हैं, नदियों को पुनर्जीवित करने से न केवल पर्यटन, पर्यावरण और पौराणिकता पुष्ट होगी, बल्कि कृषि और रोजगार की संभावना भी प्रशस्त होगी।


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