ऋषि आस्तिक के क्षमादान के बाद इंद्र के सिंहासन को तक्षक ने छोड़ा था
ऋषि आस्तिक के क्षमादान के बाद इंद्र के सिंहासन को तक्षक ने छोड़ा था आस्तिक आश्रम के बारे में श्रीमद भगवत् पुराण के दशम स्कंध में उल्लेख है कि महाराजा परीक्षित की सर्पदंश से मृत्यु के प्रतिशोध में उनके पुत्र जनमेजय ने पृथ्वी से सर्पों के समूल नाश के लिए यज्ञ का आयोजन किया था।यज्ञ में सभी सर्पों के भस्म हो जाने के बाद तक्षक नामक सर्प देवराज इंद्र के सिंहासन से लिपट गया। यज्ञ में जब तक्षक नाग को भस्म करने का मंत्र उच्चारण किया गया तो इंद्रासन हिल उठा। इसके उपरांत देवताओं के अनुनय विनय करने पर ऋषि आस्तिक ने तक्षक नाग को क्षमादान दे दिया।तभी से मान्यता चली आ रही है कि आस्तिक मुनि की पूजा से नागवंश के आक्रोश से मुक्ति मिल जाती है।मान्यता है कि प्रात बिस्तर से नीचेउतरने से पहले आस्तीक मुनि का नाम लेने से दिनभर सांपबिच्छू से कोई हानि नहीं होगी।इस प्रकार का ²ष्टांत महाभारत की कथा में भी मिलता है।
अयोध्या : आस्तिक आश्रम के बारे में श्रीमद् भागवतपुराण के दशम स्कंध में उल्लेख है कि महाराजा परीक्षित की सर्पदंश से मृत्यु के प्रतिशोध में उनके पुत्र जनमेजय ने पृथ्वी से सर्पों के समूल नाश के लिए यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में सभी सर्पों के भस्म हो जाने के बाद तक्षक नामक सर्प देवराज इंद्र के सिंहासन से लिपट गया।
यज्ञ में जब तक्षक नाग को भस्म करने का मंत्र उच्चारण किया गया तो इंद्रासन हिल उठा। इसके उपरांत देवताओं के विनय करने पर ऋषि आस्तिक ने तक्षक नाग को क्षमादान दे दिया। तभी से मान्यता है कि आस्तिक मुनि की पूजा से नागवंश के आक्रोश से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि प्रात: बिस्तर से नीचे उतरने से पहले आस्तीक मुनि का नाम लेने से दिनभर सांप-बिच्छू से कोई हानि नहीं होगी।
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