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..दास्ताने आवारगी में खो गए श्रोता

फैजाबाद: मजाज का मिजाज और शायरों से अलग था। उनके किस्से भी कम नहीं थे। जब उनकी दास्तां बयां की जा रह

By Edited By: Published: Mon, 29 Aug 2016 12:10 AM (IST)Updated: Mon, 29 Aug 2016 12:10 AM (IST)
..दास्ताने आवारगी में खो गए श्रोता

फैजाबाद: मजाज का मिजाज और शायरों से अलग था। उनके किस्से भी कम नहीं थे। जब उनकी दास्तां बयां की जा रही हो तो हर किसी को देर तक सुनने की चाहत बढ़ जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ जेबी एकेडमी के प्रेक्षागृह में। दास्तांगोई की लुप्त होती परंपरा को पुनर्जीवित करने के क्रम में गुलजार साहित्य समिति ने अपनी वर्षगांठ पर कुछ नया करने की परंपरा को कायम रखते हुए, यहां दास्तांगोई का आयोजन रविवार की शाम को किया। दास्तांगोई के नामचीन हस्ताक्षरों में शुमार वर्धा के हिमांशु वाजपेयी और दिल्ली के अंकित चड्ढा ने अपनी दास्तांगोई के फन को फैजाबाद के सुधी श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत किया, तो एक बार फिर से दादा-दादा, नाना- नानी की कहानी का दौर याद आ गया। मजाज की ¨जदगी का दास्तां सुनाने के सिलसिले में दोनों ही दास्तांगो ने इस नामचीन शायर की ¨जदगी के अनछुए पहलुओं को उजागर किया। साथ ही मजाज के इंकलाबी तेवर को भी सलीके पेश किया। बोल अरी ओ धरती बोल, राज ¨सहासन डांवाडोल जैसी नज्म लिख कर अंग्रेजी हुकूमत तक को चुनौती देने वाले शायर की आवारगी को भी उन्होंने शहर की रात और मैं, नाशाद-ओ-नकारा फिरूं, जगमगाती जागती सड़कों पर आवारा फिरूं, गैर की बस्ती है, कब तक दर-ब- दर मारा फिरूं, ऐ गम-ए- दिल क्या करूं, ऐवहशत-ए- दिल क्या करूं, के जरिए बखूबी उभारा। मूलत: रुदौली के रहने वाले मजाज की ¨जदगी एक खुली किताब थी और उनकी शायरी के लोग दीवाने थे। लेकिन ¨जदगी की हकीकत उनकी बातों में कितनी साफ झलकती है कि एक बार उनके उर्दू की नामचीन कहानीकार और उपन्यासकार इस्मत चुगताई ने कहा कि लड़कियां मजाज से मुहब्बत करती हैं। तो उन्होंने जवाब दिया कि दीवानी मेरी हैं और शादी अमीरों से कर लेती हैं। मजाज के इन्हीं किस्सों से सजी यह दास्तांगोई केवल दास्तांगोई नहीं थी, बल्कि एक शायर की ¨जदगी की हकीकत थी। एक शायर जो तरक्कीपसंद था, ठुकराए जाने पर खुद को शराब में डुबो बैठा और उसका अंत ताड़ीखाने में हुआ। इस मौके पर समिति की पूनम सूद ने लोगों को इस विधा के बारे में विस्तार से बताया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि फैजाबाद के मंडलायुक्त एसपी मिश्रा ने दोनों किस्सागो को स्मृति चिह्न दे कर सम्मानित किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार शीतला ¨सह, समाजसेवी इकबाल मुस्तफा, कवियत्री डा. राधा पांडेय सहित शहर के गणमान्य मौजूद थे। इस आयोजन में समिति की डा. अलका मिश्रा, रमा डाबर, मधुलिका साहू, निशी छाबड़ा, निधि चोपड़ा आदि का सक्रिय योगदान रहा।


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