माटी की साधना से हुई हर मन्नत पूरी
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एटा, निज प्रतिनिधि: उनके पास महज एक एकड़ जमीन है, लेकिन वे उसी से सोना उगाकर आज सैकड़ों लोगों के प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं। बात हो रही है अलीगंज विकास खंड के ग्राम अमोघपुर भाटान निवासी सोरन सिंह की। इन्होंने माटी की ऐसी साधना की कि वह उनकी हर मन्नत पूरी करने का माध्यम बन गयी। साथ ही इनके इस हुनर से गांव से शहर की ओर होने वाले पलायन में भी कमी आई है।
कभी मुफलिसी में दिन काटने वाले सोरन सिंह का परिवार बड़ा होने के कारण गुजर-बसर मुश्किल से हो पाता था। खेत भी बटाई पर दे रखा था। उससे जो कुछ आता, उसी से काम चलता। एक दिन सोरन के मन में नई तकनीक से खेती करने की जिज्ञासा पैदा हुई। उसने तरकारी की खेती बटाई से खेत छुड़ाकर शुरू कर दी। बस यहीं से सोहन की किस्मत बदलनी शुरू हो गई। यह बात सोरन के मन में ऐसी बैठी कि उन्होंने अपनी मामूली सी जमीन के बल पर गरीबी दूर करने का संकल्प लिया। तबसे अब तक अगैती प्रजाति की सब्जी की खेती कर सोरन ने औरों के सामने ऐसी मिसाल कायम कर दी कि उनके गांव से नौजवानों का शहरों की ओर पलायन रुक सा गया है।
सोरन अक्टूबर में जिस खेत में तम्बाकू के साथ आलू उगाकर फरवरी तक खेत खाली करते हैं, उसी में बैगन या करेला की फसल लगाकर मई माह तक हजारों की आय कर लेते हैं। जून में उसी खेत में कद्दू या तोरई की खेती करने के बाद सितम्बर तक खाली हुये खेत में फिर तम्बाकू के साथ आलू की पैदावार करते हैं। खास बात यह है कि वैज्ञानिक युग में भी सोरन अधिकतर जैविक खाद का इस्तेमाल करने के साथ ही फसलों में रसायनों की जगह देशी नुस्खों का ही प्रयोग करते है। कहते हैं कि रासायनिक खादों के बल पर केवल एक वर्ष में चार फसल की खेती नही की जा सकती है इसके लिये जैविक खाद की जरूरत होती है।
खेत की उर्वरा शक्ति बनी रहे तथा उत्पाद किसी की बीमारी का कारण न बने, इसलिये कम से कम खाद व दवाओं का उपयोग करता हूं। कीड़ों तथा अन्य बीमारियों से बचाव के लिये नीम की पत्ती तथा अरूसा आदि वनस्पतियों से दवा बना कर छिड़काव करता हूं। खेती के बल पर अपनी तीन पुत्रियों तथा दो पुत्रों को न केवल स्नातक तक की तालीम दिलाई बल्कि उनके घर में तमाम भौतिक संसाधन भी उपलब्ध हैं।
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