टिशू कल्चर तकनीक से चार इंच लंबे आलू का बीज होगा तैयार
गौरव डुडेजा इटावा ग्राम नावली के प्रगतिशील किसान शिवम तिवारी आधुनिक तरीके से टिशू कल्

गौरव डुडेजा, इटावा
ग्राम नावली के प्रगतिशील किसान शिवम तिवारी आधुनिक तरीके से टिशू कल्चर तकनीक को अपनाकर चार इंच लंबे कुफरी फ्रायोम प्रजाति के आलू के लिए बीज अपने खेतों में तैयार कर रहे हैं। देश के आलू अनुसंधान संस्थान शिमला से करार होने के बाद शिवम ने संस्थान से मदर प्लांट लेकर टिशू कल्चर तकनीक से 30 एकड़ खेती में आलू का बीज तैयार किया है। इससे 100 क्विंटल बीज तैयार करके आलू अनुसंधान संस्थान को इसकी आपूर्ति की जाएगी। जो देश भर में यह बीज किसानों को देकर उसकी खेती कराएगा। यह आलू पैदा होने के बाद चार इंच लंबा होगा और फिगर चिप्स बनाने वाली कंपनियों के काम आएगा। यह तकनीक अपनाने वाले शिवम कुमार उत्तर प्रदेश में पहले किसान हैं।
दिसंबर 2020 में हुआ था करार
प्रगतिशील किसान शिवम तिवारी ने बताया कि केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के डायरेक्टर मनोज कुमार ने उनके नावली स्थित खेती के निरीक्षण के लिए वहां के दो वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीके गुप्ता व डॉ. एसके लूथरा को भेजा था। सारी व्यवस्थाओं से संतुष्ट होने के बाद 25 दिसंबर 2019 को संस्थान ने उनसे एमओयू साइन किया था। उन्होंने शुरुआत में तीन इंच का माइक्रो प्लांट (पौधा) दिया था जिसको उन्होंने टिशू कल्चर तकनीक से संवर्धन किया और अपने खेतों में रोपाई की। इससे 100 क्विंटल आलू का बीज कुफरी फ्रायोम प्रजाति का तैयार होगा। जो चार इंच लंबा होगा। यह सारा बीज संस्थान लेगा। उसके बाद इसे वह किसानों को देकर उनसे आलू की खेती कराएगा। जनपद के उपकृषि निदेशक एके सिंह का इसमें सराहनीय योगदान रहा है।
कुफरी फ्रायोम की विशेषता
शिवम तिवारी ने बताया कि कुफरी फ्रायोम प्रजाति के आलू का प्रयोग विभिन्न कंपनियों के फ्रेंच फ्राइज के लिए उपयोगी होता है। यह एक मध्यम अवधि में परिपक्व होने वाली आलू की नई किस्म है। उथली आंखों, सफेद गूदे के साथ आकर्षक सफेद, क्रीम छिलका, लंबे व ओबलोग कंद का उत्पादन करता है। खाने में अच्छा होता है। इसको कई दिन तक रखा जा सकता है। इसका प्रयोग व्यावसायिक बाजार में किया जाता है। उन्होंने बताया कि इसकी नई प्रजातियां कुफरी संगम, कुफरी सुख्याती, कुफरी लीजा भी विकसित हो चुकी हैं।
क्या है तकनीक
जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पौधों में अनुवांशिक सुधार, उसके निष्पादन में टिशू कल्चर या ऊतक संवर्धन एक अहम भूमिका निभाता है। यह ऐसी तकनीक है जिसमें किसी भी पादप ऊतक जैसे जड़, तना, पुष्प आदि को निर्जीमित परिस्थितियों में पोषक माध्यम पर उगाया जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार पौधे की प्रत्येक कोशिका एक पूर्ण पौधे का निर्माण करने में समक्ष है। वर्ष 1902 में हैबरलांट ने कोशिका की पूर्ण शक्तता की संकल्पना दी थी। इसलिए उन्हें पौधों के टिशू कल्चर का जनक कहा जाता है। इस प्रक्रिया में संवृद्धि मीडियम या संवर्धन घोल महत्वपूर्ण है। इसका उपयोग पौधों के ऊतकों को बढ़ाने के लिए किया जाता है। क्योंकि इसमें जैली के रूप में विभिन्न पौधों के पोषक तत्व शामिल होते हैं। जो पौधों के विकास में सहायक होते हैं। पौधों के ऊतकों के एक छोटे से हिस्से को लेकर कुछ ही हफ्तों के समय में हजारों प्लांटलेट का उत्पादन किया जा सकता है।
टिशू कल्चर के लाभ
- इससे उत्पादित पौधे रोग मुक्त व स्वस्थ होते हैं।
- इसके माध्यम से पूरे वर्ष पौधों को विकसित किया जा सकता है।
- नए पौधों के विकास के लिए बहुत कम स्थान की आवश्यकता।
- बाजार में नई किस्मों के उत्पादन को गति देने में मदद।
- आलू उद्योग में यह तकनीक वायरस मुक्त स्टाक बनाए रखने में सक्षम।
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