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    कृषि विभाग बना रहा प्राकृतिक और जैविक खाद, बताया रासायनिक उर्वरकों से ज्यादा उपयोगी

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 03:54 PM (IST)

    सरकार रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम करने के लिए किसानों को जैविक खेती के प्रति जागरूक कर रही है। कृषि विभाग जैविक खाद बना रहा है जिससे फसलों में यूरिया और डीएपी की लागत कम होती है। जैविक उर्वरक मिट्टी में पड़े अघुलनशील उर्वरकों को सक्रिय करते हैं। यह फसल के अनुसार प्रयोग किया जाता है और रासायनिक उर्वरक की मात्रा को कम करता है।

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    जैविक उर्वरक सस्ते होने के साथ रासायनिक उर्वरकों को बनाते हैं अधिक कारगर। जागरण

    जागरण संवाददाता, इटावा । रासायनिक उर्वरक के उपयोग की मात्रा कम करने के लिए सरकार प्राकृतिक और जैविक खेती के लिए किसानों को जागरूक कर रही है। कृषि विभाग के द्वारा जैविक खाद का निर्माण किया जा रहा है जिसके उपयोग से फसल में लगने वाली यूरिया और डीएपी की लागत में कमी आती है।

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    जैविक उर्वरक मृदा में पड़ी अघुलनशील उर्वरकों को सक्रिय कर पौधों तक पहुंचाने का कार्य करते हैं। जो रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करते हैं उसका 15-20 प्रतिशत मात्रा उपयोग हो पाती है।

    फसल के अनुसार होता है जैविक उर्वरकों का प्रयोग

    जैविक उर्वरकों का प्रयोग फसल के अनुसार किया जाता है जो फसल को प्रभावित किए बिना रासायनिक उर्वरक की 30 से 40 प्रतिशत मात्रा को कारगर बनाते हैं, जिससे किसानों की फसल में लागत कम और मिट्टी की उर्वरता भी बरकरार रहती है। जैविक उर्वरक सस्ते होने के साथ रासायनिक उर्वरकों को अधिक कारगर बनाते हैं।

    कृषि विभाग के अनुसार जिले में तीनों फसलों में करीब तीन लाख हेक्टेयर खेती का रकबा है, जिसमें किसान एक वर्ष में एक लाख मीट्रिक टन से अधिक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं।

    बेकार पड़ा रहा है अधिकतर हिस्सा

    इस्तेमाल रासायनिक उर्वरक का अधिकतर हिस्सा बेकार पड़ा रहता है। अधिकतर जमीन की निचली सतह में चला जाता या वाष्प बनकर वायुमंडल में मिल जाता है। इसी तरह उर्वरक का महज 15 से 20 प्रतिशत मात्रा ही पौधों को मिल पाता है।

    प्रयोगशाला प्रभारी गजेंद्र सिंह ने बताया कि जैविक कल्चर, सूक्ष्म जीवाणुओं का मिश्रण होता है जो किसान को फसल के अनुसार विशेष उद्देश्य के लिए प्रयोगशाला में तैयार कर जैविक उर्वरक के रूप में उपयोग करते हैं।

    उप कृषि निदेशक शोध कार्यालय की जैव कल्चर प्रयोगशाला में तीन प्रकार की जैविक उर्वरक बनाए जाते हैं, जिसमें पीएसबी कल्चर जो फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया है, जो मिट्टी में अघुलनशील फास्फेट को घुलनशील रूप में बदलता है, जिससे पौधों की वृद्धि और फसल उत्पादन में 10 फीसदी तक की वृद्धि होती है। यह रासायनिक आधारित उर्वरकों पर निर्भरता को कम करता है और पौधों को फफूंद जनित रोगों से बचाने में मदद करता है।

    राइजोबियम कल्चर दलहनी फसलों में प्रयोग किया जाता है जो वायुमंडल से नाइट्रोजन को मिट्टी व पौधों में स्थिर रखने से फसल की पैदावार बढ़ती है, इससे बीजों के उपचार के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। यह एक जैव-उर्वरक है जिसमें गैर-सहजीवी बैक्टीरिया होते हैं जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करने की क्षमता रखते हैं।

    किन फसलों में होता है उपयोग

    जबकि एजोटोबैक्टर मिट्टी में पाया जाने वाला, एक प्रकार का जीवाणु है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पौधों के लिए उपयोगी रूप में बदलता है, यह एक महत्वपूर्ण जैव-उर्वरक है। यह पौधों के लिए नाइट्रोजन स्थिरीकरण, विकास हार्मोन का उत्पादन और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करता है। जो धान, गेहूं, बाजरा, कपास, टमाटर, गोभी, सरसों, कुसुम, सूरजमुखी आदि फसलों में प्रयोग करते हैं।

    उप कृषि निदेशक आरएन सिंह ने बताया कि किसानों को जैव उर्वरकों का प्रयोग नियमित करना चाहिए, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है तथा जैव उर्वरक पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। रासायनिक उर्वरकों की मात्रा में कमी आती है, किसानों की फसल की लागत व मृदा प्रदूषण में कमी आती है। यह राजकीय कृषि बीज भंडार पर 75 प्रतिशत अनुदान पर मिलता है।