गोबर, मैला, नीम की खली, इनसे खेती दूनी फली
संवाद सूत्र, बकेवर : गोबर, मैला, नीम की खली, इनसे खेती दूनी फली. घाघ का कहना है कि गोबर
संवाद सूत्र, बकेवर : गोबर, मैला, नीम की खली, इनसे खेती दूनी फली. घाघ का कहना है कि गोबर, मैला और नीम की खली छोड़ने से पैदावार दूना होती है। जेकरे खेत पड़ा नहीं गोबर, उस किसान को जानो दूबर. यानी जिस किसान के खेत में गोबर की खाद नहीं पड़ी, वह गरीब या दरिद्र है। गोबर, मैला, पाती सड़े, तब खेती में दाना पड़े. जब खेत में गोबर, मैला और पत्तियां सड़ती हैं, तब खेतों में दाना पड़ता है अर्थात पैदावार अच्छी होती है। खादी, घूरा न टरे, कर्म लिखा टर जाए., खेत में लगे खाद के कूरे, खेप या उसके ढेरों के स्थान पर अच्छी पैदावार होने से कोई टाल नहीं सकता है। भले ही ब्रह्मा का लिखा वाक्य टल जाए। जो किसान अपने खेत में गोबर, चोकर, चकवर व अरूसा नहीं छोड़ता उसको अन्न को कौर कहे, भूसा भी नहीं होता। जी हां, घाघ ने इन कहावतों में जो बातें बताई हैं, उसे परंपरा के साथ अब वैज्ञानिक भी मान रहे हैं। मत एक ही है। अगर किस्मत पलटनी है तो गोबर की खाद से खेती करें। इससे भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है। गोबर खाद से बढ़ती है पैदावार : पौधों की वृद्धि के लिए 13 तत्वों की जरूरत होती है। इसमें नत्रजन, स्फोर, कार्बन, हाईड्रोजन, ऑक्सीजन, पोटॉश, चूना, लोहा, मैग्नीशियम, गंधक, बारेन, जस्ता, मैगनीज शामिल है। इसमें से कार्बन, हाईड्रोजन, ऑक्सीजन तत्वों को छोड़कर सभी भूमि से प्राप्त होती है। खादों में श्रेष्ठ होती है गोबर की खाद।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमपी ¨सह बताते हैं की खाद जैविक खादों में सबसे श्रेष्ठ होती है। यह किसानों को सरलता से मिल जाती है। इस खाद से पौधों को आहार के सभी तत्व प्राप्त होते हैं। गोबर खाद जैविक होती है। इसमें सभी पोषक तत्व होते हैं। गोबर से पौध का बढ़वार व रोग लगने की संभावना बिल्कुल नहीं होती है। खेत में नमी बरकरार रहती है, जबकि रासायनिक खाद एक विशेष पोषक तत्व के लिए होती है। इसके प्रयोग से भूमि की संरचना प्रभावित होती है।
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