जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता में होती है वृद्धि
संवाद सूत्र, बकेवर : जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। ¨सचाई के अंतरा
संवाद सूत्र, बकेवर : जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। ¨सचाई के अंतराल में वृद्धि होती है। जैविक खेती के उपयोग से रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है साथ ही साथ फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। अगर मिट्टी की ²ष्टि से देखें तो जैविक खाद के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है तथा भूमि की जल धारण की क्षमता बढ़ती है। भूमि से पानी का वाष्पीकरण भी कम होता है। जैविक खेती की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है। अर्थात जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकों की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णत: सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि और भी अधिक लाभदायक है। जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है इसके साथ ही कृषक भाइयों को आय अधिक प्राप्त होती है तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं। जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। उपनिदेशक कृषि एके ¨सह ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट इकाई स्थापित करने का कुल खर्च आठ हजार रुपये प्रस्तावित है। पहले किसान को खुद खर्च करके वर्मी कंपोस्ट प्लांट लगाना है। उसके बाद इसकी जानकारी कृषि विभाग को देनी है। अफसरों की जांच के बाद किसान के खाते में कृषि विभाग छह हजार रुपए अनुदान के रूप में देगा। महज दो हजार रुपए के खर्च पर ही वर्मी कंपोस्ट इकाई स्थापित होगी। वह बताते हैं कि किसानों को योजनाओं का लाभ लेने के लिए जरूरी है कि पंजीकरण कराएं। इसके लिए गांव-गांव प्राविधिक सहायकों को भेजा जा रहा है। किसान जन सुविधा केंद्र में भी पंजीकरण करा सकते हैं। वर्मी कंपोस्ट इकाई की स्थापना की अनुमति पंजीकरण बाद ही मिलेगी। इसके अलावा प्रधान पद के आरक्षण को इसमें लागू किया गया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।