चिकोरी की चमक विदेशों तक पहुंची
जासं, एटा : कभी तीन-चार एकड़ में पैदा होने वाली चिकोरी अब 18 हजार एकड़ तक पहुंच गई है। जिस तरह से चिकोरी का रकबा बढ़ा, उसी तरह से विदेशों में भी इसकी चमक बढ़ती गई। एटा जनपद से सिंगापुर, स्विटजरलैंड, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में चिकोरी भेजी जा रहे हैं। उद्योगों के लिए जनपद में खास सहूलियतें नहीं हैं, लेकिन चिकोरी का रथ रफ्तार पकड़े हुए है और बढ़ता रकबा उसका सारथी बन गया है। जनपद की पहचान मूंग, गेहूं, सरसों आदि के फसल उत्पादन को लेकर बनी हुई थी, लेकिन चिकोरी ने नई पहचान दे दी। चिकोरी उत्पादक किसान गांव सिरांव निवासी धर्मेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि 10 साल पहले उन्होंने दो बीघा में चिकोरी की और अब सात-आठ बीघा में करते हैं। उत्पादन बढ़ा तो मार्केट भी मिल रहा है, इस वजह से अच्छा मुनाफा हो रहा है। शहर के प्रमुख कारोबारी मुरली कृष्णा चिकोरी प्रोसेसिंग के संचालक राकेश वार्ष्णेय बताते हैं कि चिकोरी को मशीनों के द्वारा क्यूब का आकार दिया जाता है, इसे रोस्ट करने के बाद निर्यात कर दिया जाता है। विदेशी कंपनियों को यहां से यह क्यूब्स भेजे जाते हैं। बेल्जियम, नीदरलैंड, फ्रांस जैसे देशों में इसकी काफी मांग है। चिकोरी की फसल के लिए मार्च से लेकर अक्टूबर तक का समय सही होता है। एक एकड़ में 150 कुंतल उत्पादन --एक एकड़ भूमि में करीब 150 कुंतल चिकोरी का उत्पादन हो जाता है और इससे 70 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक का मुनाफा किसानों को हो जाता है। लागत बमुश्किल 10-15 हजार रुपये ही आती है, इसलिए किसान इस ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं। ऐसे समझें चिकोरी को --चिकोरी क्या है इसे यूं समझा जा सकता है कि यह मूली की तरह आकार में होती है। काफी में सुगंध, रंग और गाढ़ेपन के लिए इसका इस्तेमाल खूब किया जाता है। किसानों ने बताया कि दक्षिण भारत में तो चिकोरी के क्यूब्स पीसकर उसे काफी की तरह इस्तेमाल करते हैं। ओडीओपी से जगी उम्मीद --चिकोरी को लेकर व्यवसायी आलोक जैन बताते हैं कि चिकोरी उत्पादन एटा में बढ़ रहा है, लेकिन उस हिसाब की सुविधाएं नहीं हैं, इसलिए हाईकोर्ट में भी एक याचिका दायर की जा चुकी है कि अधिक से अधिक सुविधाएं एटा को मुहैया कराई जाएं। चूंकि अब चिकोरी को ओडीओपी में शामिल कर लिया गया है इस वजह से काफी उम्मीद जगी है।
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