आजादी आंदोलन का प्रमुख गढ़ था अवागढ़ का किला
जासं, एटा : अवागढ़ का किला आज भी आजादी के तीर्थ स्थल की तरह है। आजादी मिलने के बाद जहां तमाम किले ढेर हो गए। वहीं यह किला शान से खड़ा हुआ है। यहां से क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन होता था। अवागढ़ किले में आज भी शासकों की वीरता के अवशेष मौजूद हैं। राजा बलवंत सिंह की तलवार आज भी किले में मौजूद है, जिससे उन्होंने आजादी की जंग लड़ी। राजा सूरजपाल सिंह बढ़-चढ़कर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग ले रहे थे। इस दौरान अवागढ़ किले पर अंग्रेजों ने कई बार किले की घेराबंदी की, लेकिन कभी भी वे सफल नहीं हो पाए। इस दौरान तीन तोपें किले के ऊपर रखी थीं, लेकिन अब इन तोपों के सिर्फ स्तंभ ही दिखाई देते हैं। किले में राजवंश परंपरा अभी भी कायम हैं। युवराज अमरीशपाल सिंह बताते हैं कि जो शस्त्रागार था, उसे सरकार ने अपने अधीन कर लिया है और आज भी इस पर सरकार की सील लगी है। यह कभी खुलता नहीं, लिहाजा हथियार जंग खा रहे हैं। जितना किला उनके अधीन है, उसकी देखभाल वे स्वयं करते हैं। युवराज बताते हैं कि उस समय अंग्रेज कमिश्नर किसी भी बहाने से राजा सूरजपाल सिंह से लड़ना चाहता था, इसलिए उसने अपनी गाड़ी सड़क से नीचे नहीं उतारी। राजा उस वक्त बग्गी पर सवार थे और सेना साथ चल रही थी। उन्होंने कमिश्नर को वहीं बंदी बना लिया और उसकी इतनी पिटाई लगाई कि वह अधमरा हो गया। इस दौरान दोनों तरफ से संघर्ष हुआ, राजा बहादुर थे। लिहाजा वे कमिश्नर और उसके फोर्स को परास्त कर मथुरा निकल गए, जहां उनकी फिर घेराबंदी की गई, लेकिन बड़ी ही सूझबूझ से दुश्मन के जाल से निकल आए।
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