सावधान! कम उम्र में घर की दहलीज लांघ रही बेटियां, अपनों को दे रही दर्द
देवरिया जनपद में नाबालिग बेटियों के घर छोड़ने की घटनाओं में वृद्धि हुई है जिससे माता-पिता चिंतित हैं। बीते तीन महीनों में 129 बेटियां घर से भागीं जिनमें बाल यौन शोषण और बाल विवाह के मामले भी शामिल हैं। बाल कल्याण समिति और मनोवैज्ञानिकों ने जागरूकता और भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया है ताकि बेटियां सुरक्षित रहें और सही मार्ग पर चलें।

सुधांशु त्रिपाठी, जागरण, देवरिया। ख्यातिलब्ध शायर महमूद गजनी ने कभी लिखा था कि 'बेटियों का कभी घर-बार न उजड़े ''गज़नी'', ये वो दुख है जो नहीं बाप को सोने देता'। देवरिया जनपद में कम उम्र की नाबालिग बेटियों के घर छोड़कर भाग जाने की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। पढ़ाई-लिखाई की उम्र में घर की दहलीज लांघ कर नाबालिग बेटियां मां-बाप और स्वजन को जीवन भर का दर्द दे रही हैं।
देवरिया में बीते तीन महीनों अप्रैल, मई और जून में एक-दो, 10-20 नहीं, बल्कि पूरे 129 नाबालिग बेटियों ने अपना घर छोड़ा है। ऐसे मामलों में थोड़े-बहुत परिचित, अजनबी के अलावा आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी शामिल हैं, जोकि बेटियों की भावनाओं को उकसाकर-बहकाकर उनका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण कर रहे हैं।
जिला बाल कल्याण समिति देवरिया की एक हालिया रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि जनपद में अप्रैल में 41, मई में 51 व जून में 37 यानी कुल 129 नाबालिग बेटियों ने घर छोड़ा है। हालांकि बाद के दिनों में इन सभी को बरामद करते हुए समिति ने इन सभी का निस्तारण कर दिया। इसके अलावा बाल यौन शोषण (पाक्सो) के 12 और बाल विवाह के दो मामले भी सामने आए हैं।
केस एक
गौरीबाजार थानाक्षेत्र की एक 17 वर्षीया किशोरी छह माह पहले अपने बहन के घर बहराइच गई थी। उसकी बहन दो माह पहले बहराइच से जम्मू ले गई। किशोरी के विरोध के बाद भी अपने देवर से शादी करा दी। मौका पाकर किशोरी जम्मू से भाग निकली। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बच्चों के लिए काम करने वाली चाइल्ड इंडिया नामक संस्था के हाथ लगी तो उसे अपने अभिरक्षा में रखा। किशोरी को पहले बहराइच व मंगलवार को देवरिया बाल कल्याण समिति के सामने प्रस्तुत किया। समिति ने माता-पिता के सुपुर्द किया।
केस दो
बनकटा थानाक्षेत्र के एक गांव की किशोरी को युवक बहला करीब चार माह पूर्व फुसलाकर भगा ले गया था। मां की तहरीर पर आरोपित युवक के विरुद्ध बहला फुसलाकर भगाने व पाक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। करीब दो माह बाद पुलिस उसे बरामद कर सकी। आरोपित युवक को गिरफ्तार किया गया। किशोरी को वन स्टाप सेंटर में रखा गया था।
किशोरावस्था में बेटियों के घर से भागने की घटनाएं बढ़ी हैं। यह अत्यंत चिंताजनक है। जिले में आंकड़े भयावह हैं। इसके लिए परिवार, विद्यालय व समाज को आगे आना होगा। परिवार व स्कूलों में बेटियों को गलत व सही का फर्क समझाना होगा। जब कोई बेटी घर की दहलीज लांघती है तो उसे न केवल शिक्षा से वंचित होना पड़ता है, बल्कि सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। कम उम्र में पुलिस के लफड़े व मुकदमे का बुरा असर मस्तिष्क पर पड़ता है। स्वास्थ्य परीक्षण से गुजरना पड़ता है। बेटियों की जिंदगी को संवारने के लिए माता-पिता को जागरूक रहना होगा। बेटियों को हर तरह का सहयोग प्रदान करना होगा। सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ व मिशन शक्ति के जरिये बेटियों की सुरक्षा व शिक्षा के प्रति जागरूक कर रही है। इसे धरातल पर उतारने के लिए कार्य होना चाहिए। -सावित्री राय, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति
12 से 18 वर्ष से कम उम्र यानी किशोरावस्था में मानसिक व शारीरिक परिवर्तन होते हैं। बालिकाएं इस उम्र में भावनात्मक रूप से काफी कमजोर होती हैं। उन्हें गलत व सही का पता नहीं रहता। कई बार घर में उन्हें भावनात्मक सपोर्ट नहीं मिलता। परिवार की मान-मर्यादा का हवाला देकर उपेक्षा की जाती है। माता-पिता की उदासीनता देखने को मिलती है। कम उम्र में शादी की चिंता करते हैं। इस स्थिति में यदि उन्हें बाहर से भावनात्मक सपोर्ट मिलता है तो वे भटक जाती हैं। उन्हें नहीं पता होता कि जिस युवक के साथ वे घर से भाग रही हैं, उसके बाद क्या स्थिति होगी। ऐसे में गलत कदम उठा लेती हैं। मोबाइल का दुरुपयोग भी उन्हें गलत कदम के लिए बढ़ावा देता है। माता-पिता को चाहिए कि बालिकाओं को घर में भावनात्मक सपोर्ट दें। उनके करियर के बारे में सोचें। इसके लिए बेटियों को जागरूक करें। उन्हें जीवन के उद्देश्य से परिचित कराते हुए मनोबल बढ़ाएं।
डा.तूलिका पांडेय, विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान, संत विनोबा पीजी कालेज।
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