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    जैन धर्म के अनुयायियों ने भगवान पुष्पदंत नाथ का किया अभिषेक

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 16 Dec 2020 12:18 AM (IST)

    अनुयायियों ने मंदिर में स्थापित भगवान की नौ फीट ऊंची प्रतिमा पर 108 कलश से अभिषेक व पूजन किया।

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    जैन धर्म के अनुयायियों ने भगवान पुष्पदंत नाथ का किया अभिषेक

    देवरिया : जैन धर्म के नवें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंत नाथ का अवतरण दिवस उनके जन्मस्थली काकंदी (खुखुंदू) में मंगलवार को धूमधाम से मनाया गया। विभिन्न प्रांतों से लोग कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। मंदिर में पूरे दिन पूजा कार्यक्रम चलता रहा।

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    अनुयायियों ने मंदिर में स्थापित भगवान की नौ फीट ऊंची प्रतिमा पर 108 कलश से अभिषेक व पूजन किया। जल, नारियल के रस, दही, दूध, केशर से अभिषेक के बाद पंचामृत, अष्टद्रव्य, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धुप, फल आदि चढ़ाया। इसके बाद आरती की गई। देर रात तक कार्यक्रम चलता रहा। भगवान पुष्पदंत नाथ के जन्मोत्सव कार्यक्रम को लेकर एक दिन पूर्व से ही तैयारी चल रही थी।

    कार्यक्रम में गोरखपुर से पुष्कर जैन, बसंत जैन, महावीर जैन, रोहित जैन, शिखर जैन, सुशील जैन, अजय जैन, पुष्पा जैन, सुरेश, विमला जैन, सुषमा जैन, अशोक जैन, बिहार के सिवान जिले के दरौली से अविनाश जैन, कोलकाता से मनीष जैन, दिल्ली से आयुष जैन, वाराणसी से शुभम जैन, मध्यप्रदेश से विशिष्ट जैन आदि पहुंचे थे। भगवान पुष्पदंत का दूसरा नाम है सुवधिनाथ

    पुष्पदंत जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर थे। उनका जन्म काकंदी नगर में इक्ष्वाकु वंश के राजा सुग्रीव की पत्नी माता जयरामा देवी के गर्भ से मार्गशीर्ष मास के प्रतिपदा तिथि को मूल नक्षत्र में हुआ था। भगवान पुष्पदंत को सुवधिनाथ भी कहा जाता है, क्योंकि जन्म के समय राजा सुग्रीव ने इनका नाम सुवधि ही रखा था।

    सत्य और धर्म की होती है जीत: पं. श्रीप्रकाश

    देवरिया : रामपुर कारखाना विकास खंड क्षेत्र के मुजहना घाट में श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यास पं. प्रकाश मिश्र ने कहा कि भगवान भी सत्य व धर्म के राह पर चलने वाले कर्मठी व्यक्तियों का साथ देने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। यही कारण है सत्य और धर्म की राह पर चलने वाले की कभी हार नहीं होती है।

    कहा कि कौरवों के साथ अनेक महारथी व वीर थे लेकिन वो अधर्म व असत्य की राह पर चलते हुए महाभारत का युद्ध जीतना चाहते थे। भगवान श्री कृष्ण ने सदैव पांडवों का साथ इसलिए दिया कि वह धर्म की राह पर थे। हस्तिनापुर के भरे दरबार में द्रोपदी के चीर हरण के समय सभी योद्धा, वीर व गुरु विवश थे और अंत मे द्रोपदी के बुलाने पर भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी लाज बचायी थी। इस दौरान विश्वंभर मिश्र, वसंती देवी, दीपक मिश्र शाका, अरविद साहनी, निर्भय शाही आदि मौजूद रहे।