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    स्मृति शेष: हिंदी-भोजपुरी साहित्य के लिए नामवर थे डॉ. अरुणेश नीरन, सदैव किए जाएंगे याद

    Updated: Thu, 17 Jul 2025 10:13 AM (IST)

    वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अरुणेश नीरन का 80 वर्ष की आयु में देवरिया में निधन हो गया। वे भोजपुरी साहित्य के पुरोधा थे और उन्होंने इस भाषा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। डॉ. नीरन ने कई साहित्यिक कृतियों की रचना की और विश्व भोजपुरी सम्मेलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है।

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    ध्यानार्थ....स्मृति शेष:: हिंदी-भोजपुरी साहित्य के लिए नामवर थे देवभूमि देवरिया के डा. अरुणेश नीरन

    सुधांशु त्रिपाठी, जागरण, देवरिया। देवभूमि देवरिया बौद्धिक मेधा की धरती है। हिंदी-भोजपुरी साहित्य के पुरोधा, भोजपुरी वैभव, अक्षर पुरुष डा.अरुणेश नीरन की जन्मभूमि भी देवरिया है। मगर डा. नीरन की कर्मभूमि देवरिया से दिल्ली तक ही नहीं, बल्कि विदेश में फिजी, मारीशस, सिंगापुर और सूरीनाम तक थी। मंगलवार की रात 80 वर्ष की अवस्था में उनका देहावसान हो गया। बीते कुछ महीनों से वह लीवर और मधुमेह से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे।

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    डा. अरुणेश नीरन ने गोरखपुर-बस्ती मंडल के जिलों में नहीं, वरन उत्तर प्रदेश व बिहार के विभिन्न जनपदों में भोजपुरी को प्रखरता से प्रतिष्ठापित किया। इसके साथ ही वैश्विक मंचों पर अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलनों में कई बार मातृभाषा का परचम लहराया।

    डा. नीरन का जन्म देवरिया खास के रहने वाले जगदीश मणि त्रिपाठी के बड़े पुत्र के रूप में 20 जून 1946 को देवरिया खास में हुआ। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में सेवाएं दीं। बुद्ध पीजी कालेज कुशीनगर के प्राचार्य पद से सेवानिवृत हुए।

    अरुणेश नीरन की प्रमुख साहित्यिक कृतियां 

    भोजपुरी वैभव, पुरइन पात, हमार गांव, प्रतिनिधि भोजपुरी कहानियां,शिवप्रसाद सिंह, अक्षर पुरुष, अज्ञेय शती स्मरण के अलावा देश-विदेश की पत्रिकाओं में तीन सौ से ऊपर शोध-पत्र प्रकाशित।

    साहित्य अकादमी नयी दिल्ली, नेशनल बुक ट्रस्ट, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, मुंबई विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर विवि, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, गोरखपुर विवि आदि में विभिन्न विषयों पर सौ से अधिक व्याख्यान।

    भोजपुरी हिंदी शब्दकोश (प्रकाशित)

    • भोजपुरी साहित्य का वृहत् इतिहास (प्रकाशाधीन)
    • भोजपुरी व्याकरण (प्रकाशाधीन)

    प्रमुख सम्मान और पद-प्रतिष्ठा

    • विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय महासचिव (1995-2004)
    • विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय महासचिव (2004-09)
    • विश्व भोजपुरी सम्मेलन के मारीशस में आयोजित चौथे विश्व भोजपुरी सम्मेलन में 16 देशों की ओर से पुनः अंतरराष्ट्रीय महासचिव के रूप में निर्वाचित।
    • मारीशस में वर्ष 2000 में आयोजित दूसरे विश्व भोजपुरी सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल में नेता।
    • भोजपुरी के अमर लोकगीत (चार खंड) श्रृंखला के लेखक/निदेशक/प्रस्तुतकर्ता।
    • अब तक विश्व भोजपुरी सम्मेलन के नौ राष्ट्रीय अधिवेशनों और चार विश्व सम्मेलनों का आयोजन।
    • भोजपुरी भाषा, संस्कृति, कला से संबंधित ग्रंथ ''सेतु'' का संपादन।
    • विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय महासचिव ''समकालीन भोजपुरी साहित्य'' के प्रधान संपादक

    वरिष्ठ साहित्यकारों-लेखकों, शिक्षाविदों, संस्कृतिकर्मियों ने दी श्रद्धांजलि

    एक साहित्य-संस्कृतिजीवी मानुष अरुणेश नीरन का पार्थिव प्रस्थान कम से कम पूर्वांचल के बड़े पटल से गहरी रिक्ति और सूनेपन का अहसास करा रहा है। उनके कद का घनत्व जितना आकर्षक था उनकी सकर्मकता भी उतनी ही लाजवाब थी। देवरिया जनपद के वर्तमान होने का एक अर्थ वहां अरुणेश नीरन का होना भी था। उनकी मैत्री और सामाजिक संबंधों का दायरा इतना वृहत्तर था, जिसमें बुद्धिजीवी समाज से लेकर आमजन तक समाता था।

    - अष्टभुजा शुक्ल, वरिष्ठ साहित्यकार, हिंदी भाषाविद्, बस्ती

    अरुणेश नीरन हिंदी-भोजपुरी भाषा के सामर्थ्यवान लेखक, संपादक थे। उनकी भाषा और विचार लोकजन और जन सामान्य के लिए ही थे। लोक कला और संस्कृति के लिए उन्होंने जो कार्य किया, आने वाली पीढ़ियां उसके लिए उनकी ऋणी रहेगी। लंबे समय तक बीमारी से जूझने के बावजूद उन्होंने कभी हौसला नहीं हारा। अद्भुत जीवटता थी उनके भीतर। उनके निधन से भोजपुरी साहित्य जगत में एक ऐसी रिक्तता आई है, जिसे भर पाना मुश्किल है। लेकिन उनकी स्मृतियां, उनकी रचनाएं, उनका योगदान हमें हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।

    - प्रो. अनंत मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार, पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय

    नीरन जी की गद्य भाषा और आलोचकीय विवेक की सराहना अमृतलाल नागर जैसे बड़े रचनाकार भी करते रहे हैं। उनका संपादन कौशल भी बहुत दृष्टिसंपन्न था। एमए की कक्षाओं के लिए भोजपुरी की रचनाओं का संकलन तैयार करने में उनके सहयोगी के रूप में मैंने उनके चयन के विवेक और रचनात्मकता के बड़े रेंज का अनुभव किया। वे बहुत समर्थ आयोजक थे और अकेले अपने दम पर बड़ी-बड़ी संस्थाओं पर भी भारी पड़ते थे।

    -प्रो. चित्तरंजन मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार, पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय

    अरुणेश नीरन ऐसे साहित्य साधक थे जिन्होंने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक आयोजनों के जरिए साहित्य की सेवा की। उन्होंने भोजपुरी के विकास के लिए भी अथक प्रयास किया। उन्होंने नए साहित्यकारों को भी सदैव प्रेरित किया। साहित्य जगत उनके उल्लेखनीय कार्यों से भली भांति अवगत है। उनका नहीं रहना साहित्य जगत के लिए और मेरे लिए अपूर्णनीय क्षति है।

    - प्रो. रामदेव शुक्ल, वरिष्ठ साहित्यकार, पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय

    हिंदी-भोजपुरी के साहित्य-जगत की एक दीर्घवर्ती ज्योति, अरुणेश नीरन जी अब हमारे बीच नहीं रहे। हृदय किसी गहरे शून्य में डूब गया है। यह मात्र एक व्यक्ति का निधन नहीं है, यह एक युग का अवसान है। एक विचारशील परंपरा का मौन हो जाना है, एक आत्मिक भाषा- चेतना का मौन है। नीरन जी के व्यक्तित्व की विशिष्टताओं में से एक विशिष्टता संवाद की संस्कृति भी थी। वे अपने से छोटों से भी बराबरी से बात करते थे।

    - केशव मोहन पांडेय, निदेशक, सर्व भाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली

    हिंदी और भोजपुरी साहित्य के मूर्धन्य रचनाकार, संपादक अरुणेश नीरन जी के निधन से साहित्यिक जगत शोक संतप्त है। साहित्य के सभी महत्वपूर्ण विधाओं में उनका हस्तक्षेप रहा है। एक दमदार संगठन कर्ता के रूप में भी उनका योगदान कम करके नहीं आंका जा सकता। जीवन पर्यंत वे भोजपुरी के वैभव को स्थापित करने हेतु और अपनी मातृभाषा को उसका यथोचित सम्मान दिलाने के लिए संघर्षरत रहे। उनका जाना मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है।

    -जयशंकर प्रसाद द्विवेदी, वरिष्ठ साहित्यकार, दिल्ली एनसीआर

    वे न केवल भोजपुरी भाषा के सजग प्रहरी थे, बल्कि अपनी लेखनी के माध्यम से जनचेतना, संस्कृति और संवेदनशीलता को नए आयाम देने वाले युग पुरुष थे। उनकी रचनाएं भोजपुरी समाज की आत्मा का दस्तावेज हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से इस क्षति को बहुत गहरा महसूस करता हूं, क्योंकि हमनें एक ऐसा स्तंभ खो दिया है जिसने भोजपुरी को साहित्यिक गरिमा दी। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और स्वजन को इस दुख को सहने की शक्ति दें।

    - रविकिशन शुक्ल, फिल्म अभिनेता/सांसद गोरखपुर

    बेहद स्तब्ध व दुखी हूं। नीरन जी ने विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय महासचिव व समकालीन भोजपुरी साहित्य के संपादक के रूप में भोजपुरी भाषा, साहित्य और आंदोलन के लिए जो काम किया है, वह मील का पत्थर है। वह हमेशा युवाओं को प्रोत्साहित करते थे। जब मैं लंदन में इंजीनियर था। तब उन्होंने मुझे इंग्लैंड इकाई का अध्यक्ष और समकालीन भोजपुरी साहित्य का विदेश संपादक बनाया था। उसके बाद तो देश-विदेश के अनेक मंचों पर उनका स्नेह-सानिध्य मिला। उनका जाना भोजपुरी के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

    - मनोज भावुक, वरिष्ठ भोजपुरी कवि, फिल्म समीक्षक

    डा. नीरन ने पुरइन पात, भोजपुरी कहानियां, लोकगीत, समकालीन भोजपुरी साहित्य समेत दर्जनों पुस्तकों का संपादन किया। डा. नीरन साहित्य अकादमी और मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी रहे। उन्होंने भोजपुरी और हिंदी भाषा के उन्नयन के लिए सतत प्रयास किया। भोजपुरी भाषा साहित्य संस्कृति एवं कला के विकास के लिए उनका विशेष योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। उनके निधन से देश के साहित्य जगत में एक शून्य उपस्थित हुआ है।

    डा. राकेश श्रीवास्तव, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भोजपुरी एसोशिएशन आफ़ इंडिया भाई

    नीरन जी का नाम भोजपुरी साहित्य में सूरज की तरह है। उनकी पत्रिका ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य’ केवल एक पत्रिका नहीं थी, बल्कि एक आंदोलन थी। भोजपुरी भाषा और संस्कृति को जीवित रखने की जिद से भरा। इसके हर पन्ने पर उनकी मेहनत, उनका समर्पण व उनकी दूरदृष्टि झलकती थी। विश्व भोजपुरी सम्मेलन के संरक्षक के रूप में उन्होंने भोजपुरी को वैश्विक मंच पर ले जाने का सपना देखा और उसे साकार किया। - सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी, प्रदेश अध्यक्ष, विश्व भोजपुरी सम्मेलन

    अरुणेश नीरन जी एक ऐसे प्रख्यात साहित्यकार थे। जिन्होंने संस्कृतिकर्मी युवाओं को हमेशा कुछ नया सृजन करने के लिए प्रेरित किया। सांस्कृतिक संगम नाट्य संस्था को राष्ट्रीय फलक पर पहुंचाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। जब भी नया नाटक करने से पहले उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद लेने जाता था, सदैव एक ही वाक्य दोहराते थे, करो तुम कर ले जाओगे, मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।

    - मानवेंद्र त्रिपाठी, संस्कृतिकर्मी, सांस्कृतिक संगम नाट्य संस्था