परोपकार से मिलती है आत्मिक व मानसिक शक्ति
देवरिया में आयोजित संस्कारशाला कार्यक्रम में परोपकार का महत्व बताया गया।
देवरिया: परोपकार मानव का सबसे बड़ा धर्म है। परोपकार का अर्थ है दूसरों का भला करना। अपनी चिन्ता किए बिना दूसरे की भलाई करना ही परोपकार कहलाता है। परोपकार के लिए मनुष्य को कुछ न कुछ त्याग करना पड़ता है। परोपकार की शिक्षा हमें प्रकृति से भी सीखनी चाहिए। प्रकृति में हमें सदैव परोपकार की भावना निहित दिखाई देती है।
यह विचार सेंटजांस स्कूल नवलपुर के प्रधानाचार्य रत्नेश कुमार मिश्र ने व्यक्त किया। कहा कि नदियां अपना जल स्वयं न पीकर दूसरों की प्यास बुझाती हैं, वृक्ष अपना फल दूसरों को अर्पित करते हैं। बादल पानी बरसा कर धरती की प्यास बुझाते हैं। गाय अपना दूध दूसरों में बांटती हैं। सूर्य तथा चंद्रमा भी अपने प्रकाश दूसरों देते हैं। इसी प्रकार हमें भी इसी भाव से दूसरों के प्रति परोपकार करना चाहिए। हम भी छोटे-छोटे कार्य से परोपकार कर सकते हैं। भूखे को रोटी खिलाना, भूले-भटके को राह बतना, अशिक्षितों को शिक्षा देना, दृष्टिहीन व्यक्ति को सड़क पार कराना, प्यासे को पानी पिलाना, अबला तथा कमजोर की रक्षा करके परोपकार किया जा सकता है। धर्मशाला बनवाना परोपकार की दृष्टि से सबसे पुनीत कार्य है। परोपकार की कोई सीमा नहीं है। परोपकार से आत्मिक व मानसिक शांति व शक्ति मिलती है। परोपकारी मनुष्य मर कर भी अमर रहते हैं। दानवीर कर्ण, भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक, महर्षि दयानन्द, महात्मा गांधी, विनोबा भावे आदि अनेक महापुरुष इसके उदाहरण हैं। परोपकारी व्यक्ति सुख, शान्ति, स्नेह, सहानुभूति आदि गुणों से परिपूर्ण हो सकता है। सच्चा परोपकार वही है जो कर्तव्य समझकर किया गया हो। जब हम किसी अनजान व्यक्ति पर कुछ उपकार कर देते हैं, तो उसके दिल से निकली आशीष की तरंग हमारे भविष्य को उज्ज्वल करने में अपरोक्ष रूप से सहायक सिद्ध होती है। मनुष्य स्वयं के वशीभूत होकर दूसरों के दुख समझ नहीं पा रहा है। सच्चा परोपकारी वही है, जो दूसरों के दुख से दुखी होकर तुरंत सहायता के लिए तत्पर हो जाता है। यह तभी संभव है, जब हम परिवार में बच्चों को संस्कारवान बनाएं।
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