Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सद्गुण ही ज्ञान

    By Edited By:
    Updated: Tue, 18 Oct 2016 11:18 PM (IST)

    गुरु समाज की विभाजक रेखा को मिटाते हैं। इन्हीं से समाज को अपेक्षा रहती है। अध्यापक वह होता है, जो वृ

    गुरु समाज की विभाजक रेखा को मिटाते हैं। इन्हीं से समाज को अपेक्षा रहती है। अध्यापक वह होता है, जो वृत्ति लेकर अपने को आगे ले जाए, आचार्य वह है जिसका आचरण सिद्ध हो और आचार्य की सुचिता, पवित्रता बनाए रखने की शिक्षा दे। गुरु अविद्या के अहंकार से मुक्त करके ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। मनुष्य अपने गुणों के कारण ही संसार रूपी धरातल से अर्श पर पहुंचता है। आज जरूरत है। स्वयं को निहारकर अपने अवगुणों को दूर कर, गुणों को निखार कर अपनी महत्ता को बढ़ा जाए। जिससे समाज, राज्य और देश का नाम हो। अवगुण तो रसातल में ले जाता है, जहां आपकी महिमा खंडित हो जाती है। इसलिए स्वयं का महत्व है। आज जरूरत इस बात की है कि उसको किस तरंग में ले जाया जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ज्ञान प्रकाश मिश्र, प्रधानाचार्य

    देवरिया सीनियर सेकेंड्री स्कूल देवरिया।

    -------

    पात्रता की परख करती है

    सफलता

    संपूर्ण लोक में मानव प्रधान प्राणी के रूप में माना गया है। उसकी सफलता स्वयं की शक्ति पहचानने में है। हम समस्त कल्पनाओं को साकार कर लेंगे, जब स्वयं को तराश कर निखार लेंगे और नकारात्मक विचारों को निकालकर असफलता को परे कर संकल्प, समर्पण व कठिन मेहनत से लक्ष्य भेदें। हमें अपनी निराशाजनक व मित्रहीन स्थिति से उबरकर आत्म सुधार करना चाहिए, क्योंकि हमारे अंदर छिपी हुई रहस्यमयी शक्ति होती है। जिसके आह्वान पर अजेय बाधाओं को जीत सकते हैं।

    आलोक पांडेय

    शिक्षक एमएमटी जीवन मार्ग मिशन कालेज, देवरिया

    -------

    सफलता के लिए सकारात्मक सोच होना चाहिए

    सफलता प्राप्त करने के लिए हमें सकारात्मक सोच होना चाहिए। स्वयं को महत्व देते हुए मूल्यवान समना चाहिए। इस तरह का विश्वास करने वालों की ही सफलता मिलती है। सफल लोगों में आत्म विश्वास व आत्मसम्मान होना चाहिए। यह आत्मसम्मान हमें अपने भीतर की शक्तियों का अभ्यास कराता है। सफल लोग बाकी लोग की अपेक्षा अपना स्वयं आत्म सम्मान करते हैं।

    लक्ष्मी द्विवेदी

    शिक्षिका, सेंट्रल एकेडमी देवरिया

    -----------

    पहली शिक्षक मां होती है

    बच्चों की पहली शिक्षक मां होती है। वे बच्चों में संस्कार और उत्तरदायित्व का बोध कराती है। बच्चों के शिक्षा का पहला केंद्र परिवार होता है। इसके बाद बच्चों के आचरण व संस्कार विद्यालय में सिखाए जाते हैं। जिसमें विद्यालय प्रमुख व शिक्षक का विशेष योगदान होता है। विद्यार्थियों में सदाचार का भाव भी संस्कारों का स्वरूप है। ऐसे में चरित्र के आधार पर ही उसके अच्छे आचरण का निर्माण होता है। जो उसके भविष्य में जीवन भर काम आता है।

    रीतिक यादव

    कक्षा 8 पीएन एकेडमी देवरिया।

    ---------

    सम्मान देकर जी सकते हैं सफल जीवन

    अगर हम समाज के तौर तरीकों का सम्मान करेंगे तो सफल जीवन जी सकेंगे। देश के कानून व नियमों का सम्मान करके हम बेहतर नागरिक बन सकते हैं। हर व्यक्ति में सम्मान का गुण आ जाए तो बेहतर समाज व राष्ट्र का निर्माण हो सकेगा। सम्मान का गुण रखने वाला हमेशा लोगों की नजरों में अच्छा होगा। लोग उसकी सराहना और उसी तरह बनने की कोशिश करेंगे। ऐसे में हम बच्चों में सम्मान के गुण को बदलना चाहिए। अगर हम सम्मान सीखेंगे तो उनका जीवन भी आसान होगा।

    अक्षत कुमार

    कक्षा 8 विजय श्री ज्ञान स्थली स्कूल देवरिया

    -----------

    सफल जीवन के लिए स्वाभिमान आवश्यक

    स्वयं को महत्वपूर्ण मानने से बच्चों में आत्म विश्वास पैदा होता है। तथा दूसरों को महत्वपूर्ण प्रतीत करवाने से संतोष मिलता है। वास्तव में दूसरों के मन में महत्ता की भावना को दिखाने की क्षमता एक प्राथमिक अंतर है। जो एक आम प्रबंधक से विशिष्ट को साधारण से भिन्न करता है। स्वाभिमान को अहंकार के समान माना गया है। हो सकता है उसमें नकारात्मक संकेत भी हो। सफल जीवन जीने के लिए स्वाभिमान एक आवश्यक तत्व है।

    रमन कुशवाहा

    कक्षा 7 मैट्रिक स्कूल आफ लर्निंग, डीवाढ़ार, देवरिया