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    Suryakant Tripathi Nirala ने चित्रकूट में 4 साल प्रवास कर की थी साहित्य साधना, खेत-खलिहान में खोजते थे किरदार

    By hemraj kashyapEdited By: Shivam Yadav
    Updated: Sat, 15 Oct 2022 06:07 AM (IST)

    निराला वर्ष 1942 से 46 तक चित्रकूट के विकास खंड कर्वी के ग्राम भरकोर्रा में रहे थे। जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर इस गांव आज भी लोगों के मुंह से नि ...और पढ़ें

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    कवि, उपन्यासकार, निबंधकार और कहानी-लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।

    चित्रकूट, जागरण संवाददाता। कवि, उपन्यासकार, निबंधकार और कहानी-लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की आज यानी 15 अक्टूबर को पुण्यतिथि है। उनका चित्रकूट से गहरा नाता था। उन्होंने यहां के भरकोर्रा गांव में चार साल प्रवास किया था और साहित्य साधना की थी। दिनभर खेत खलिहान में घूम कर किरदार खोजते थे और रात में उनको अपनी लेखनी में उतारते थे। यह संस्मरण चित्रूकट इंटर कालेज कर्वी मे प्रवक्ता रहे साहित्यकार पं. योगेंद्र दत्त द्विवेदी ने अपनी पुस्तक आत्मतोष में दिया है। 

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    निराला ने वर्ष 1942 से 46 तक चित्रकूट के विकास खंड कर्वी के ग्राम भरकोर्रा में रहे थे। जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर इस गांव आज भी लोगों के मुंह से निराला के तमाम किस्से सुनने को मिलते हैं। लोढ़वारा निवासी आलोक द्विवेदी बताते हैं उनके पिता पं. योगेंद्र दत्त द्विवेदी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि निराला का भरकोर्रा में रामलाल गर्ग के घर पर प्रवास था। 

    दिन भर खेत खलिहान घूमते थे

    गांव वाले महात्मा समझते थे। महाराज जी से संबोधित करते थे। वह खादी के सफेद तहमद व कुर्ता पहनते थे। क्लीन शेब्ड व सिर पर लंबे बाल होते थे। दिनभर खेत खलिहान में घूमते थे। ग्रामीणों के साथ गिल्ली डंडा खेलते, कभी अखाड़ा में कुश्ती लड़ते और उपन्यास के लिए चतुरी, बिल्लेसुर व बकरिहा जैसे किरदार खोजते थे। वह काफी मस्त मौला थे अपनी मन की करते थे। 

    एक बार जबलपुर में इसी कारण चोरी का मुकदमा उन पर दर्ज हो गया था। कवि सम्मेलन में गए थे बिना बताए चले थे। जिस कमरे में रुके थे बगल में सराफा की दुकान से आभूषण चोरी हो गए थे, जिसके मालिक ने निराला के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखाई थी, लेकिन बाद में उनके बाबा (जमीदार) के लिखकर देने पर बरी हुए थे। 

    साहित्यकार के साथ अच्छे पहलवान भी

    आलोक बताते हैं कि ऐसे तमाम किस्से हैं। बांदा में सम्मेलन के दौरान एक कवि के लिए डिप्टी कलेक्टर को मंच पर फटकार लगा दी थी। उस सम्मेलन के लिए तहसीलदार खुद लेने आए थे। वह साहित्यकार के साथ अच्छे पहलवान भी थे। जातिपात के भेदभाव के खिलाफ थे। वह महामानव की समता के सिद्धांत से प्रेम करते थे। इसी वजह से वह जमीन से जुड़े थे।