प्रेमानंद महाराज पर टिप्पणी करने वाले जगद्गुरु रामभद्राचार्य जानें कहां रहते हैं, कितना पढ़ें लिखे
Premanand Maharaj Vs Rambhadracharya प्रेमानंद एक अक्षर संस्कृत बोलकर दिखाएं इस बयान के बाद से विवाद शुरू हो गया है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी के बाद उन्होंने ने भी मामले को लेकर दोबारा बयान दिया। जगदगुरु रामभद्राचार्य ने उन्हें पुत्र तुल्य माना है। उन्होंने कहा कि मैं आचार्य होने के नाते सबको कहता हूं संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए।
जागरण संवाददाता, चित्रकूट। Premanand Maharaj Vs Rambhadracharya प्रेमानंद महाराज के ज्ञान को लेकर तुलसी पीठाधीश्वर पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज के बयान के बाद मामला तूल पकड़ता जा रहा है। हालांकि जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने इस मामले में दोबारा बयान देकर उन्हें पुत्र तुल्य बताया है। उन्होंने कहा, मैं आचार्य होने के नाते सबको कहता हूं संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। आज सामान्य लोग चोला पहन कर वक्तव्य दें रहे हैं, जिनको एक अक्षर आता जाता नहीं है। बता दें कि जगदगुरु राभद्राचार्य की जन्म के दो माह बाद ही आंखों की रोशनी चली गई थी। उन्होंने आठ साल में रामचरित मानस को कंठस्थ कर लिया था।
भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण से सम्मानित तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को हुआ था। जन्म के दो महीने बाद ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई। उसके बावजूद उन्होंने 8 साल की उम्र में रामचरितमानस को कंठस्थ कर लिया था। आज वे 22 भाषाएं बोलते हैं व 80 से अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। उन्होंने तपोभूमि चित्रकूट में रहकर रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना की। जिससे आज राज्य सरकार संचालित कर रही हैं। जगद्गुरु कथा, प्रवचन तो करते ही है लेकिन राजनीति में भी बेबाक टिप्पणी करते है वे हमेशा अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहे हैं।
रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु में से एक रामभद्राचार्य महाराज जिला जौनपुर के सुजानगंज क्षेत्र के साड़ीकला में जन्मे थे। बचपन में उनका गिरिधर मिश्र था। 1971 में गिरिधर मिश्र वाराणसी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत व्याकरण में शास्त्री के लिए प्रवेश किया। 1974 में उन्होंने सर्वाधिक अंक हासिल किया। इसके बाद इसी विश्वविद्यालय से आचार्य की उपाधि ली। उनके चतुर्मुखी ज्ञान के लिए विश्वविद्यालय ने उन्हें 30 अप्रैल 1976 के दिन विश्वविद्यालय में अध्यापित सभी विषयों का आचार्य घोषित किया।
आज देश भर के लोग उन्हें स्वामी रामभद्राचार्य के तौर पर जानते हैं। रामजन्मभूमि मामले के फैसला में उनकी गवाही अहम रही है। उनके तथ्यों, तर्कों और उनकी मेधा ने हमेशा धर्म को समृद्ध ही करने का काम किया है।
बचपन में आंखों की रोशनी जाने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण की और धर्म आध्यात्म के प्रचार को रामकथा शुरू की। उससे मिलने वाली दक्षिणा से दिव्यांगों के लिए काम किया। पहले मिडिल शिक्षा तक विद्यालय खोला। उसका बाद उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना समाज हित में की। जिससे वह जीवनपर्यंत कुलाधिपति हैं। वह दुनिया के पहले ऐसे कुलाधिपति है जो दृष्टिबाधित है। जब वह दो महीने के ही थे ट्रेकोमा नामक बीमारी से इनके आंखों की रोशनी चली गई थी।
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ये है पूरा मामला
एक साक्षात्कार के दौरान संत प्रेमानंद को पद्मविभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने चुनौती दे दी थी। उन्होंने कहा था कि वे मेरे सामने एक अक्षर संस्कृत का बोलकर दिखाएं। मेरे द्वारा कहे गए किसी भी श्लोक का अर्थ समझाएं। उसके बाद देखते ही देखते उनका इंटरनेट मीडिया पर विरोध शुरू हो गया। जिसको लेकर उन्होंने सोमवार को एक वीडियो जारी कर सफाई दी। पहले जगदुगरु के उत्तराधिकारी रामचंद्रदास का वीडियो आया फिर उन्होंने खुद वीडियो जारी किया। उन्होंने कहा, आज सामान्य लोग चोला पहन कर वक्तव्य दें रहे हैं, जिनको एक अक्षर आता जाता नहीं है। मैंने तो अपने उत्तराधिकारी रामचंद्र दास को भी कहा है संस्कृत पढ़ना चाहिए। मैं सब को कह रहा हूं प्रत्येक हिंदू को संस्कृत पढ़ना चाहिए।
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