फूहड़ गीतों का पड़ रहा प्रतिकूल असर
मुगलसराय (चंदौली) : इन दिनों द्विअर्थी व फूहड़ भोजपुरी गीतों का चलन बढ़ गया है। वक्त चाहे पूजा का हो या वैवाहिक आयोजन हर जगह इन्हीं द्विअर्थी व फूहड़ गीतों की धूम है। सबसे हास्यास्पद तो यह है कि इन गीतों में इस कदर से अश्लीलता परोसी जा रही है कि कोई भी सार्वजनिक तौर पर सुनकर शर्म खा जाए। इन गीतों के चलन से समाज पर खासकर नई पीढ़ी पर गलत असर पड़ रहा है, ऐसा मानना है नगर के प्रबुद्ध लोगों का। लोगों ने 'जागरण' से बातचीत में अपनी राय व्यक्त की।
ईसीआरएमसी के अध्यक्ष राममूरत इन दिनों चल रहे द्विअर्थी अश्लील गीतों के चलन से काफी दुखी हैं। उन्होंने बताया कि इसका असर यह है कि घर में छोटे छोटे अबोध बच्चे उन गीतों के अर्थ से अनजान होकर जब गाना शुरू करते हैं तो बड़ों को भी शर्म महसूस होने लगती है। समझ में नहीं आ रहा आखिर कहां जा रहा है यह समाज। एक समय था जब अच्छे गीतों व भजनों को लोग गुनगुनाते थे। वहीं अब तो जो गीत सुनाई पड़ रहे हैं उनसे दुख ही पहुंचता है।
शिक्षक व लोकगीत रचनाकार, गायक राजनाथ बताते हैं कि सबसे अधिक पीड़ा इस बात की होती है कि संगीत जिसके माध्यम से न केवल समाज में परिवर्तन दिखता था बल्कि व्यक्ति का व्यक्तित्व भी बदल जाता था। उसी संगीत को आज किस कदर प्रस्तुत किया जा रहा है। इस तरह के अश्लील व द्विअर्थी गीतों को रचनाकार कैसे रचते हैं और जिस बात को सार्वजनिक तौर पर कह नहीं सकते उसे किस कदर गायक गाते हैं। यह सब देखकर दुख होता है।
समाजसेवी वीरेंद्र अग्रवाल ऊर्फ बच्चा जी कहते है कि नई पीढ़ी पर समाज में चल रहे हर चीज का असर पड़ता है और आज के दौर इसमें सबसे महत्वपूर्ण संगीत है। जब से भोजपुरी फिल्म व गीतों का चलन बढ़ा है अश्लीलता भी बढ़ती जा रही है। पहले बड़ों के सामने मर्यादित शब्दों का इस्तेमाल होता था। अब तो कोई मर्यादा रह ही नहीं गया है।
साहित्यकार व समाजसेवी एमएन सिन्हा ऊर्फ मृदुल बताते हैं कि ये चीजें इसलिए बढ़ती जा रही है क्योंकि समाज के प्रबुद्ध लोगों ने इसका प्रतिकार करना छोड़ दिया है। अश्लील गीत लिखने वालों तथा गाने वालों का बायकाट होना चाहिए। इतना ही नहीं इनकी दुकान तब तक चलती रहेगी जब तक बाजार में इनकी मांग बनी रहेगी। इसलिए प्रबुद्ध लोगों को ध्यान देना होगा कि नई पीढ़ी को समझा कर किसी भी महत्वपूर्ण अवसर पर अश्लील भोजपुरी गीतों को बजने से रोका जाए।
दूर संचार विभाग से सेवानिवृत्त एसडीओ डीडी दुबे कहते है कि हमारे संस्कार इन गीतों के माध्यम से प्रभावित हो रहे हैं। गीत भी ऐसे की शब्दों के माध्यम से किसी भी हद तक नग्नता परोसने को आतुर है। इन गीतों के वजह से बच्चों में बड़ों के प्रति अदब खत्म होता जा रहा है। यही बच्चे आगे चलकर गलत रास्ते पर जा रहे हैं। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी है कि ऐसे गीतों को रोका जाए।
समाजसेवी रमेश पाल ने बताया कि सरकार को कानून के तहत अश्लील व द्विअर्थी गीतों को प्रतिबंधित करना चाहिए। इसके लिए गीतकार, गायक, गीतों के प्रकाशक, सीडी, डीवीडी बेचने वाले दुकानदार, सार्वजनिक स्थानों पर इन गीतों को बजाने वाले लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करना चाहिए। ऐसा करने से ही समाज को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।