गंगा नदी की रामसर साइट का होगा उद्धारीकरण
बुलंदशहर, जेएनएन। जलीय जीवों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2005 में ऊंचागांव के बसी गांव से नरौरा तक गंगा नदी के क्षेत्र को रामसर साइट का दर्जा दिया था। रामसर साइट को विकसित करने के लिए वन विभाग द्वारा कार्ययोजना तैयार की जा रही है, जिसे वन संरक्षक (सीएफ) मेरठ और शासन को लखनऊ भेजने की तैयारी की जा रही है। 250 किमी में फैली है रामसर साइट जलीय जीवों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2005 में हापुड़ जिले के बृजघाट से लेकर बुलंदशहर के नरौरा तक करीब 250 किमी से अधिक गंगा के क्षेत्र को हिस्से को रामसर साइट घोषित किया गया है। वन विभाग के अनुसार रामसर साइट में प्रदूषण कम होने के कारण यहां पर जलीय जीवों और पक्षियों की संख्या सबसे ज्यादा है। विदेशी पक्षियों से रामसर साइट गुलजार रहती है। वेटलैंड किए जाएंगे विकसित मगर अब पक्षियों और जलीय जीवों के और संरक्षण के लिए शासन ने रामसर साइट में वेटलैंड विकसित करने की मंजूरी दी है। बृजघाट से लेकर नरौरा तक रामसर साइट में जगह-जगह कई वेटलैंड विकसित किए जाएंगे। इसमें गंगा के दोनों तरफ 150 किमी के दायरे में यह वेटलैंड होंगे। इनमें छोटे-छोटे तालाब और टापू बनाए जाएंगे जहां पर्याप्त हरियाली रहेगी। वन विभाग इन वेटलैंड को विकसित करने की कार्ययोजना तैयार कर रहा है। ये है रामसर साइट रामसर साइट एक आर्द्रभूमि स्थल है जिसे रामसर कंवेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व के लिए नामित किया गया है। रामसर नाम ईरान के रामसर शहर से है। रामसर सूची का उद्देश्य आर्द्रभूमि के एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को विकसित करना और बनाए रखना है। रामसर साइड को प्रदूषण मुक्त करना और जलीय जीवों के संरक्षण के लिए गंगा की सफाई और वैटलेंड स्थापित कराए जाते हैं। इन्होंने कहा... जनपद में गंगा का करीब 65 किमी का क्षेत्र है जिसे रामसर साइट का दर्जा प्राप्त है, इसमें वैटलेंड बनाने और जलीय जीवों के संरक्षण के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। अनुमोदन मिलने पर रामसर साइट पर उद्धारीकरण का कार्य कराए जाएंगे। -विनीता सिंह, डीएफओ।
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