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    संस्कार ही शिष्टाचार व आचरण की जननी

    शिष्टाचार अथवा विनम्रतापूर्वक एवं शालीनता पूर्ण आचरण ही वह आभूषण है जो मनुष्य को आदर व सम्मान दिलाता

    By Edited By: Updated: Thu, 22 Sep 2016 10:03 PM (IST)

    शिष्टाचार अथवा विनम्रतापूर्वक एवं शालीनता पूर्ण आचरण ही वह आभूषण है जो मनुष्य को आदर व सम्मान दिलाता है। शिष्टाचार, व्यवहार का नैतिक मापदंड जिस पर सभ्यता एवं संस्कृति का भवन निर्माण होता है। एक दूसरे के प्रति सदभावना, सहानुभूति व सहयोग आदि शिष्टाचार के मूल आधार है। शिष्टाचार का क्षेत्र बहुत व्यापक है। जहां-जहां भी एक-दूसरे व्यक्ति से संपर्क होता है वहां शिष्टाचार की जरूरत होती है।

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    उनका कहना है कि किसी व्यक्ति द्वारा किया गया वह व्यवहार जिससे दूसरे व्यक्ति का सामाजिक हृास हो अथवा जो दूसरे व्यक्ति को व्यवहार अप्रिय लगे वह अशिष्टता कहलाता है। अशिष्टता के बारे में वेदों और पुराणों में भी कुछ पंक्तियां कही गई है।

    सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात्, अप्रियम सत्यम न ब्रूयात।

    अर्थात सत्य बोलो परंतु प्रिय बोलो। कभी भी असत्य नहीं बोलना चाहिए किन्तु अप्रिय सत्य भी अशिष्टता की ही श्रेणी में आता है। इसी क्रम में एक अप्रिय सत्य जो महाभारत के युद्ध में घटना घटित हुई। द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा मारा तो गया परंतु हाथी जिसके कारण द्रोणाचार्य जैसे गुरु को युद्ध तथा अपने जीवन से पराजित होना पड़ा। परंतु आज के युग में न तो द्रोणाचार्य जैसे गुरु और न ही एकलव्य जैसे शिष्य है। आज बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि युवाओं में शिष्टाचार का अभाव है। आज से पचास वर्ष पूर्व सामूहिक परिवार में बच्चा दादा-दादी, नाना-नानी से श्रीराम, कृष्ण, भगत सिंह आदि की कहानी सुनकर बढ़ा होता था तब बच्चे के अंदर वो सभी गुण इन्हीं आदर्शो के होते थे। नैतिकता जीवन का एक सहज व कुदरती आयाम है। यह ऐसी वस्तु नही है जो शिक्षा से धर्म से अथवा गुरु से भेंट स्वरुप सौंपी जा सके। आज के इस भौतिकवादी व आधुनिक युग में शालीनता दुर्लभ गुण बनकर रह गई है। खेल का मैदान हो या समाज, घर परिवार हो अशिष्टता एवं अनाचार की कीमत हमारे परस्पर संबंधों को चुकानी पड़ती है। हमारी संवेदनाओं पर आघात हुआ है।

    - मोली नरौना, प्रधानाचार्या पीडी ग‌र्ल्स स्कूल, गुलावठी।

    युवा पीढ़ी में शिष्टाचार की शिक्षा बेहद जरूरी

    अशिष्टता अर्थात सदाचार का न होना। अशिष्टता अनैतिकता का मूल कारण है। बच्चा बचपन से ही शिष्टता माता-पिता से सीखता है। लेकिन वर्तमान समय में व्यस्ततापूर्ण जीवनशैली के कारण माता-पिता बच्चों को पर्याप्त समय नही दे पाते है। जिस कारण बच्चा जाने-अंजाने में अशिष्टता का व्यवहार करने लगता है। वह कहते है कि आधुनिक युग संचार का युग है। सूचनाओं के आदान प्रदान का प्रयोग हम इसके लिए करते है। फेसबुक, ट्वीटर, व्हाटस एप जैसी सोशल साइटस पर हर कोई अपना एकाउंट बनाकर प्रयोग करना चाहता है, जिसमें शिष्टाचार नितांत जरुरी है। हमे अपनी प्रोफाइल की फोटो तथा अन्य फोटो में शिष्टता का ध्यान रखना आवश्यक है।

    आज के युग में हम नैतिकता की तो बहुत बात करते है। हमारा जीवन नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण होना चाहिए। समाज सभ्य बने यह हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। समाज में फैली बुराइयों की वजह से हम नैतिक मूल्यों का हनन कर रहे है। जिसका प्रभाव इस पीढ़ी पर तथा आने वाली पीढि़यों पर भी पड़ेगा। अनैतिकता का मुख्य कारण अशिष्टता है। जो कि समाज में अब व्यापक रुप से फैली हुई है। अब से लगभग दो दशक पूर्व पहले समाज में जो शिष्टता थी तथा भाईचारा था। छोटे बड़े की शर्म थी आज वो धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। अहंकार की वजह से लोगों में शिष्टता समाप्त होती जा रही है। यदि हमे शिष्ट समाज और सभ्य समाज की स्थापना करनी है तो पूर्ण रुप से नैतिक मूल्यों को समझना होगा।

    - पुरूषोत्तम शर्मा, प्रधानाचार्य एससीएम सीनियर सेकेंड्री स्कूल, गुलावठी।

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    सत्य ही बनाता है संस्कारवान

    सत्य ही वह शिक्षा है जो मानवीय गुणों में समायोजित होकर उसे संस्कारवान बनाती है। माता-पिता के रोकने पर बच्चों में अज्ञानता के कारण अशिष्टता की भावना आ जाती है और बच्चे शिष्टाचार को भूल अशिष्ट हो जाते हैं तथा अनैतिक व्यवहार करने लगते है। इसलिए हमे बच्चों को प्यार से समझाकर उन्हें हित और अहित की बातों से अवगत कराना चाहिए तथा उन्हें शिक्षाप्रद बातों के लिए भी प्रेरित करना चाहिए।

    - मणि कणिका, शिक्षिका, पीडी ग‌र्ल्स स्कूल गुलावठी।

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    अच्छी शिक्षा से ही खत्म होगी अनैतिकता

    अच्छी शिक्षा से ही समाज में अनैतिकता को खत्म करने की जरूरत है। नैतिक मूल्य एक तरह से भारतीय संस्कृति की पहचान व पुरखों से मिली अनमोल धरोहर है। परंतु युवा पीढ़ी इस बेशकीमती धरोहर को खोती जा रही है। युवाओं के अशिष्टतापूर्ण व्यवहार, बड़ों के प्रति अनादर, मनमानी से उनका नैतिक स्तर काफी हद तक गिर गया है। बच्चों को अच्छे संस्कार व अच्छी शिक्षा के माध्यम से ही समाज में अनैतिकता को खत्म किया जा सकता है।

    - पूजा तेवतिया, शिक्षिका।

    अनुशासनहीनता का बोलबाला

    हमारा भारत देश एक ऐसा देश है जहां प्राचीन वैदिक काल से ही हमारे पूर्वज अपने बच्चों को नैतिकता व सभ्यता का पाठ पढ़ाते चले आ रहे है। नैतिक शिक्षा के अभाव के कारण ही आज अनुशासनहीनता का बोलबाला है। नई पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति सभ्यता को अपनाकर भारतीय संस्कृति सभ्यता को भूलती जा रही है। जो अशिष्टता तथा अनैतिकता को बढ़ावा दे रही है। जिसका मुख्य कारण है उपभोक्तावाद। उपभोक्तावाद ने आज फैशन, टीवी, इंटरनेट इत्यादि को अधिक बढ़ावा दिया है। जिसका प्रभाव हमारी नई पीढ़ी पर पड़ रहा है। उपभोक्तावाद संस्कृति ने हमारी सभ्यता संस्कृति की नींव को अस्थिर कर दिया है।

    - प्रमोद शर्मा, शिक्षक एससीएम स्कूल, गुलावठी।

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    नैतिक मूल्य का निर्धारण करे

    युवा पीढ़ी अशिष्टता का आचरण करते हुए नैतिकता छोड़ गलत राह पर चल पड़ी है। हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित किए गए नैतिक मूल्यों को भूल चुके है। माता-पिता का आदर करना, बड़ों का सम्मान करना अब जैसे उसके लिए खुद को छोटा समझना है। आज विद्यार्थी को जीवन में नैतिक मूल्यों को धारण करना ही होगा।

    - शैली शर्मा, छात्रा।

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    बड़ों का आदर सत्कार जरुरी

    नैतिकता को बढ़ावा देना होगा। आज इंसान का ही दुश्मन इंसान हो गया है। इंसान का स्वभाव न सिर्फ उसकी जिंदगी पर असर डालता है बल्कि उसके आसपास के वातावरण पर भी असर पड़ता है। विद्यार्थी गलत आदतों की वजह से अशिष्टता का आचरण करता है। हमे अपने बड़ों का आदर सत्कार करना होगा।

    - इकरा कुरैशी, छात्रा।

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    युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन जरुरी

    कड़वा सच तो यह है कि हमारे समाज में यह शब्द पहचान खोते जा रहे है। समाज अशिष्टता के चलते हर रोज समाज पतन की नई गहराइयों को नाप रहा है। हमें सार्थक कदम उठाने की जरूरत है साथ ही युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करने की। सफलता तभी नही आती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश्य और सिद्धांत भूल जाते है।

    - अंशु तोमर, छात्रा।