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    भूले-बिसरे शब्दों की 'संजीवनी' बने डा. अशोक

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 20 Feb 2018 10:20 PM (IST)

    बिजनौर: खड़ी बोली क्षेत्र में आने वाली बिजनौर जनपद की अपनी क्षेत्रीय बोली है। आम बोलचाल की भाषा ...और पढ़ें

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    भूले-बिसरे शब्दों की 'संजीवनी' बने डा. अशोक

    बिजनौर: खड़ी बोली क्षेत्र में आने वाली बिजनौर जनपद की अपनी क्षेत्रीय बोली है। आम बोलचाल की भाषा में इन शब्दों का खूब प्रयोग किया जाता रहा है लेकिन यह शब्द तेजी से अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। बुजुर्गो से विरासत में मिले इन शब्दों के खजाने को ¨हदी प्रवक्ता डा. अशोक शर्मा ने बचाने का बीड़ा उठाया है। वह ऐसे शब्दों का कोष तैयार करने में जुटे हैं जिनका प्रयोग गांव-देहात का हर सामान्य व्यक्ति करता तो है लेकिन साहित्य में इन शब्दों का प्रचलन खत्म या फिर नाममात्र को हो रहा है।

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    हर क्षेत्र की अपनी क्षेत्रीय बोलचाल होती है। बिजनौर जिले की भी अपनी प्रचलित बोली है। इसमें शिक्षित वर्ग और अशिक्षित वर्ग की अपनी-अपनी प्रचलित बोलचाल है। दोनों ही वर्गो में बहुत से ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है जो हमें पुरखों से विरासत में मिले हैं लेकिन यह शब्द साहित्य में जगह नहीं बना पाए। ऐसे ही शब्दों को खोजने और उन्हें सहेजने का बीड़ा पृथ्वीराज चौहान कालेज में ¨हदी के प्रवक्ता डा. अशोक शर्मा ने उठाया है। उनकी दो पुस्तकें बिजनौर जनपद के भूले-बिसरे साहित्यकार तथा शिक्षाप्रद बाल कहानियां शामिल हैं। एक संग्रह वाह रे माली प्रकाशित होने वाला है। इन पुस्तकों में उन्होंने गांव-देहात में बोले जाने वाले शब्दों का प्रयोग किया है। इसके अलावा वह ग्रामीण बोलचाल में प्रयोग होने वाले शब्दों का संग्रह करने में जुटे हैं। वह इन शब्दों का कोष तैयार कर रहे हैं। ग्राम शादीपुर के मूल निवासी तथा वर्तमान में साहित्य विहार कालोनी में रह रहे डा. अशोक शर्मा बताते हैं कि ग्रामीण बोली में शब्दों का भंडार है। जितना हो सकता है वह इसे सहेजकर रखना चाहते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी इन शब्दों से रूबरू हो सके और हमारी यह धरोहर बची रहे।

    डा. ओमदत्त आर्य ने किया शब्दावली का अध्ययन

    नई बस्ती निवासी डा. ओमदत्त आर्य ने बिजनौर क्षेत्र की ग्रामोद्योग संबंधी शब्दावली का अध्ययन किया और इसी नाम से एक पुस्तक प्रकाशित की। वर्ष 2008 में प्रकाशित अपनी इस पुस्तक में उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित शब्दों का जिक्र किया है। उन्होंने कृषि, फसलों, खाद, जलवायु, पशुपालन, गुड़, खांड, शक्कर उद्योग, मुर्गी पालन, ग्रामीण यातायात, काष्ठ उद्योग, हथकरघा उद्योग, चर्म उद्योग, फुटकर व्यवसाय, स्त्रियों के गृह कार्य से संबंधित शब्दावली इस पुस्तक में लिखी है।

    ग्रामीण बोलचाल में प्रयोग होने वाले प्रमुख शब्द

    ढिबरी, लालटेन, आट्ठे, किवाड़, रहट, गिरज, बाड़ी, कमंडल, छोक्कल, थामर, बढ़ी, जिनावर, लडोरी, हांकना, फलसा, नून, चौखटा, ऊंटरा, जुआ, पाथा, टहनी, सोंट, हथकी, चरखी, लिपटिस, बहड़ा, पिलखन, निमौली, किक्कर, सब्बल, अरंड, बहंगी, छिक्का, खाट, बाही, खपरैल, खुरपा, गंडासा, गुल्लर, डंक, डंगर, झोटा, झारा, दाढ़ी आदि।