Bijnor News: बाघ के डर से खेतों में आया गुलदार, अब बन गया सबसे बड़ा शिकारी
बिजनौर में बाघ के डर से गुलदार खेतों में आ गए हैं और अब सबसे बड़े शिकारी बन गए हैं। गन्ने के खेत गुलदारों के लिए सुरक्षित ठिकाना बन गए हैं जिससे उनकी आबादी तेजी से बढ़ रही है। गुलदार गांवों में घुसकर शिकार कर रहे हैं जिससे मानव-गुलदार संघर्ष बढ़ रहा है।

जागरण संवाददाता, बिजनौर। बाघ के डर से खेतों में आया गुलदार अब यहां सबसे बड़ा शिकारी है। उसका न तो किसी से मुकाबला है और न किसी का डर। अब गुलदार को खेतों का बाघ भी कहा जा सकता है।
गन्ने के खेतों में उसे शिकार भी मिला और शावक के लिए सुरक्षा भी। शावक लगातार नए इलाकों में फैलते चले गए और अब गुलदार का कुनबा बेकाबू है। गुलदार गांवों में घुस कर आसानी से शिकार कर रहा है।
गुलदारों का खेतों में गांव के आसपास दिखना कोई नहीं बात नहीं है। आठ सितंबर को गुलदार ने नयागांव में घर के अंदर आकर हर्ष को उसकी मां के सामने मारा था।
अमानगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2014 तक अमानगढ़ में 14 बाघ थे जो वर्ष 2023 तक बढ़कर 32 हो चुके हैं। टाइगर प्रोजेक्ट में बाघों के संरक्षण पर जिले में भी बहुत काम हुआ।
इसका नतीजा ये हुआ कि बाघ बढ़ गए और गुलदार उनसे अपनी जान बचाने के लिए वन से बाहर आ गए। गुलदार लाख फुर्तीला सही लेकिन फिर भी बाघ के लिए वह आसान शिकार है। पेड़ पर चढ़कर ही गुलदार बाघ से अपनी जान बचा सकता है।
गुलदार के शावकों को बाघ देखते ही मार डालते हैं। अपने अस्तित्व को बचाने के लिए गुलदारों ने पहले अमानगढ़ के आसपास के गांवों की ओर निकलना शुरू किया और अब पिछले पांच वर्ष में ही पूरे जिले में फैल चुके हैं।
गन्ने की फसल गुलदारों के गांवों में प्रवेश द्वार की तरह हो गई। मानव-गुलदार संघर्ष बढ़ने का भी सबसे बड़ा मुख्य कारण गांवों के पास तक बोई गई गन्ने की फसल ही है। वन विभाग के आंकड़ों में केवल बिजनौर वन प्रभाग में 287 गुलदार हैं। जबकि वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक माना जाता है।
वन विभाग केवल दो वर्षों में 105 गुलदारों को पकड़ चुका है और 135 गुलदार हादसों में मारे गए हैं। बाघों को अमानगढ़ में अपना कुनबा दो से ढाई गुना करने में एक दशक लग गया, जबकि गुलदारों का कुनबा पांच वर्ष में ही तीन से चार गुना तक हो गया है।
पौने तीन वर्ष में गुलदार 35 लोगों की जान ले चुका है। आखिरी चार लोग तो केवल 12 दिन के अंदर मारे हैं। जबकि सौ से अधिक लोग गुलदार के हमले में घायल भी हो चुके हैं। वन विभाग इस आंकड़े को यहीं रोकने के लिए एडी चोटी के जोर लगा रहा है लेकिन बात बनती नहीं दिख रही है।
गन्ने के खेतों में हमलों का घातक सच
जिले में गुलदार ने दस वर्षों में 45 लोगों को मारा है जबकि बाघ के हमले में केवल एक जान गई है। बीते साल अमानगढ़ में बाघ ने एक वन गुर्जर बस्ती की एक युवती को मार डाला था। यह एक घातक इत्तेफाक है कि गुलदार ने जिन लोगों को मारा हैं उनमें 40 से अधिक जान गन्ने के खेतों में ही गई हैं।
नदियों का किनारा बना मुफीद
गुलदार आमतौर पर नदियों के आसपास रहना पसंद करता है। जिले में नदियों का जाल बिछा है, नहरें, रजवाहे हैं और तालाब भी खूब हैं। ऐसे में गुलदार को कहीं भी रहने के लिए कोई दिक्कत नहीं आई। जल स्रोतों के किनारे गुलदार को शिकार भी आसानी से मिल रहा है। अब गुलदार के स्वभाव पर सर्वे के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की टीम बुलाई गई है, लेकिन वह भी तीन साल तक सर्वे करके कोई रिपोर्ट देगी।
बाघ के डर से गुलदार खेतों में आया है। गन्ने के खेतों में उसे पूरा संरक्षण मिला। गुलदारों को पकड़ने के लिए लगातार अभियान चलाया जाता रहता है। किसानों को भी जागरूक कर रहे हैं। शासन स्तर से भी टीम सर्वे कर रही है। - पीपी सिंह, मुख्य वन संरक्षक
पिंजरे के पास आया, बैठा और आराम से चला गया गुलदार
वहीं दूसरी ओर एक सप्ताह में दो बच्चों और एक महिला को मारने वाले गुलदार को पकड़ने के लिए टीम इंतजार करती रही और गुलदार दूसरी ओर लगे पिंजरे के पास बैठकर चला गया। सुबह को ट्रैंप कैमरे में गुलदार के आने का पता चला है।
इसके अलावा टीम को दो स्थानों पर गुलदार दिखा है। दोनों ही गुलदारों को ट्रैंकुलाइज किया जाएगा। गुलदार को पकड़ने के लिए मंडल के सभी जिलों से टीम पहुंच गई है। वन विभाग के अधिकारी मान रहे हैं कि गुलदार को बहुत जल्दी पकड़ लिया जाएगा।
गुलदार ने रविवार को गांव इस्सेपुर में खेत में स्वजन के साथ घास काट रहीं मीरा देवी को मार डाला था। इससे पहले गुलदार आठ सितंबर को नयागांव में हर्ष और पांच सितंबर को गांव कंडरावाली में गुड़िया को मार चुका है।
तीनों गांव आपस में चार से पांच किलोमीटर के दायरे में आते हैं। गुलदार को ट्रैंकुलाइज करने की अनुमति मिल चुकी है। रविवार को खेतों में तलाश की गई तो कई जगह उसके लगातार आने के साक्ष्य मिले।
गुलदार को ट्रैंकुलाइज करने के लिए डॉ. दक्ष गंगवार गांव इस्सेपुर के जंगल में और डॉ. नासिर नयागांव के जंगल में बैठे रहे लेकिन गुलदार नहीं आया। सोमवार को वन विभाग ने खेतों में लगे ट्रैप कैमरे देखे तो गांव इस्सेपुर के पास लगे एक ट्रैप कैमरे में गुलदार का फोटो मिला है।
गुलदार वहां आया था और बैठा रहा लेकिन पिंजरे में नहीं गया। गुलदार ने मीरा देवी को मार डाला था लेकिन शव को नहीं खा पाया था। टीम को लगता है कि गुलदार का पेट भरा हुआ होगा वरना बकरी को मारने के लिए वह खेत में जरूर जाता।
सोमवार को कुछ नए स्थानों पर भी गुलदार के चलने से बनी पगडंडी मिली हैं। माना जा रहा है कि गुलदार पूरी तरह व्यस्क है। वहां भी पिंजरे लगाए गए हैं। टीम आज ट्रैंकुलाइज करने के लिए स्थान बदलेगी।
वहीं, रविवार को इस्सेपुर के पास गांव महावतपुर में भी टीम को एक गुलदार नहर की पटरी पर चलता दिखा। टीम के होने की आहट पर वह खेतों में चला गया। इससे माना जा रहा है कि इलाके में दो गुलदार हैं।
दोनों गुलदार किए जाएंगे ट्रैंकुलाइज
गुलदार को पकड़ने के लिए वन विभाग ने 12 पिंजरे लगाए हैं और सभी में बकरी बांधी है। गुलदार को पकड़ने के लिए पिंजरों के स्थान भी कुछ बदले गए हैं। वन विभाग की टीम के सामने जो भी गुलदार आएगा उसे ट्रैंकुलाइज कर दिया जाएगा। टीम दोनों की गुलदारों को ट्रैंकुलाइज करेगी।
महिला का हुआ अंतिम संस्कार, अधिकारियों ने व्यक्त की संवेदना
रविवार को गुलदार के हमले में मरी महिला का शव घर पहुंचते ही स्वजन में रुदन मच गया और गांव में शोक की लहर दौड़ गई। इस दौरान डीएफओ सहित वन विभाग के अधिकारी और एसडीएम, सीओ और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने महिला के घर पहुंचकर संवेदनाएं व्यक्त कीं।
तहसील नजीबाबाद के ग्राम इस्सेपुर निवासी महेंद्र सिंह रविवार को अपनी 32 साल की पत्नी मीरा देवी के साथ जंगल से पशुओं के लिए चारा लेने गए थे। पति-पत्नी आसपास के खेतों में काम करने लगे। इसी दौरान पीछे से आए गुलदार ने महिला की गर्दन पर हमला कर दिया था, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई थी।
शोर सुनकर लाठी लेकर दौड़े महेंद्र ने अपनी जीवन संगिनी को बचाने का काफी प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। अस्पताल ले जाने पर चिकित्सकों ने महिला को मृत घोषित कर दिया था।
इसके बाद डीएफओ कार्यालय पर स्वजन, ग्रामीण और भाकियू अराजनीतिक ने हंगामा करते हुए चिता लगाकर महिला का अंतिम संस्कार करने का प्रयास किया था।
अफसरों के समझाने पर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। सोमवार को पोस्टमार्टम के बाद महिला का शव घर पहुंचा तो स्वजन में रुदन मच गया और गांव में शोक की लहर दौड़ गई।
दंपती के साथ रहती थी बेटी
ग्रामीणों के अनुसार महेंद्र सिंह अपनी पत्नी मीरा देवी और पुत्री के साथ रहते थे। परिवार की स्थिति अत्यंत दयनीय है।
डीएफओ अभिनव राज, उप संभागीय निरीक्षक ज्ञान सिंह आदि वन अधिकारियों एवं एसडीएम शैलेंद्र कुमार सिंह, सीओ नितेश प्रताप सिंह, तहसीलदार संतोष कुमार ने मृतका मीरा के घर पहुंचकर संवेदनाएं व्यक्त कीं। शासन की ओर से मिलने वाली मदद को यथा शीघ्र दिलाने का भरोसा दिया।
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