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    Bijnor News: बिजनौर से हुआ था देश का नामकरण भारतवर्ष, महाराजा भरत जन्मे थे यहां, ऋग्वेद में है उल्लेख

    By Ajeet ChaudharyEdited By: Abhishek Saxena
    Updated: Wed, 06 Sep 2023 11:17 AM (IST)

    आज भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है और देश फिर से विश्वगुरु बनने की राह पर चल रहा है। भारत को बिजनौर से मिली पहचान गंगा किनारे जन्मे थे राजा भरत। गंगा और मालिनी नदी के संगम पर महर्षि कण्व के आश्रम में जन्मे थे राजा भरत। वहीं पर बीता बचपन। शेर के साथ खूब खेले गिनते थे उनके दांत।

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    Bijnor News: बिजनौर से हुआ देश का नामकरण भारतवर्ष, गजेटियर में दर्ज है कण्व ऋषि आश्रम

    बिजनौर, जागरण संवाददाता। आज देश का नाम कागजों में भी इंडिया के बजाए भारत करने की चर्चा और मांग जोर पकड़ रही है। देश को भारत नाम बिजनौर की धरती से मिला। यह बात अलग है कि देश को नाम देने वाले जनपद को सदियों बाद भी उसकी असली पहचान नहीं मिल सकी।

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    ऋग्वेद में भी मिलता है उल्लेख

    यहां महाराजा भरत और कण्व ऋषि से जुड़ा कोई शिलालेख तक नहीं लगाया जबकि उनका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। प्राचीन ग्रंथों और जानकारों के मुताबिक जिन महाराजा भरत के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष हुआ उनका जन्म बिजनौर जनपद में ही गंगा और मालिनी नदी के संगम स्थल पर स्थित महर्षि कण्व के आश्रम में हुआ था। वहीं पर उन्होंने बचपन बिताया।

    पूरी दुनिया बजा है भारत का डंका

    दिल्ली में होने वाले जी-20 सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जो पत्र जारी किया गया है उसमें अंग्रेजी में प्रेजिडेंट आफ भारत लिखा गया है। देश को भारत नाम बिजनौर की ही धरती से मिला है। बिजनौर में गंगा और मालिनी अर्थात मालिनी नदी का संगम रावली क्षेत्र में होता है।

    महाराजा दुष्यंत और शकुंतला की संतान थे राजा भरत

    महाराजा दुष्यंत और शकुंतला के गंधर्व विवाह और महाराज द्वारा शकुंतला को पहचान के लिए दी गई अंगूठी खो जाने की कहानी सभी ने बचपन में स्कूल की किताबों में तो पढ़ी है। लेकिन यह घटना किस स्थान पर घटित हुई यह बात गिने चुने लोग ही जानते हैं। दोनों का गंधर्व विवाह यहीं पर हुआ था।

    शकुंतला ने यहीं महर्षि कण्व ऋषि के आश्रम में महाराजा भरत को जन्म दिया। महर्षि कालिदास ने इसका उल्लेख अभिज्ञान शाकुंतलम में भी किया है। इतिहासकार हेमंत कुमार के अनुसार हमारे देश को सबसे पहले ब्रह्मवर्त और बाद में आर्यवर्त कहा जाता था। महाभारत के समय से पहले इसे भारतवर्त कहा गया। ऋग्वेद में भी महर्षि कण्व का उल्लेख करते सूतक हैंं। महाराजा भरत के नाम पर ही देश का नाम भारत पड़ा।

    नहीं दिलाई किसी ने बिजनौर को पहचान

    साल दर साल आई बाढ़ से महर्षि कण्व ऋषि के आश्रम का क्षेत्र नष्ट हो गया और इसके बाद किसी ने महर्षि कण्व आश्रम और महाराजा भरत को जिले से जोड़कर यहां की पहचान दिलाने की कोशिश नहीं की। अब जिला प्रशासन द्वारा गांव रावली के पास एक जमीन चिन्हित करके कण्व ऋषि आश्रम प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण केंद्र बनाया जा रहा है।

    गजेटियर में दर्ज है कण्व ऋषि आश्रम

    अंग्रेजों के समय साल 1847 में तैयार किए गए गजेटियर में भी कण्व ऋषि आश्रम और महाराजा भरत के जन्म का उल्लेख बिजनौर में होना दर्ज है। हालांकि राजा भरत की जन्मस्थली को लेकर उत्तराखंड के कोटद्वार जिले के लोग भी दावा करते हैं। कुछ दशक पहले यहां रावली के पास एक शिलालेख भी मिला था उसे भी कोटद्वार के लोग ही ले गए थे।

    यह है कथा

    कथा के अनुसार महाराजा दुष्यंत और शकुंतला की भेंट मालिनी के तट पर बसे महर्षि कण्व ऋषि आश्रम में हुई थी। उन्होंने शकुंतला से प्रेम विवाह किया। महाराजा दुष्यंत कुछ दिन बाद शकुंतला को साथ ले जाने का वचन देकर अपने राज्य को चले गए। एक दिन शकुंतला महाराजा दुष्यंत के बारे में सोच रहीं थी तभी महर्षि दुर्वासा वहां आ गया। शकुंतला द्वारा ध्यान न दिए जाने पर उन्होंने श्राप दिया कि जिसके बारे में वे सोच रहीं थे वह उन्हें भूल जाएगा।

    शकुंतला द्वारा क्षमा मांगने पर उन्होंने कहा कि कोई स्मृति चिन्ह दिखने पर शकुंतला उसे फिर याद आए जाएंगी। शकुंतला महाराजा दुष्यंत के महल में गईं तो वे उन्हें पहचान नहीं सके। शकुंतला महर्षि कण्व के आश्रम में भरत को जन्म दिया। कहा जाता है कि राजा भरत ने यहीं पर बचपन में शेरों के दांत गिने। दुष्यंत द्वारा शकुंतला को दी गई अंगूठी एक मछली ने निगल ली थी। वह जब राजा के सामने ले जाई गई तो राजा को शकुंतला का ध्यान आया।