जब जान बचाने को बिजनौर से भागा था अंग्रेज कलेक्टर
बिजनौर: मेरठ में हुए विद्रोह के बाद बिजनौर में भी देश भक्तों की वीरता और कुर्बानी रंग लाई थी। तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर एलेक्जेंडर शेक्सपियर को अपनी व अन्य अंग्रेजों की जान बचाने को जिला बिजनौर छोड़ देने का फैसला करना पड़ा था। उसने नजीबाबाद के नवाब महमूद अली खां को बुलाकर जिला लिखित रूप में जिला उनके हवाले कर दिया था।
मेरठ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजने का समाचार 12 मई 1857 को बिजनौर मुख्यालय पर पहुंचा। तत्कालीन जिलाधिकारी एलेक्जैंडर शेक्सपियर ने समाचार की पुष्टि के लिए संदेश वाहकों को मेरठ के लिए रवाना कर दिया। गंगा के रावली व दारानगर घाटों पर स्वतंत्रता सेनानियों के जमा होने के कारण संदेश वाहक वापस लौट आये। उन दिनों बिजनौर मुख्यालय पर लगभग 20 अंग्रेज अधिकारी थे। इनमें ज्वांइट कलक्टर जार्ज पामर, जोंस, मर्फी और उनका परिवार आदि थे। अंग्रेज अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए जिलाधिकारी के निवास पर एकत्रित होकर बाहर निकलने के उपाय सोचने लगे। 17 मई 1857 को रावली घाट पर बिजनौर का हाल का जानने के लिए यात्रा कर रहे अंग्रेजों का एक हरकारा लूट लिया गया। चारों ओर से बिजनौर का सम्बंध विच्छेद हो गया। रुड़की से 300 हथियारबंद सैनिक नजीबाबाद पहुंचे और नवाब महमूद अली से जिले की बागडोर संभालने की मांग की। नवाब महमूद अली खां अपनी सेना लेकर बिजनौर मुख्यालय पर आ पहुंचे। 20 मई को स्वतंत्रता सेनानियों ने बिजनौर पर आक्रामण किया और जिला कारागार का मुख्य द्वार तोड़ डाला। समस्त कैदी विद्रोह करते हुए जेल से बाहर आ गए। नवाब महमूद अली खां जिलाधिकारी निवास के सम्मुख अहाते में अपनी सेना सहित शिविर लगाकर जम गये। इससे जान बचाने के लिये अंग्रेज कलक्टर एलेक्जेंडर शेक्सपियर को अपने
सहकर्मियों के साथ बिजनौर से भागने का फैसला करना पड़ा।
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