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    सदियों बाद भी कायम है गाजी मियां का जलवा

    By Edited By:
    Updated: Sat, 10 May 2014 11:03 PM (IST)

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    कैसर परवेज

    भदोही : सैयद सालार मसऊद गाजी रहमतुल्लाह अलैह के सालाना उर्स की आमद के साथ ही अकीदमंदों में जोश व उत्साह का संचार हो गया है। परंपरा के अनुसार उर्स मनाने की तैयारियों के साथ साथ गाजी मियां की करामतों व बुजुर्गी को लेकर चर्चा तेज हो गई है।

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    गाजी मियां के उर्स में सिर्फ मुसलमान ही नहीं भाग लेते बल्कि बड़ी संख्या में हिंदू भी शिरकत करते हैं। मेले के मौके पर दूर दराज से पहुंचने वाले अकीदतमंदों में हर वर्ग के लोग होते हैं, जो न सिर्फ मन्नतें मांगते हैं बल्कि चादर चढ़ाकर अपनी आस्था का परिचय देते हैं। कहा जाता है कि बहराइच में पहली बार गाजी मियां की मजार जासी यादव नाम के एक भक्त ने मिंट्टी को दूध में सान कर बनवाया था। यही कारण है कि गाजी मियां को हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।

    सालाना उर्स करीब आते ही लोगों की जुबान पर

    गाजी मियां के चर्चे होने लगे हैं। गरीबों के मसीहा, बेसहारों के सहारा, यतीमों के पालनहार सहित अनेकों अनेक उपाधियों से आपको नवाजा जाता है। दरअसल यह उनके चाहने वालों की अकीदत है जो आज नहीं बल्कि सदियों से कायम है। तारीख की किताबों व जानकारों के अनुसार उनका जन्म 1034 ईसवी में अजमेर में हुआ था। महज चार वर्ष की उम्र में जब तालीम का सिलसिला शुरू हुआ तो उनकी प्रतिभा देखकर लोग दातों तले अंगुली दबा लेते थे। 10 वर्ष की उम्र बीतते बीतते घुड़सवारी व युद्धंकला में उन्हें महारत हासिल हो चुकी थी। देखते ही देखते ईल्मों हुनर व बहादुरी के चर्चे हर ओर होने लगा था।

    इस बीच उनका बहराइच जाना हुआ। वहां कयाम के दौरान पता लगा कि वहां का राजा न सिर्फ प्रजा के साथ ज्यादती करता है बल्कि दैवीय शक्ति को प्राप्त करने के लिए बच्चों की बलि चढ़ाता है। सैयद सालार ने इसकी रोकथाम करना चाहा तो राजा ने उन्हें बहराइच छोड़कर चले जाने का हुक्म दिया। बताते हैं कि उन्होंने राजा का हुक्म मानने से इंकार करते हुए जंग का एलान कर दिया। जंग के दौरान महज 18 वर्ष की आयु में सैयद सालार शहीद कर दिए गए। बताते हैं कि बहराइच में थोड़े दिन के कयाम में ही उनके व्यक्तित्व व कारनामों का जलवा कायम हो चुका था। नतीजे में शहादत के बाद उनके मानने वालों ने न सिर्फ उनकी मजार बनवाई बल्कि हर वर्ष उर्स के मौके पर उनकी बारात भी धूमधाम से निकाली जाती है।

    कई शहरों में होता है गाजी मियां का उर्स

    पीरों फकीरों व बुजुर्गो का उर्स उनके आस्ताने पर ही मनाया जाता है लेकिन गाजी मियां ऐसे बुजुर्ग हैं जिनका उर्स सिर्फ बहराइच में ही नहीं बल्कि देश के कई शहरों में मनाया जाता है। इस सम्बंध में बताया जाता है कि गाजी मियां की ख्याति और जुटने वाली भीड़ को देखकर औरंगजेब बादशाह ने मेले पर पांबदी लगा दी थी जिससे उनके मानने वाले काफी नाराज हुए और दरगाह की ईंटे अपने अपने शहर उठा ले गए। इस दौरान लोगों ने ईंटों को रखकर मजार बनवाया तथा हर वर्ष धूमधाम से उर्स मनाते हैं।