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    उद्योगपति नारंग ने बस्ती में जलाई थी औद्योगिक क्रांति की मशाल

    वाल्टरगंज चीनी मिल पर ऐसे समय ग्रहण लगा जब वह अपने सौ साल पूरा करने को थी।

    By JagranEdited By: Updated: Sat, 27 Oct 2018 10:50 PM (IST)
    उद्योगपति नारंग ने बस्ती में जलाई थी औद्योगिक क्रांति की मशाल

    बस्ती : वाल्टरगंज चीनी मिल पर ऐसे समय ग्रहण लगा जब वह अपने सौ साल पूरा करने को थी। बड़े उद्योगपतियों में शुमार देशराज नारंग ने बस्ती को अपना कार्य क्षेत्र चुना था। यहां औद्योगिक क्रांति का बीज उन्होंने ही बोया था। जिला मुख्यालय पर रेलवे स्टेशन के निकट नारंग चीनी मिल की स्थापना की। इसकी दूसरी शाखा दस किमी दूर वाल्टरगंज बाजार के निकट वर्ष 1932 में स्थापित की। यह दोनों चीनी मिलें तब उद्योग का हब मानी जाती थीं। किसानों के खेत गन्ने से लहलहाते रहे। नारंग साहब की यह दोनों मिलें किसानों के घर-आंगन में खुशियां बरसाती रहीं। इन मिलों से उत्पादित चीनी, गुणवत्ता के मामले में अव्वल मानी जाती रही। वर्ष 2005 में बजाज ग्रुप की नजर नारंग की दोनों मिलों पर पड़ी। एक साथ डील हुई यह दोनों चीनी मिलें बजाज ग्रुप के पाले में चली गईं। यह दीगर बात है कि दोनों चीनी मिलों को अलग-अलग नाम से संचालित किया गया। लेकिन नियंत्रण एक ही प्रबंधन के हाथ में रहा। शुरू में तो सब ठीक था। इस प्रबंधन ने अपनी तीसरी नई इकाई अठदमा रुधौली में भी स्थापित कर दी। कुछ लगा कि जनपद में अब औद्योगिक क्रांति नई ऊंचाई पर पहुंचेगी। वर्ष 2013 में नए प्रबंधन ने बस्ती चीनी मिल की चिमनी बुझाई। इसके बाद वाल्टरगंज मिल बंद करने की तैयारी शुरू हो गई। तीन साल पहले यूनिट हेड यहां से हटा दिए गए। उतरौला के यूनिट हेड को यहां का कार्यवाहक बनाया गया। कागज में यह चीनी मिल फेनिल सुगर मिल के नाम संचालित है। नियंत्रण बजाज ग्रुप के अधिकारियों का है। बताया जा रहा है वर्तमान में इस मिल के डायरेक्टर गोला लखीमपुर में बैठते हैं। बस दस वर्ष की और देरी थी जब यह चीनी मिल अपना स्वर्ण जयंती मनाती। लेकिन इसी साल मिल के बंदी की पटकथा लिख दी गई है। प्रबंधन की पूरी टीम यहां से गायब है। वस्तुस्थिति का नजारा दूर से लिया जा रहा है।

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    650 श्रमिकों का आठ माह से बकाया है वेतन

    वाल्टरगंज चीनी मिल में 650 श्रमिक काम करते हैं। आठ माह से इन्हें वेतन नहीं मिल रहा है। पहले तो इनकी आवाज मिल बंदी के खिलाफ और नियमित कर्मचारी बनने के लिए उठती रही। अब जब आर्थिक रूप से टूटते चले गए तो बकाया मानदेय ही इन्हें सबकुछ लगने लगा। तात्कालिक परिस्थितियों से निबटने के लिए बकाया मानदेय के लिए आंदोलनरत हो गए हैं।

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    इस साल नहीं हुई मिल की मरम्मत और रिपेय¨रग

    मिल बंदी की बात इसलिए तस्दीक हो रही है कि पेराई सत्र की कोई तैयारी इस वर्ष अभी तक शुरू नहीं हुई। मिल चालू करने से पहले संयंत्रों की रिपेय¨रग और मरम्मत का कार्य होता है। लेकिन यहां सन्नाटा पसर गया है। कर्मचारी और मजदूर रोज मालिकान की राह निहार रहे हैं। तंगहाली से जूझते लोग आंदोलन की राह पकड़े हैं।

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    27 सितंबर से शुरू हुआ है धरना

    मिल बंदी का स्पष्ट संकेत मिलने के बाद श्रमिक 30 सितंबर से मिल गेट पर धरना दे रहे हैं। 24 दिन हो गए अभी तक प्रबंधन ने कोई सुधि नहीं ली। प्रशासनिक कवायद भी सिफर रही। 17 अक्टूबर को डीएम ने वार्ता के लिए मिल श्रमिक और प्रबंधन को बुलाया था। श्रमिक आला अफसर के दरबार में पहुंचे, लेकिन प्रबंधन की तरफ से कोई वार्ता को कोई नहीं आया। 25 अक्टूबर को फिर तिथि निश्चित हुई। फिर वही हाल। कोई नतीजा नहीं निकला।