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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पुण्यतिथि पर विशेष: बीच सभा में खड़ा हो गया गदहा सीना तान

लंबे समय तक डॉ. सक्सेना के सानिध्य में रहे किसान डिग्री कालेज बस्ती के पूर्व प्रवक्ता डा.परमात्मा नाथ दूबे कहते हैं कि डॉ. सर्वेश्वर ने अपने साथ समाज को भी बदहाल देखा था। गरीबी कुआनो और बाढ़ के भयावह दृश्य देखकर कविताओं के जरिए प्रहार किया।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 11:31 PM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 11:31 PM (IST)
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पुण्यतिथि पर विशेष: बीच सभा में खड़ा हो गया गदहा सीना तान
डॉ. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बस्ती की माटी के वह रचनाकार थे

बस्ती, एसके सिंह।

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"नेता के दो टोपी

और गदहे के दो कान,

टोपी अदल-बदलकर पहने

गदहा था हैरान।

एक रोज गदहे ने उनको

तंग गली में छेंका,

कई दुलत्ती झाड़ीं उन पर

और जोर से रेंका।

नेता उड़ गए, टोपी उड़ गई

उड़ गए उनके कान,

बीच सभा में खड़ा हो गया

गदहा सीना तान!"

राजनीति पर खासे व्यंग्य और आम आदमी की पीड़ा को सीधे अंदाज में परोस देने वाले डॉ. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बस्ती की माटी के वह रचनाकार थे, जिन्हें साहित्य जगत तीव्र आवेग और उत्तेजना का कवि मानता है। वह जन आक्रोश को सीधे शब्दों में उभार देते थे। 'नेता और गदहा' कविता को प्रधानमंत्री मोदी ने बस्ती में वर्ष 2017 में हुई चुनावी सभा में पढ़कर विरोधियों पर कटाक्ष भी किया था। सर्वेश्वर राजनीतिक कटाक्ष से कभी नहीं डरे और इसीलिए ब्रिटिशकाल में नवीं कक्षा में स्कूल से निकाल दिए गए थे। सर्वेश्वर निजी जिंदगी में भी बेबाक थे। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि दिल्ली में बसने के बाद वह इसलिए नहीं आए कि बस्ती बदल गई होगी।

लंबे समय तक डॉ. सक्सेना के सानिध्य में रहे किसान डिग्री कालेज बस्ती के पूर्व प्रवक्ता डा.परमात्मा नाथ दूबे कहते हैं कि डॉ. सर्वेश्वर ने अपने साथ समाज को भी बदहाल देखा था। गरीबी, कुआनो और बाढ़ के भयावह दृश्य देखकर कविताओं के जरिए प्रहार किया। बाद में दिल्ली में बसे तो लौटे ही नहीं। पूछा तो बेबाकी से बोले, बस्ती का देखा-सुना सब परोस दिया। अब बस्ती बदल गई होगी, बस यही सोचकर कदम रुक जाते हैं।

1983 में मिला था साहित्य अकादमी पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर 1927 को बस्ती में हुआ था। उन्होंने प्रयागराज विश्वविद्यालय से 1949 में एमए किया था। बस्ती के खैर इंटर कालेज में भी पढ़ाया, लेकिन आर्थिक परिस्थितियां दुरूह होने के चलते दिल्ली चले गए। वर्ष 1983 में कविता संग्रह खूंटियों पर टंगे लोग के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 24 सितंबर 1983 को उनकी मृत्यु हो गई। वह पराग और दिनमान के संपादक भी रहे थे।

बस्ती में है भाई का परिवार

डॉ. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की दो बेटियां विभा और शुभा हैं। दोनों दिल्ली में रहती हैं। मालवीय रोड पर छोटे भाई श्रद्धेश्वर के दो बेटे रहते हैं। बड़े भतीजे संजीव कहते हैं कि ताऊ जी को कब देखा याद नहीं। एक बार बहन ने पत्र भेजकर मिलने की इच्छा जताई थी। जवाब में लाड़-प्यार का संदेश आया, लेकिन वह नहीं आए।


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