Durga Puja 2022: यहां हिंदू-मुस्लिम मिलकर करते है मां की आराधना, 40 वर्षों से बरकरार है गंगा जमुनी तहजीब
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में एक ऐसा दुर्गा पंडाल सजता है जहां हिन्दू मुस्लिम मिलकर दुर्गा पूजा करते हैं। इस पंडाल के लिए मुस्लिम भी चंदा देते हैं और यहां होने वाली आरती में भी वह भाग लेते हैं।
बस्ती, अमरजीत यादव। बस्ती जिले के नगर पंचायत गायघाट में श्रीश्री दुर्गा पूजा समिति पश्चिम चौराहा द्वारा आयोजित दुर्गा प्रतिमा पूजा समारोह पिछले 40 साल से गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहा है। यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों मिलकर मां दुर्गा की आराधना करते हैं। सुबह शाम मां भगवती की आरती में भी मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल होते है।
आरती में भी शामिल होते हैं मुस्लिम समाज के लोग
यहां के हिंदू मुस्लिम एक दूसरे के धार्मिक आयोजनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। दुर्गा पूजा पंडाल में मुस्लिम समुदाय के लोग पहुंच कर हिंदुओं की तरह ही सभी कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। शाम को मुस्लिम समुदाय के लोग पहुंचकर आरती में शामिल होते हैं और प्रसाद भी ग्रहण करते हैं। शारदीय नवरात्र के नौ दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नियमित रूप से दुर्गा पूजा समारोह में प्रतिभाग करते हैं।
40 वर्ष पूर्व यहां शुरू हुआ था दुर्गा पूजा का आयोजन
विष्णु दत्त शुक्ल ने बताया कि सबसे पहले बंगाल से आए रमेश चंद्र पाल ने करीब 40 वर्ष पूर्व दुर्गा पूजा का आयोजन शुरू कराया। तभी से यह आयोजन होता चला आ रहा है। गायघाट में मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदू के हर पर्व पर खुशी- खुशी शामिल होते हैं। अपना सहयोग भी करते है। प्रतिमा स्थापना में चंदा भी देते है। अदील अहमद सिद्दीकी ने बताया कि जब से होश संभाला तभी से देख रहे है कि दोनों समुदाय एक दूसरे का सहयोग करते चले आ रहे हैं। सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए। दुर्गा पूजा में सहयोग करने वाले मोहम्मद यूसुफ अंसारी, गुलाम रब्बानी,मंजूर हसन, मोहम्मद तौफीक, गुडडू अंसारी,रमजान,अतवारी,जान मोहम्मद कुरैशी, जुल्फिकार अली, मो. हसीम, कल्लू, मुनीर हसन ने बताया कि हिंदू समुदाय के लोग भी हमारे त्योहारों में सहयोग कर उनमें शामिल भी होते हैं। इसलिए यहां गंगा- जमुनी तहजीब बरकरार है।
63 साल पहले मंगलबाजार में स्थापित हुई दुर्गा प्रतिमा
बस्ती जनपद की पहली दुर्गा प्रतिमा स्थापना के 63 वर्ष पूर्ण होने को हैं। वर्ष 1960 में ढोढेराम ने पश्चिम बंगाल से प्रतिमा लाकर स्थापित किया था। तबसे कन्हैया लाल दुर्गा पूजा समिति समारोह का आयोजन करती चली आ रही है। मंगलबाजार में मूर्ति संख्या एक के नाम से प्रचलित दुर्गा पूजा समारोह का अपना इतिहास है। उस समय दुर्गा पूजा समारोह बंगाल में ही मनाया जाता था। गिने चुने बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में दुर्गा पूजा के आयोजन को लेकर कोई उत्सकुता नहीं दिखाई पड़ती थी। उस समय तत्कालीन प्रमुख आभूषण व्यवसायी ढोढेराम ने जनपद में दुर्गा पूजा समारोह मनाने की सोची थी।
1960 में ढोढेराम ने पश्चिम बंगाल से मंगवाई थी दुर्गा प्रतिमा
बताते है कि पहली दुर्गा प्रतिमा जलमार्ग से बंगाल से लायी गयी थी। दूसरी बार जलमार्ग से प्रतिमा लाने के व्यय व परेशानियों को देखते हुए बंगाल के मूर्तिकारों को बस्ती में ही बुलवा लिया। वह दो माह पहले ही आकर यहां प्रतिमा बनाने में जुट जाते थे। करीब दस वर्ष तक यह सिलसिला चला। दुर्गापूजा समारोह का प्रचलन बढ़ा तो बिहार के मूर्तिकार यहां आने लगे। धीरे धीरे मूर्ति स्थापना के स्थल बढृ़ने लगे तो मूर्तिकारों का मन भी यहां लगने लगा। दुर्गा पूजा समारोह का विस्तार अब तो गांव-गांव होने लगा है। समिति के अध्यक्ष पंकज सोनी ने कहा कि परंपरा निर्वहन से उन्हे खुशी मिलती है। इसका उन्हे पूरे वर्ष इंतजार रहता है। आज भी दूर-दराज से लोग यहां मां दुर्गा के दर्शन पूजन को लोग आते हैं।