गुनाह है तरावीह की नमाज छोड़ना
बस्ती: रमजानुल मुबारक के महीने में ईशानमाज के बाद 20 रकात नमाज पढ़ी जाती है, इस नमाज को ही तरावीह ...और पढ़ें

बस्ती: रमजानुल मुबारक के महीने में ईशानमाज के बाद 20 रकात नमाज पढ़ी जाती है, इस नमाज को ही तरावीह की नमाज कहते हैं। इसकी शुरुआत इस्लाम धर्म के दूसरे खलीफा हजरत उमर फारूक रजि. के जमाने से हुई। इसमें पूरा कुरान पाक सुना जाता है यह इबादत नफिल इबादत की सुन्नत-ए-मोअक्किदा है। इसलिए जानबूझ कर तरावीह की नमाज छोडना गुनाह है. मजबूरी में जैसे बुढ़ापे की कमजोरी, मुसाफिर और बीमारी की हालत में ही इसे छोड़ने की छूट है।
पैगम्बर-ए-इस्लाम मोहम्मद सअव. ने तरावीह की नमाज की नीव डाली थी उनके पहले की उम्मत में तरावीह नही थी। मुहम्मद सअव ने 3 दिन तरावीह पढ़ी और छोड़ दी इसलिए कि यह इबादत फर्ज न हो जाय हालांकि उमर फारूक के शासनकाल में तरावीह की नमाज जरूरी कर दी गयी इसमें कुरानपाक सुना जाता है। रमजान में पूरे महीने तरावीह पढ़ने का हुक्म है, अगर किसी तरावीह में रमजान 30 या 29 दिन के पहले कुरान मोकम्मल हो जाता है तो भी तरावीह सुना जाता है। इसी रमजान महीने में ही अल्लाहताला ने अपनी पाक किताब कुरान शरीफ को अपने बंदों की रहनुमाई के लिए इस जहान में उतारा है। इस पाक महीने में अल्लाहताला जन्नत के दरवाजे खोल देता है, दोजख के दरवाजे बंद कर देता है। शैतान को कैद में कर लेता है। इसलिए हर इंसान को चाहिए कि इस महीने की इज्जत करते हुए रोजा नमाज तरावीह जितनी इबादत हो सके करे।
हाफिज व कारी मोहम्मद उसमान साहब मदरसा
अरबिया कादरिया वजहुल उलूम जिभियांव
छोटी महजबीन ने रखा है रोजा
कुदरहा: ब्लाक मुख्यालय से सटे जिभियांव गांव निवासी निजामुद्दन की सबसे छोटी पुत्री महजबीन अख्तरी ने मात्र 7 वर्ष की उम्र में पहली बार रोजा रखा है। उसकी उम्र देख घर वाले पूरी तरह डरे हुए थे कि छोटी बच्ची है रोजा नहीं रख पाएगी, बहुत मनाये समझाये पर वह मानी नहीं। पहले दिन सेहरी के बाद बच्चों के साथ खेल कर और पर कुरान की तेलावत कर समय बिताया, जैसे ही इफ्तार का टाइम आया सबके साथ बैठ कर रोजा खोला। उसकी श्रद्धा देख सबने अल्लाह का शुक्र अदा किया। यह बच्ची तभी से रोजा रख रही है। घर वाले भी अल्लाह की मर्जी मान उसे रोजा रखने में सहयोग कर रहे हैं।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।