डिजिटल युग में पढ़ने की आदत क्यों है जरूरी, घर और स्कूल में कैसे बढ़ाएं किताबों का सम्मान
आजकल के डिजिटल समय में पढ़ने की आदत बहुत ज़रूरी है। यह ज्ञान के साथ-साथ सोचने और रचनात्मकता को भी बढ़ाती है। घर पर पढ़ने का माहौल बनाएं, बच्चों को किताबें चुनने दें। स्कूलों में पुस्तकालयों को बेहतर बनाएं और शिक्षकों को छात्रों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। डिजिटल माध्यमों के साथ भौतिक पुस्तकों का भी महत्व समझें और किताबों का सम्मान करना सिखाएं।
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प्रतीकात्मक चित्र
जागरण संवाददाता, बरेली: आज के डिजिटल युग में जहां जानकारी के अनगिनत साधन उपलब्ध हैं, वहीं पढ़ने की नियमित आदत कमजोर होती जा रही है। मोबाइल, इंटरनेट और त्वरित सूचना के दौर में बच्चों और युवाओं का ध्यान पुस्तकों से हटता जा रहा है, जबकि सच्चा ज्ञान, गहरी समझ और व्यक्तित्व का निर्माण निरंतर पठन से ही होता है। प्रतिदिन पढ़ने का अनुशासन व्यक्ति को एकाग्रता, चिंतन क्षमता, आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति की शक्ति प्रदान करता है। इसलिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी नियमित पठन को अपने जीवन में स्थान दें और घर-विद्यालय दोनों वातावरण इस आदत को प्रोत्साहित करें।
पढ़ने की आदत और व्यक्तित्व विकास का संबंध
प्रतिदिन पढ़ने की आदत महत्वपूर्ण है। एक लड़का जो पहले पढ़ने का शौक़ीन था, पर मोबाइल और सोशल मीडिया की वजह से किताबों से दूर हो गया। समय के साथ उसे समझ आया कि वास्तविक ज्ञान केवल किताबों से मिलता है, न कि छोटी-छोटी इंटरनेट जानकारी से। नियमित पठन न केवल ज्ञान बढ़ाता है, बल्कि व्यक्तित्व विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अध्ययनों में पाया गया है कि कुछ मिनट शांत होकर पुस्तक पढ़ने से तनाव कम होता है और मस्तिष्क सक्रिय बना रहता है।
पढ़ना मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करता है और उम्र बढ़ने पर भी स्मरण शक्ति को सुरक्षित रखने में मदद करता है। पढ़ने से अनुशासन, धैर्य और समझने की क्षमता विकसित होती है। कई सफल व्यक्तियों ने अपनी उपलब्धियों का श्रेय नियमित पठन को दिया है। इसलिए पुस्तकें न केवल ज्ञान का स्रोत हैं, बल्कि जीवन को संतुलित और सार्थक बनाने का माध्यम भी हैं।
- दीप्ति अस्थाना, उप प्रधानाचार्य, महामाया विहार पब्लिक स्कूल
प्रतिदिन पढ़ने का अनुशासन
कहानी प्रतिदिन पढ़ने का अनुशासन में अमन नामक छात्र के माध्यम से यह बताया गया है कि पढ़ने की आदत व्यक्ति के जीवन में कितना गहरा प्रभाव डालती है। अमन बचपन से ही पुस्तकें पढ़ना पसंद करता था, पर समय के साथ डिजिटल साधनों के आकर्षण में फंसकर वह पढ़ने से दूर होने लगा। धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास, ध्यान और अभिव्यक्ति की क्षमता प्रभावित होने लगी। लेकिन एक समय ऐसा आता है जब वह समझता है कि वास्तविक ज्ञान और आत्मविकास पुस्तकों से ही संभव है।
कहानी युवाओं को यह संदेश देती है कि मोबाइल और इंटरनेट सहायक साधन हो सकते हैं, लेकिन उनकी अधिकता सोचने और सीखने की क्षमता को कमजोर बना देती है। जब अमन दोबारा किताबों की ओर लौटता है, तो वह महसूस करता है कि पढ़ना केवल अध्ययन नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक विकास का माध्यम भी है। यह कहानी आज के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।
-ऋतु अरोरा, कार्यवाहक प्रधानाचार्य, दिल्ली पब्लिक स्कूल, बरेली
डिजिटल युग में पढ़ने का अनुशासन आवश्यक
आज के समय में इंटरनेट, गूगल, यूट्यूब, एआइ के माध्यम से बच्चे तुरंत जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन यह सुविधा धीरे-धीरे उनकी तार्किक क्षमता और निर्णय लेने की शक्ति को कमजोर कर रही है। विद्यार्थी प्रश्नों के उत्तर तो पा लेते हैं, पर उत्तर को स्वयं समझने और लिखने की क्षमता कम होती जाती है। इसलिए परिवार और विद्यालय दोनों की यह जिम्मेदारी है कि वे बच्चों में नियमित अध्ययन की आदत विकसित करें। बच्चों को यह समझाना आवश्यक है कि वास्तविक ज्ञान अभ्यास से आता है, न कि तैयार उत्तर से। साथ ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए खेल और बाहरी गतिविधियां भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। तकनीक का प्रयोग आवश्यक है, पर संयमित और संतुलित रूप में।
-डा. नरेंद्र शर्मा, प्रधानाचार्य, जीके सिटी मांटेसरी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, बरेली
पढ़ने की प्रतिबद्धता का जीवन में महत्व
पढ़ाई केवल परीक्षा पास करने का माध्यम नहीं, बल्कि सोच, निर्णय शक्ति और जीवन की दिशा निर्धारित करने की प्रक्रिया है। यह लेख बताता है कि पढ़ने की प्रतिबद्धता व्यक्ति में निष्ठा, एकाग्रता और अनुशासन लाती है। प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ अध्ययन का महत्व और भी बढ़ जाता है। एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि सफलता प्राप्त करने के लिए मन केवल लक्ष्य पर केंद्रित होना चाहिए।
नियमित अध्ययन से दृष्टिकोण व्यापक होता है, आत्मनिर्भरता बढ़ती है और जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है। पढ़ाई व्यक्ति के भीतर नैतिकता और मानवीय मूल्यों को जागृत करती है। इसलिए पढ़ने की प्रतिबद्धता सफलता ही नहीं, संतुलित और सार्थक जीवन का मूल है।
-ओम प्रकाश राय, प्रधानाचार्य, जीआइसी, बरेली।
सफलता की कुंजी है प्रतिदिन पढ़ने का अनुशासन
पढ़ना केवल शैक्षणिक प्रगति नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण का आधार है। नियमित पढ़ने से शब्द भंडार, एकाग्रता और आत्मविश्वास बढ़ते हैं। रोजाना थोड़ा समय निकालकर किताब, समाचार पत्र या किसी भी अच्छी सामग्री को पढ़ना सोचने की क्षमता को विकसित करता है। यह आदत निर्णय लेने और समस्या समाधान कौशल को मजबूत बनाती है।
माता-पिता और शिक्षक का कर्तव्य है कि वे बच्चों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें और घर-विद्यालय में ऐसा वातावरण तैयार करें, जहां किताबें सुलभ और सम्मानित हों। पढ़ने की यह आदत जीवनभर साथ रहती है और निरंतर विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।
-अंकुरा निहलानी, प्रिंसिपल, व्यास वर्ल्ड स्कूल

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