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    कभी दस हजार रुपये की सालाना आमदनी वालों को ही था वोट देने का अधिकार

    By Ravi MishraEdited By:
    Updated: Mon, 10 Jan 2022 11:53 AM (IST)

    Voting Rights in India देश 1947 में आजाद हुआ। 1952 में पहले विधानसभा चुनाव हुए लेकिन विधानसभा प्रणाली इससे कई वर्ष पूर्व शुरू हो गई थी। हालांकि तब सभी को मत देने का अधिकार नहीं था। दस हजार रुपये वार्षिक आय वाले ही वोट दे सकते थे।

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    कभी दस हजार रुपये की सालाना आमदनी वालों को ही था वोट देने का अधिकार

    बरेली, अंबुज मिश्र। Voting Rights in India : देश 1947 में आजाद हुआ। 1952 में पहले विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन विधानसभा प्रणाली इससे कई वर्ष पूर्व शुरू हो गई थी। हालांकि तब सभी को मत देने का अधिकार नहीं था। दस हजार रुपये वार्षिक आय या 750 रुपये वार्षिक भूमिकर देने वाले ही वोट दे सकते थे। संयुक्त सीटों पर निर्वाचन होता था। तब शाहजहांपुर में पांच निर्वाचन क्षेत्र थे। जिनमें से दो सीटें संयुक्त थीं। इनमें एक में शाहजहांपुर सहित बदायूं-बरेली-पीलीभीत का क्षेत्र शामिल था। जबकि दूसरे में शाहजहांपुर, बदायूं व सम्भल का क्षेत्र भी शामिल था।

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    पं. गोविंद बल्लभ पंत भी यहां से चुनाव लड़े थे और उन्हें जीत थी हासिल हुई थी। वरिष्ठ इतिहासकार डा. नानक चंद्र मेहरोत्रा ने बताया कि 1935 में संयुक्त प्रांत में पहली बार विधानसभा के गठन की घोषणा हुई। तब इसके सदस्यों की संख्या 228 थी। इसका कार्यकाल पांच वर्ष था। आजादी से पहले 1937 के अतिरिक्त 1946 व 1948 में भी चुनाव हुआ था।

    कुछ इस तरह था चुनाव परिणाम :

    1937 में पं गोविंद बल्लभ पंत नगर (शाहजहांपुर बरेली, पीलीभीत, बदायूं) सीट से चुनाव जीते थे। उन्हें 4910 मत मिले थे। जबकि दूसरे नंबर पर रहे भगवती सहाय बेदार 15 मत ही पा सके थे।

    शाहजहांपुर पूर्व से देव नारायण भारतीय चुनाव जीते थे। उन्हें 14109 मत प्राप्त हुए थे। शाहजहांपुर पश्चिम सीट से ठाकुर साधौ सिंह ने 12 हजार 276 मत पाकर जीत हासिल की थी। जबकि मनमोहन सहाय को 3865 मत मिले थे।

    शाहजहांपुर बदायूं संभल सीट पर मुस्लिम लीग के करीम उर रजा खां ने जीत हासिल की थी। उन्हें 3884 मत मिले थे। इकराम आलम को 2263 वोट मिले थे। शाहजहांपुर सीट से निर्दलीय फजलुर रहमान खां 3513 मत पाकर विजयी रहे थे। मेंहदी हसन खां को 373 मत मिले थे।

    इसलिए बनाई व्यवस्था

    1919 में भारत शासन एक्ट बना। जिसे मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं। यह अधिनियम 1921 में लागू हुआ। इसके तहत द्वैध शासन प्रणाली लागू की गई थी। आठ प्रमुख प्रांत बनाए गए। जिन्हें गर्वनर प्रांत कहा गया। इसमें नई शासन पद्धति शुरू की गई। इसका उद्देश्य प्रभावशाली वर्ग को कम से कम दस वर्ष ब्रिटिश शासन प्रणाली का समर्थक बनाकर भारतीयों को धीरे-धीरे शासन प्रणाली में पारंगत करना व स्थानीय स्वशासी संस्थाओं का धीरे-धीरे विकास करना था।

    अंग्रेजों की द्वैध शासन प्रणाली से भारतीय संतुष्ट नहीं थे और वह इसकी समाप्ति की मांग कर रहे थे। समय की नब्ज को पहचानते हुए ब्रिटिश संसद ने सन् 1935 भारत शासन एक्ट बनाया। इसमें ब्रिटिश प्रांतों और संघ में शामिल होने के लिए तैयार भारतीय रियासतों की एक अखिल भारतीय फेडरेशन बनाई गई। इस भारतीय शासन एक्ट 1935 के अधीन प्रांतीय विधानमंडलों के चुनाव फरवरी 1937 में कराए। कांग्रेस की इन चुनावों में जबरदस्त जीत हुई।

    कांग्रेस को 836 सामान्य स्थानों में 715 प्राप्त हुए। जबकि मुस्लिम लीग अपने लिए आरक्षित स्थान व बहुसंख्यक प्रांत में भी पराजित हो गई। उसको 482 में सिर्फ 51 स्थान ही मिले। इन चुनावों का सबसे स्याह पक्ष यह था कि सांप्रदायिक तथा वर्गीय मतदाता मंडलों का विस्तार हुआ। अनुसूचित जातियों, मुसलमान, सिक्ख, यूरोपीय, भारतीय ईसाई, एंग्लो इंडियन, एंग्लो इंडियन स्त्रियां, व्यापार तथा उद्योग, भूमिपति, पिछड़े वर्ग आदि को इसमें अलग-अलग प्रतिनिधित्व दिया गया। यह व्यवस्था 14 अगस्त 1947 तक लागू रही। डा. प्रशांत अग्निहोत्री, निदेशक रूहेलखंड शोध संस्थान