ब्रिटिश जमाने की हैं ये कारें, अनोखी है इनकी खासियत
वो अपने आप में अनोखी हैं। शरीर की बनावट और चाल ऐसी की लोग देखते रह जाएं। सड़क पर सरपट फर्राटा भरने की जगह बहुत इत्मीनान से चलती हैं। हम बात कर रहे हैं 80 से 90 साल पहले तैयार की गईं ब्रिटिश काल की उन अनोखी कारों की ।

बरेली, जेएनएन। वो अपने आप में अनोखी हैं। शरीर की बनावट और चाल ऐसी की लोग देखते रह जाएं। सड़क पर सरपट फर्राटा भरने की जगह बहुत इत्मीनान से चलती हैं। हम बात कर रहे हैं 80 से 90 साल पहले तैयार की गईं ब्रिटिश काल की उन अनोखी कारों की जो शहर के जाने माने परिवार राजेश जौली के घर की शोभा बढ़ा रही हैं। उनके बाबा स्व. बनवारी लाल को 1950 में किसी अंग्रेज ने पहली कार गिफ्ट की थी। तभी से यह सिलसिला शुरू हो गया। उसके बाद वेंनटेज कारों के बेड़े में 1948 की मॉरिस माइनर, 1967 की हॉलडेन और 1947 की क्राइसलर भी शामिल हुई। इन कारों को सुरक्षित रखने से लेकर उनकी खूबियों पर एक रिपोर्ट-
ऑस्टेन सेवन 1931
ब्रिटिश काल में बनी लाल रंग वाली यह कार अपने आप में अनोखी है। राजेश जौली बताते हैं कि बाबा स्व. बनवारी लाल अग्रवाल कैंट में रहते थे। वहां बंगले बहुत थे। किसी अंग्रेज ने जाते समय यह कार सन 1950 में बाबा जी को गिफ्ट की थी। इसकी बॉडी का आकार आगे से चौड़ा और पीछे से पतला है। इसके पहिए लोहे की तीली से कवर हैं। दो दरवाजों की इस कार में चार यात्री बैठ सकते हैं। ड्राइवर के बगल वाली सीट को आगे करने के बाद ही पीछे जाने का रास्ता है। सामान रखने के लिए पीछे छोटा बॉक्स भी बना है। तीन गेयर और रिवर्स गेयर की सुविधा के साथ कपड़े का हुड भी लगा है।
मॉरिस माइनर 1948
वर्ष 1948 मॉडल की यह कार अंग्रेजों के समय की बनी है। लोहे की मजबूत बॉडी वाली यह कार 2015 में कबाड़ के रूप में 30 हजार रुपये में खरीदी थी। फर्श का लोहा गला था। कुछ पार्ट नहीं मिल पाए तो दिल्ली से मंगवाए। फिर से ठीक कराया गया। काले रंग से पेंटिंग करवाई। इसमें भी दो दरवाजे हैं। पीछे डिक्की है। छत भी है। तीन गेयर हैं। पेट्रोल चालित यह कार 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है।
होल्डेन 1963
यह कार ऑस्ट्रेलिया मेड है। इसकी खास बात यह है कि इसमें ड्राइवर मिलाकर छह लोगों के बैठने की व्यवस्था है। हरे रंग वाली यह कार 2016-17 में राजेश जौली के परिवार का हिस्सा बनी। दिल्ली में उनके परिवार के सदस्य ने देश में ही ली थी। उनके यहां कबाड़ पड़ी थी। बॉडी भी गल चुकी थी। लेकिन इंजन ठीक था। मरम्मत कराने के बाद इसकी सूरत ही बदल गई। इसमें आगे और पीछे छह लोग बैठ सकते हैं।
क्राइसलर 1947
आजादी के समय की बनी यह कार अपने आकार से लोगों को आकर्षित करती है। इसकी बॉडी काफी मजबूत है जो आज की कारों में नहीं है। आगे सेव गार्ड के साथ इसके पहिये में स्टील-लोहे के मिक्सर वाले रिम लगे हैं। वर्ष 2000 से यह कार भी राजेश जौली के पास सुरक्षित है। इसकी बॉडी का रंग काला है। चलने में एवरेज भी 25 से 30 किलोमीटर प्रति घंटे का है।
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