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एंग्लिकन शैली से बना है सेंट माइकल एंड ऑल एंजिल चर्च

यह चर्च ब्रिटानी हुकूमत का साक्षी है। डेढ़ शताब्दी से अधिक समय से रोमन और इंडो-गॉथिक वास्तुकला की खासियत समेटे चर्च आज भी शान से खड़े हैं। क्रिसमस करीब है तो यह सजने-संवरने लगे हैं। शुरुआत में यह चर्च कविगंज चर्च कहलाता था।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Wed, 16 Dec 2020 11:47 AM (IST)Updated: Wed, 16 Dec 2020 11:47 AM (IST)
एंग्लिकन शैली से बना है सेंट माइकल एंड ऑल एंजिल चर्च
1862 में पादरी विल्यिम गार्डन कावी ने यहां पहली प्रार्थना कराई थी।

बरेली, जेएनएन। यूरोपीय स्थापत्य और वास्तुकला को अपनी दर-ओ-दीवार में नक्श किए है शहर का सेंट माइकल एंड ऑल एंजिल गिरजाघर। यह चर्च ब्रिटानी हुकूमत का साक्षी है। डेढ़ शताब्दी से अधिक समय से रोमन और इंडो-गॉथिक वास्तुकला की खासियत समेटे चर्च आज भी शान से खड़े हैं। क्रिसमस करीब है तो यह सजने-संवरने लगे हैं। शुरुआत में यह चर्च कविगंज चर्च कहलाता था। पादरी अमन अभिषेक प्रसाद ने बताया कि 1862 में पादरी विल्यिम गार्डन कावी ने यहां पहली प्रार्थना कराई थी। चर्च का निर्माण एंग्लिकन शैली में कराया गया, जिसमें पवित्र क्रास का निशान पूरब दिशा की ओर होता है। सुरक्षा के लिहाज से मोटी दीवारें और खपरैल से छत बनाई गई। तब चर्च के चारों ओर घना जंगल था। मसीह समुदाय की मान्यता है कि जंगल में स्वर्गदूत का वास करते हैं। इसी आधार पर चर्च का नाम सेंट माइकल एंड ऑल एंजिल्स चर्च रखा गया। शाहजहांपुर रोड स्तिथ सेंट माइकल एंड ऑल एंजिल चर्च आज भी पुरानी यादों को सहेजे हुए है। चर्च में पादरी ने बताया कि इस बार कोरोना काल में सीमित संख्या में क्रिसमस का पर्व मनाया जाएगा। प्रार्थना के लिए एक बार में अधिकतम 100 लोगों को ही अनुमति दी गयी है। इसके साथ ही जो भी आएंगे, उनके चेहरे पर मास्‍क होना अनिवार्य होग। बिना मास्‍क के किसी को भी चर्च में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। इसके अलावा गेट पर ही सैनिटाइजर रखवा दिए गए हैं। सभी आने वालों को पहले अपने हाथ सैनिटाइज करने होंगे, उसके बाद ही चर्च में अंदर जाने दिया जाएगा। 

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