फिल्म दर्द के गीत अफसाना लिख रही हूं को लिखकर छा गए थे शकील बदायूंनी, जानिए कैसे मिला था बॉलीवुड में मौका
बदायूं शहर के सोथा मुहल्ले के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले डा.शकील बदायूंनी ने देश ही नहीं पूरी दुनिया में बदायूं को अपने गीतों के जरिए एक अलग पहचान दिलाई। शकील अहमद बदायूंनी को जीवन में कड़ा संघर्ष करना पड़ा था।

बरेली, जेएनएन। बदायूं शहर के सोथा मुहल्ले के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले डा.शकील बदायूंनी ने देश ही नहीं पूरी दुनिया में बदायूं को अपने गीतों के जरिए एक अलग पहचान दिलाई। तीन अगस्त 1916 को मोहम्मद जमाल अहमद के घर जन्मे शकील अहमद बदायूंनी को जीवन में कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। लेकिन अच्छी तालीम और गीत लिखने के हुनर ने हर मुश्किल को आसान कर दिया। बॉलीवुड में दस्तक देने के बाद जब फिल्म दर्द में अफसाना लिख रही हूं दिले बेकरार का गीत उन्होंने लिखा तो शकील बदायूंनी का ये गीत हर जुबान पर चढ़ गया । इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें लगातार तीन फिल्म फेयर अवार्ड भी मिले।सदाबहार गीतों की बदौलत वर्षों तक लोगों के दिलों पर राज करने वाले डा.शकील बदायूंनी किशोरावस्था से ही शेरो-शायरी में दिलचस्पी लेने लगे थे। प्रारंभिक तालीम बदायूं में हासिल करने के बाद अलीगढ़ से बीए की परीक्षा पास की और उसके बाद 1942 में दिल्ली चले गए थे। जिला पूर्ति विभाग में नौकरी के साथ मुशायरों में भी वह शिरकत करने लगे थे। 1946 में दिल्ली के एक मुशायरे में जब उन्होंने शेर पढ़ा -गमे आशिकी से कह दो रहे कभी आम तक न पहुंचे, मुझे खौफ है कि तोहमत मेरे नाम तक न पहुंचे। मैं नजर से पी रहा था तो दिल ने बद दुआ दी, तेरा हाथ जिंदगी भर कभी जाम तक न पहुंचे। इस मुशायरे में शामिल हुए फिल्म डायरेक्टर एआर कारदार को यह इतना पसंद आया था कि उन्होंने शकील को बॉलीवुड आने के लिए बुलावा भेज दिया था। वहां पहुंचने के बाद सबसे पहले उन्हें दर्द फिल्म में गीत लिखने का अवसर मिला था। पहली ही फिल्म में उन्होंने ऐसी छाप छोड़ी कि धूम मचा दी। संगीतकार नौशाद से मुलाकात होने के बाद यह जोड़ी बहुत मशहूर हुई थी। इसके बाद तो उड़नखटोला, बैजू बावरा, मदर इंडिया, मुगले आजम, लीडर, गंगा जमुना, कोहिनूर, आदमी जैसी सुपरहिट फिल्मों समेत करीब 100 फिल्मों के गीत लिखे। 20 अगस्त 1970 को बदायूं का यह चमकता सितारा हमेशा के लिए बुझ गया, लेकिन अपने सदाबहार गीतों से अब भी करोड़ों लोगाें के दिलों में जिंदा हैं।
लगातार तीन बार मिले फिल्म फेयर अवार्ड
डा.शकील बदायूंनी को राष्ट्रीय स्तर के कई बड़े पुरस्कार मिले थे। बॉलीवुड फिल्म फेयर अवार्ड उन्हें लगातार तीन बार दिया गया था। पहली बार 1961 में फिल्म चौदहवीं का चांद फिल्म के गाने के लिए, दूसरी बार 1962 में सुपरहिट फिल्म घरौंदा के गीत हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं और तीसरी बार 1963 में बीस साल बाद फिल्म के गीत कहीं दीप जले कहीं दिल के लिए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया था। इ
हर तरह की शायरी में हासिल थी महारत
शकील बदायूंनी को करीब से जानने वाले लोगों को ही इस बात की जानकारी है कि उन्हें हर तरह की शायरी में महारत हासिल थी। उन्होंने श्रृंगार, दर्द भरे गीत ही नहीं लिखे बल्कि अध्यात्म और रूमानियत के क्षेत्र में भी मिसाल कायम की है। बैजू बावरा फिल्म का गीत-मन तड़पत हरि दर्शन को आज, मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज, विनती करत हूं रखियो लाज। मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गए रहे भजन भी लिखा।
डा.मसर्रत ने शकील बदायूंनी पर की थी पीएचडी
शहर में डा.शकील का पुराना मकान खंडहर के रूप में पड़ा हुआ है। उनके नाम पर घंटाघर पर एक पार्क जरूर बना दिया गया है। लालपुल के निकट एक रोड भी उनके नाम पर बना है। शहर के साहित्यकार डा.मसर्रत उल्ला खां ने डा.शकील बदायूंनी पर पीएचडी की थी। वह उनकी स्मृतियों को सहेजने की मुहिम चला रहे थे। उनके आवास को लाइब्रेरी बनाने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन उनके इंतकाल हो जाने से यह मुहिम अधर में लटक गई। अब कुछ नए साहित्यकारों ने शकील बदायूंनी की यादें सहेजने की दिशा में शुरूआत जरूर की है, लेकिन कहां तक पहुंच सकेंगे यह तो वक्त ही बताएगा।
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