Serological Test News : अच्छी खबर बरेली में बढ़ रहा सीरोलॉजिकल टेस्ट का क्रेज, जानिए कितने लाेग करा चुके एंटीबाडी टेस्ट
Serological Test News बरेली में वैसे तो कई पैथोलोजी लैब हैं लेकिन इनमें से तीन प्रमुख लैब में ही कोविड एंटीबाडी टेस्ट होता है। इसे सीरोलॉजिकल टेस्ट भी कहते हैं। कोरोना संक्रमण से पहले एंटीबाडी टेस्ट कराने वालों की संख्या न के बराबर थी।
बरेली, जेएनएन। Serological Test News : बरेली में वैसे तो कई पैथोलोजी लैब हैं, लेकिन इनमें से तीन प्रमुख लैब में ही कोविड एंटीबाडी टेस्ट होता है। इसे सीरोलॉजिकल टेस्ट भी कहते हैं। कोरोना संक्रमण से पहले एंटीबाडी टेस्ट कराने वालों की संख्या न के बराबर थी, लेकिन पिछले एक साल में टेस्ट कराने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इन लैबों में अभी तक करीब 550 लोगों ने एंटीबाडी टेस्ट कराया है। खासकर पिछले दो महीने में 80 फीसद से ज्यादा लोगों ने एंटीबाडी टेस्ट कराया।
इनमें युवा वर्ग यानी 18 से 44 आयुवर्ग के लोग ज्यादा हैं। बच्चों और वृद्धजनों का एंटीबाडी टेस्ट बेहद कम हुआ है। एंटीबाडी टेस्ट के जरिए पता चलता है कि शरीर ने कोविड वायरस से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली हासिल कर ली है या नहीं। विशेषज्ञों के मुताबिक इस टेस्ट से वायरस की गंभीरता और इससे ठीक होने पर एंटीबाडी की शरीर में मात्रा पता चलती है।
1200 से चार हजार रुपये तक हर जांच
जिले में जिन निजी लैब में एंटीबाडी टेस्ट होते हैं, वहां इसके एवज में मोटी रकम भी वसूली जाती है। जिले में अलग-अलग लेवल पर होने वाले एंटीबाडी टेस्ट में 1200 से चार हजार रुपये तक खर्च होते हैं।
शरीर में बनने वाले सुरक्षात्मक प्रोटीन को कहते हैं एंटीबाडी
किसी खतरनाक वायरस या बीमारी से संक्रमित होने पर हमारे शरीर में एक सुरक्षात्मक प्रोटीन बनता है, इसे एंटीबाडी कहते हैं। एंटीबाडी प्रोटीन के जरिए ही वायरस की सतह पर पहचान करता है। इसलिए ये एंटीबाडी शरीर में प्रवेश करने वाले वायरस जैसे ही होते हैं। ये एंटीबाडी वायरस को चिह्नित कर या तो निष्क्रिय कर देते हैं या फिर मार देते हैं। कोविड वायरस से पूरी तरह ठीक होने के बाद ही एंटीबाडी टेस्ट किया जाता है। इसके जरिए पता चल जाता है कि शरीर ने एंटीबाडी बना ली हैं या नहीं।
मुख्य रूप से दो तरह की बनती हैं एंटीबाडी
शरीर में कोई वायरस प्रवेश करने के बाद वैसे तो शरीर में कई तरह की एंटीबाडी बनती हैं, इन्हें इम्यूनोग्लोबिन कहते हैं। लेकिन इनमें दो तरह की एंटीबाडी मुख्य होती हैं। इन्हें इम्यूनोग्लोबिन-जी और इम्यूनोग्लोबिन-एम कहते हैं। इम्यूनोग्लोबिन-एम का उत्पादन हमारा शरीर किसी वायरस या बीमारी से संक्रमित होने पर तत्काल वायरस को मारने के लिए करता है। इम्यूनोग्लोबिन-जी शरीर में संक्रमण से मुक्त होने के बाद तैयार होती है। ताकि बाद में भी शरीर वायरस के खिलाफ लड़ता रहे।
स्लाइवा से ज्यादा बेहतर खून की जांच
वैसे तो एंटीबाडी हमारे स्लाइवा (मुंह और नाक के अंदर) पर भी मौजूद होती हैं, लेकिन यह टेस्ट ज्यादा कारगर नहीं माना जाता। सही टेस्ट रक्त के नमूने से ही किया जाता है। इसमें देखा जाता है कि क्या आपके शरीर ने दोनों इम्यूनोग्लोबिन का निर्माण किया है या नहीं। आमतौर पर एक संक्रमित व्यक्ति के शरीर में इम्यूनोग्लोबिन-एम शरीर के अंदर चार से पांच दिन में ही बनने लगती है। वहीं, इम्यूनोग्लोबिन-जी का निर्माण ठीक होने के 14 दिन के बाद होता है। ये एंटीबाडी लंबे शरीर में लंबे समय तक मौजूद रहती है।
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