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    Ramleela : औरंगजेब के शासन में भी होता था यूपी की इस रामलीला का मंचन, आज भी दर्शकों से भर जाता है पंडाल

    हरिशंकर शर्मा और उदय शंकर मिश्रा। दोनों 80 पार और दोनों लोग करीब 70 साल से देखते आ रहे हैं रामलीला। दोनों यहीं चौधरी तालाब और चौधरी मंदिर के पास रहते हैं। यही वह स्थान है जहां हर बरस होती है चौधरी तालाब वाली रामलीला। यह बड़ी पुरानी रामलीला है बताते हैं कि 456 बरस पुरानी। तब के लखना स्टेट इटावा वाले राजा जसवंत राव ने इसका शुभारंभ किया था।

    By Jagran NewsEdited By: Shivam YadavUpdated: Sun, 15 Oct 2023 06:50 PM (IST)
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    इस बरस एक बार फिर यह क्षेत्र लीला और मेला की रौनक से जगमग है।

    जय प्रकाश पांडेय, बरेली। हरिशंकर शर्मा और उदय शंकर मिश्रा। दोनों 80 पार, और दोनों लोग करीब 70 साल से देखते आ रहे हैं रामलीला। दोनों बुजुर्ग यहीं चौधरी तालाब और चौधरी मंदिर के पास रहते हैं। यही वह स्थान है जहां हर बरस होती है चौधरी तालाब वाली रामलीला। यह बड़ी पुरानी रामलीला है, बताते हैं कि 456 बरस पुरानी। तब के लखना स्टेट इटावा वाले राजा जसवंत राव ने इसका शुभारंभ किया था। बताते हैं कि औरंगजेब के खड़ी तलवार वाले शासनकाल में भी इस रामलीला का मंचन होता रहा।

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    इस बरस एक बार फिर यह क्षेत्र लीला और मेला की रौनक से जगमग है। इन दिनों धनुष यज्ञ और राम विवाह प्रसंग के आसपास की लीलाएं मंचित की जा रही हैं। ललित शर्मा प्रभु राम की भूमिका में हैं तो वहीं कन्हैया शर्मा सीता जी की भूमिका में। यह रामलीला मंडली बिहार के मधुबनी जिले की है। 

    भव्यता प्रदान करता तीन पर्दों वाला मंच

    गहराई लिए तीन पर्दों वाला मंच इस पूरे पंडाल को भव्यता प्रदान कर रहा है। यह तीनों परदे बदलते हुए विभिन्न दृश्यों के अनुसार उठते और गिरते हैं। पुरानी रामलीलाओं के मंचन के दौरान ऐसा आम देखा जा सकता है। पात्रों का पहनावा सुंदर और भव्य है वहीं अभिनय भी गरिमापूर्ण। 

    दर्शकों से भर जाता है पंडाल

    आमतौर पर रामलीलाओं में दर्शकों के बैठने के लिए दरी बिछा दी जाती है, यहां कुर्सियां लगी हैं। अच्छी वाली कुर्सियां, बड़ी संख्या में। आंखों को बड़ा सुकून मिलता है यह देखकर कि सभी कुर्सियां भरी हैं और सैकड़ों लोग पंडाल के बाहर भी मौजूद रहते हैं। पंडाल के ठीक बगल में बहुत बड़ा तालाब है, राम-केवट संवाद का लीला मंचन यहीं होता है। 

    मेले में रौनक, हर तरफ जगमग

    लीला पंडाल से सटकर ही एक मेला स्थल भी है। यहां तरह-तरह के छोटे-बड़े झूले लगे हैं। बच्चे तो बच्चे, बड़े भी इसका आनंद ले रहे हैं, रौनक है। खाने-पीने की तमाम दुकानें लगी हैं। कहीं जलेबी छन रही है तो कहीं पकौड़ी, कहीं भुट्टे के दानों को पॉपकॉर्न का रूप दिया जा रहा है तो कहीं बर्फ को घिसकर उसका गोला बनाते हुए ऊपर से लाल रंग छिड़का जा रहा है। जगमग ऐसी कि कोई दुकानदार खाली नहीं, सबके पास ग्राहक हैं। लीला, मंचन, मेला, ठेला, यह सब अपने होने की सार्थकता को चरितार्थ कर रहे हैं।

    घुमंतू प्रवृत्ति की मंचन लीला

    चौधरी तालाब वाली रामलीला वस्तुत: घुमंतू प्रवृत्ति की मंचन लीला है। इसका मंचन तीन स्थानों पर होता है। आरंभ के आठ दिन चौधरी तालाब के किनारे, केवट-नाव प्रसंग तालाब (सरयू स्वरूप) में, बाकी आगे का मंचन तालाब पार बड़े बाग में। बनारस की विश्वविख्यात रामनगर की रामलीला भी कई स्थानों पर घूम-घूमकर होती है।

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    चौधरी तालाब वाली रामलीला को करवाने का जिम्मा जिला प्रशासन का है। इसके संचालन के लिए एक कमेटी है, रामगोपाल मिश्रा इसके अध्यक्ष हैं। यह हल्की सी ग्रामीण सुगंध लिए शहर का वह भाग है, जिससे बड़ा बाग, किला, हार्टमैन, कर्मचारी नगर, गांधी नगर और सैदपुर जैसे बड़े मोहल्ले जुड़ते हैं। इन जगहों से खूब लीला प्रेमी यहां पहुंचते हैं। 

    पचास-बावन साल से भगवान को देखने आते हैं। अजब लीला है प्रभु की, हमें पता है कि राम जी के हाथों अब भोलेनाथ का धनुष टूटने वाला है। हर बरस हम यही देखने आते हैं, लोग देखने आते हैं, हर बार सब नया लगता है। जाने को जानना, फिर जानना, और जानते रहना, यही लीला है। जय रामजी की।

    -बुजुर्ग रामप्रकाश मिश्रा, लीला प्रेमी।

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